सिलीगुड़ी से लगभग 20KM दूर घोषपुकुर और फांसीदेवा के बीच स्थित एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर शुक्रवार की देर रात लगभग 3:00 बजे ध्वस्त हो गया. हालांकि इस घटना में किसी तरह की क्षति का समाचार नहीं है.फ्लाईओवर ध्वस्त होने का बंगाल में यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी पुल-पुलिया, फ्लाईओवर आदि ध्वस्त होते रहे हैं. फ्लाई ओवर के ध्वस्त होने से सिलीगुड़ी तथा उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में जाने वाले मालवाही ट्रकों का परिचालन ठप पड़ गया है. घटना की सूचना मिलते ही प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंच गए हैं. घोषपुकुर के BDO ने बताया कि मामले की जांच के बाद ही यह बताया जा सकेगा कि फ्लाईओवर कैसे ध्वस्त हुआ. मौके पर पहुंची दार्जीलिंग की डीएम
जयश्री दास गुप्ता ने फ्लाईओवर का मुआयना करने के पश्चात बताया कि यह सब कैसे हुआ, जांच के बाद ही बताया जा सकेगा. जब उनसे पूछा गया कि क्या फ्लाईओवर के निर्माण में घटिया क्वालिटी के मेटेरियल का प्रयोग किया गया था, तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं कोई इंजीनियर नहीं हूं. जांच के पश्चात ही पता चलेगा. फ्लाईओवर के ध्वस्त होने के बाद ट्रैफिक पुलिस गाड़ियों का परिचालन ठीक तरह से हो सके इसकी व्यवस्था कर रही है. मौके पर पहुंचे हमारे संवाददाता ने बताया कि फ्लाईओवर के चार पिलर बुरी तरह ध्वस्त हो गए हैं. चूकि यह घटना रात्रि 3-3:30 बजे की है. उस समय गाड़ियों का आना जाना प्रायः नहीं के बराबर होता है, अतः किसी तरह की जान माल की हानि नहीं हुई है. इलाके के लोगों से हमारी बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि निर्माणाधीन फ्लाईओवर में घटिया क्वालिटी की सामग्री का प्रयोग किया जा रहा था, जिसके कारण ही पिलर टूट गए. देखा जाए तो बंगाल में विकास कार्य के पीछे एक सिंडिकेट काम करता है, जो विकास कम और तबाही का सामान ज्यादा पैदा करता है. पश्चिम बंगाल में यह कोई पहला मौका नहीं है. एक अध्ययन एजेंसी के अनुसार जब-जब यहां विकास के कार्य जैसे सड़क, परिवहन,पुल निर्माण आदि होते हैं तो राशियों का बंदरबांट सिंडिकेट के तहत होता है. क्योंकि पैसा सबको चाहिए इसलिए सिंडिकेट के लोग प्रस्तावित निर्माण राशि का 50% से भी कम खर्च करते हैं और शेष रकम आपस में बाट लिया जाता है. ऐसे में जो निर्माण होगा वह तो कमजोर होगा ही. केवल बंगाल में ही क्यों, ऐसी घटनाएं पूरे देश में हो रही हैं.लेकिन बंगाल सिंडिकेट के कारण ज्यादा बदनाम है. इंजीनियर, सुपरवाइजर आदि की मिलीभगत से निर्माण कार्य पर लगने वाला वास्तविक पैसा नहीं लग पाता है तथा उस राशि का दुरुपयोग नीचे से ऊपर तक के लोगों में किया जाता है. घोषपुकुर का फ्लाई ओवर ध्वस्त कांड कुछ समय के बाद भुला दिया जाएगा. लेकिन यह सोचने वाली बात है कि अगर यह हादसा सुबह-शाम या दिन में किसी भी समय होता तो क्या होता? प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसी घटनाओं से सबक लेकर भविष्य की एक नई तस्वीर पेश करनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो सके.