November 17, 2024
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इस बार होलिका जलाने के लिए मिलेंगे सिर्फ ढाई घंटे!

वर्ष 2023 की होली और होलिका दहन का अंदाज कुछ नया होगा. खासकर होलिका दहन के लिए आपको ज्यादा समय नहीं मिलने वाला है. अगर आप हिंदू पंचांग पर विश्वास रखते हैं तो सिर्फ 2 अथवा ढाई घंटे ही आपको होलिका जलाने के लिए मिलने जा रहे हैं.

होली 8 मार्च को है. उस से 1 दिन पहले यानी 7 मार्च को होलिका दहन होगा. हर साल फागुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन मनाया जाता है. इसके 1 दिन बाद रंगो का उत्सव होली खेली जाती है.विद्वानों और पंडितों के अनुसार हिंदू शास्त्र और हिंदू पंचांग 7 मार्च को होलिका दहन के लिए काफी कम समय बताते हैं.

हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल के दौरान किया जाने वाला सबसे अच्छा माना जाता है. प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के ठीक बाद की अवधि. इस बार होलिका दहन का मुहूर्त शाम 6:24 से 8:51 तक उपलब्ध रहेगा. यानी होलिका दहन की कुल अवधि 2 घंटे 27 मिनट निर्धारित की गई है. भद्रा मुख समय 7 मार्च को दोपहर 2:58 से शाम 5:06 तक रहेगा. जबकि भद्रा पूंछ 7 मार्च को शाम 4:53 से 6:10 तक होगा. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च 2023 को शाम 4:17 से आरंभ होगी.

आपको बताते चलें कि होलिका दहन की कहानी विष्णु के भक्त प्रहलाद उसके पिता हिरण्यकश्यप और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है. ऐसी मान्यता है कि होलिका की आग बुराई को जलाने का प्रतीक है. इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष में होली मनाई जाती है.

प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर रहता था. उसे अपने बल का काफी अहंकार था. उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया था. हिरण कश्यप का पुत्र था प्रहलाद जो भगवान विष्णु का भक्त था. प्रहलाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण कश्यप ने अपने पुत्र को कठोर से कठोर दंड दिए फिर भी प्रह्लाद ने अपनी तपस्या और भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा.

हिरण कश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती. प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण कश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठे. होलिका ने ऐसा ही किया. परंतु आग में बैठने पर होलिका तो जल गई जबकि प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ.

इस तरह से अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में होली का त्यौहार देखा जाता है.उसी दिन से हर साल विष्णु भक्त प्रहलाद की याद में होलिका जलाई जाती है और उसके अगले दिन आनंद और उमंग की होली खेली जाती है.

प्रतीक के रूप में होलिका दहन में लकड़ियां जलाई जाती हैं. लेकिन इसमें कभी भी आम, वट और पीपल की लकड़ी नहीं जलानी चाहिए.

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