जिस तरह से राज्य सरकार के साथ मिलकर राज्य सिंचाई विभाग ने उत्तर बंगाल में हर साल आने वाली बाढ़ की रोकथाम के लिए मास्टर प्लान तैयार किया है, अगर उसका सही तरीके से क्रियान्वयन होता है तो भूटान की सीमा से लगे उत्तर बंगाल के निवासियों तथा ड्वॉरस के लोगों को बाढ़ का सामना नहीं करना पड़ सकता है. हर साल उत्तर बंगाल में बाढ़ के चलते जान माल का भारी नुकसान होता है. बाढ़ के लिए संवेदनशील इलाके हैं माल बाजार, वानरहाट, बीरपारा, कालचीनी, मदारीहाट, मेटिली, भूटान सीमा से सेट क्षेत्र,Dooars इत्यादि.
जो फार्मूला तैयार किया गया है, उसके अनुसार राज्य सरकार के फंड से पैसा भी खर्च नहीं होगा और बरसाती नदियों की ड्रेजिंग भी हो जाएगी. उल्टे सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होगी. उत्तर बंगाल में बाढ़ के लिए जिम्मेदार तीस्ता नदी के अलावा डिमडीमा, पगली, दया मारा, बसरा, तोरसा नदी, मरा तोरसा, जुरंती, घीस आदि हैं. यह सभी बरसाती नदियां हैं और भूटान के जल प्रवाह उत्तर बंगाल में फैलाकर बाढ की विभीषिका उत्पन्न करती हैं. हर साल इन नदियों की स्थिति बरसात में खतरनाक हो जाती है. भूटान में भारी बारिश के चलते कभी भी इन नदियों में अचानक हड़प्पा आ जाती है. नदी किनारे के इलाकों में पानी का स्तर बढ़कर बाढ का स्वरूप धारण कर लेता है.
तीस्ता नदी की ड्रेजिंग की जिम्मेदारी राज्य खनिज विकास निगम को सौंपी गई है. जबकि Dooars के भूटान सीमावर्ती नदियों की ड्रेजिंग सिंचाई विभाग करवाएगा. जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जिले में बहने वाली कुछ नदियों की रिपोर्ट राज्य सिंचाई विभाग को पहले ही सौंप दी गई है. मानसून बीतने के बाद नदियों में ड्रेजिंग का प्रस्ताव राज्य सिंचाई विभाग को भी भेज दिया गया है. इस साल नदियों में रेत, कंकड़ जमा होने, नदी का तल ऊंचा होने, भूटान की पहाड़ियों से कितनी रेत आती है, इसके अलावा डोलोमाइट और कंकड़ उत्तर बंगाल की इन नदियों में जमा हो जाते हैं, इत्यादि सेडिमेंटेशन स्टडी कर डीपीआर बनाकर राज्य सिंचाई विभाग को भेजा जा चुका है.
मानसून के बाद जिन नदियों में ड्रेजिंग हो सकती है, उनमें अलीपुरद्वार जिले के बीरपारा के पास दीमडीमा, पगली ,मदारीहाट की दया मारा, कालचीनी की बसरा और तोरसा नदी शामिल है. कूचबिहार जिले में मरी तोरसा और बूढी तोरसा दोनों नदियों में ड्रेजिंग की जाएगी. जलपाईगुड़ी जिले में बानरहाट के नजदीक रेति- सुकृति, माल बाजार की घीस नदी और मैटिली की जुरंतो नदी में भी ड्रेजिंग की जा सकती है. जो लोग भूटान सीमा के नजदीक Dooars क्षेत्र में रहते हैं, उन्हें आगामी कुछ बरसों में बाढ़ की स्थिति का सामना शायद ना करना पड़े.
लेकिन यह तभी संभव है, जब कार्य योजना बन जाए और राज्य सरकार की स्वीकृति की मुहर लग जाए. सिंचाई विभाग ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि नदियों से प्राप्त रेत और पत्थर बेचकर ड्रेजिंग का खर्च निकाल जाएगा. इससे राज्य सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होगी. हालांकि यह काम थोड़ा कठिन भी है, परंतु उत्तर बंगाल को बाढ़ से बचाने के लिए राज्य सरकार को पहल तो करनी ही होगी. राज्य सरकार का काम तब आसान हो जाता, जब भारत भूटान संयुक्त नदी आयोग का गठन हो जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो सका है.
भारत भूटान संयुक्त नदी आयोग का गठन नहीं होने के लिए राज्य सिंचाई मंत्री मानस भुईया केंद्र पर आरोप लगाते हैं.वे कहते हैं कि भूटान सीमा से लगे इलाकों में बाढ नियंत्रण के लिए केंद्र की ओर से कोई पैसा नहीं दिया जाता है. इसलिए राज्य सरकार की मजबूरी है कि रेत बेचकर पैसा निकाला जाए. अध्ययनों से भी पता चलता है कि भूटान में जब भारी बारिश होती है, तो उत्तर बंगाल की नदियों में भूटान की गाद और मलबा भर जाता है. यह गाद और मलबा नदी के तल में बैठ जाता है. इसकी सफाई नहीं होने से पानी आसपास के इलाकों में फैल जाता है और बाढ़ का स्वरूप धारण कर लेता है. इसलिए इन नदियों में ड्रेजिंग की योजना एक अच्छा कदम माना जा सकता है
. केंद्र सरकार से ना उम्मीद होने के बाद राज्य सरकार ने यह बीड़ा उठाया है. संकेत मिल रहे हैं कि अगले मानसून के पहले इन नदियों में ड्रेजिंग हो जाएगी. मानसून बीतने के बाद इस दिशा में तेजी से कार्य होने की उम्मीद है. डीपीआर से लेकर टेंडर का काम इसी साल हो सकता है. योजना के अनुसार राज्य सरकार का इसमें एक पैसा भी खर्च नहीं होगा. उल्टे राजस्व की प्राप्ति होने वाली है. बहरहाल देखना होगा कि राज्य सिंचाई विभाग के साथ मिलकर राज्य सरकार अपने मिशन में कितना कामयाब हो पाती है.