बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम ने अब तक की सभी धारणाओं और मान्यताओं को पीछे छोड़ दिया है. यह किसी सुनामी से कम साबित नहीं हुआ है. पूरे देश की निगाहें बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम पर टिकी थी. बिहार की जीत की धमक बंगाल में भी गूंजने लगी है. सिलीगुड़ी में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जीत का जश्न मनाया और एक दूसरे को मिठाइयां बाटीं. इस अवसर पर कहा कि इस बार दीदी का किला ध्वस्त होगा.
जो भी हो, पश्चिम बंगाल की टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा भाजपा के लिए बिहार का चुनाव परिणाम चिंतन और मनन का संदेश देता है. आज का मतदाता जाग चुका है. इस चुनाव परिणाम ने राजनीतिक दलों के लिए कुछ गुरु मंत्र भी दिए हैं, जिन्हें समय से पहले समझ लेने वाला ही 2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव में बाजी मारेगा.
बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम ऐसा होगा, इसकी कल्पना शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी नहीं की होगी. जबकि राजद के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका ऐसा हश्र होगा. बहरहाल बिहार के मतदाताओं ने मोदी नीतीश की उम्मीद से बढ़कर छप्पर फाड़ कर दिया. 2010 के बाद यह पहला मौका है, जब एनडीए को छप्पर फाड़ बहुमत मिला है.
भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी उभरी है. शाम 4:00 बजे तक के रुझान में NDA 200 से भी ज्यादा सीटों पर आगे थी. भाजपा को 95 सीट, दूसरे नंबर पर जेडीयू 84 सीट जबकि लोक जनशक्ति पार्टी तीसरे नंबर 19 सीट पर आगे चल रही थी. एनडीए को 57 सीटों पर जीत मिल चुकी थी. राष्ट्रीय जनता दल 6 सीटों पर जीत दर्ज कर चुका था. 27 सीटों पर पार्टी आगे चल रही थी.
सबसे बुरा हाल राष्ट्रीय जनता दल का हुआ है. तेजस्वी यादव के बारे में यह कथन चला मुरारी हीरो बनने, सटीक बैठता है. तेजस्वी को लग रहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तो उनके बाएं हाथ का खेल है.मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित होने के साथ ही उन्हें इतना ज्यादा घमंड हो गया था कि चुनाव सभाओं में यह देखने को भी मिला. उनकी चाल ढाल अंदाज और बयान ऐसा था, जैसे वे अभी से ही मुख्यमंत्री बन गए हैं.
किसी भी तरह सत्ता में आने के लिए तेजस्वी ने बिहार के मतदाताओं को मूर्ख समझ कर ऐसे ऐसे वायदे किए, जो कभी पूरे नहीं हो सकते थे. बिहार की जनता ने इसको भली भांति समझ लिया था. राजद 25 सीटों पर आगे चल रही थी. कांग्रेस का तो सबसे बुरा हाल है. मतगणना में कांग्रेस का एक उम्मीदवार आगे चल रहा था. बिहार चुनाव परिणाम ने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को करारा झटका दिया है और उन्हें यह सबक दिया है कि जिसका जो काम है, उसी को वह करने दो. प्रशांत किशोर एक चुनाव रणनीतिकार है. लेकिन वह राजनेता नहीं हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम ने देश की राजनीति को एक नई दिशा दिखाई है. इस चुनाव परिणाम ने अगले साल होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए कुछ सबक और जीत का गुरु मंत्र भी दिया है. हालांकि बिहार में एनडीए की जीत के कई महत्वपूर्ण फैक्टर हैं. उनमें विकास तो है ही. नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सड़कों का जाल बिछा है. 24 घंटे बिजली, पानी, 125 यूनिट बिजली फ्री, राशन कार्ड, मुफ्त अनाज, मुफ्त शिक्षा और ऐन चुनाव के ठीक पहले जीविका दीदियों के खाते में ₹10000 का उपहार, स्कूल के बच्चों को उपहार, बेरोजगारी भत्ता इत्यादि बहुत से मुद्दे हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार की जीत को ऐतिहासिक बना दिया.
बिहार चुनाव परिणाम ने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. क्योंकि 2026 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव है. बिहार जीतने के बाद भाजपा का विजय रथ बंगाल में प्रवेश करेगा और दीदी का किला ध्वस्त करेगा. अभी से ही भाजपा कार्यकर्ता कह रहे हैं. बंगाल के भाजपा कार्यकर्ता और नेता बिहार चुनाव परिणाम से काफी गदगद हैं. सिलीगुड़ी में सिलीगुड़ी के विधायक शंकर घोष से लेकर सांसद राजू विष्ट के अलावा प्रदेश भाजपा के नेता और संगठन से जुड़े लोग पूरे जोश में नजर आ रहे हैं. यहां विजय रैली का आयोजन होगा.
बिहार चुनाव परिणाम ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जरूर कुछ सोचने पर मजबूर किया है. अगर बिहार में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के पीछे किसी गुरुमंत्र को ढूंढा जाए तो स्पष्ट है कि बिहार की आधी आबादी नारी शक्ति ने एनडीए की नैया को किनारे लगाया है. चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रणनीति काम कर गई. बिहार सरकार ने महिलाओं के लिए अपनी सरकार के खजाने का मुंह खोल दिया. इसका फायदा नीतीश कुमार को मिला. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बंगाल में नारी सशक्तिकरण के लिए बंगाल की महिलाओं को लखी भंडार के तहत हर महीने 1000 से लेकर ₹1200 उनके खाते में भेज रही है.
बिहार चुनाव परिणाम ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह संदेश दिया है कि अगर 2026 का चुनाव जीतना है तो बिहार की तरह बंगाल में भी महिलाओं के लिए राज खजाने का मुंह खोलना होगा. वर्तमान में बंगाल की महिलाओं को लखी भंडार के तहत मिलने वाली राशि काफी नहीं है. अगर ममता बनर्जी को 2026 में बंगाल जीतना है तो उन्हें लखी भंडार की राशि भी बढ़ानी होगी. इसके अलावा राज्य में कुछ यूनिट बिजली फ्री पर भी चिंतन करना होगा. क्योंकि आज का मतदाता वायदो पर भरोसा नहीं करता है. जो पार्टी या राजनीतिक दल उसे लाभ देता है, वह अपना मत भी उसी पार्टी या राजनीतिक दल को समर्पित करता है.
बहरहाल बिहार चुनाव के नतीजों ने बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों को भी चकरा दिया है. देर रात तक नतीजे आने के बाद हारी हुई पार्टियों को अपनी हार और विजई पार्टियों को अपनी जीत से कुछ सीखने और समझने का अवसर मिलेगा. इस चुनाव परिणाम ने बिहार के मतदाताओं की जागरूकता और बुद्धिमत्ता की भी झलक प्रस्तुत की है. जिस बिहार से पूरे देश में सर्वाधिक आईएएस अधिकारी और आईपीएस अधिकारी आते हैं, अगर उस राज्य का राजा एक नवीं फेल व्यक्ति होता, तो जरा सोचिए, उस राज्य की जनता और नौकरशाह कितने शर्मिंदा होते!
