August 8, 2025
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बांग्ला बांग्लादेशियों की भाषा है?

दिल्ली पुलिस द्वारा कथित तौर पर एक पत्र लिखने और उस पत्र में कथित तौर पर बांग्ला को बांग्लादेशी भाषा बताने का विवाद अब गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे करोड़ों बांग्लाभाषी लोगों का अपमान बताया है और दिल्ली पुलिस से माफी मांगने को कहा है. भारतीय जनता पार्टी इसे घुसपैठियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का ममता बनर्जी द्वारा बचाव करार साबित कर रही है.

ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी अब चुप रहने वाली नहीं है और इस मुद्दे को राज्य से लेकर दिल्ली तक ले जाना चाहती है. उन्होंने सोमवार की शाम टीएमसी के सांसदों के साथ एक अहम वर्चुअल बैठक की है. सूत्र बता रहे हैं कि निश्चित रूप से यह मुद्दा संसद के अधिवेशन में उठाया जाएगा. इस मुद्दे को लेकर प्रदेश स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक टीएमसी के लोग संग्राम भी कर सकते हैं.

पश्चिम बंगाल में चल रहे भाषा आंदोलन के बीच रोज कुछ नई- नई तस्वीरें उभर कर सामने आ रही हैं. बांग्ला भाषा को कथित तौर पर बांग्लादेशी कहने से मचा बवाल अब तूल पकड़ने लगा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे असंवैधानिक और राष्ट्रीय विरोधी करार दिया है. मुख्यमंत्री को जैसे ही मौका लगता है, यह मुद्दा लेकर वह बंगाल की जनता की हमदर्द बनने में कोई कोर कसर नहीं उठाएगी. वर्तमान में अन्य सारे मुद्दे गौण है और यही एक ताजा मुद्दा सब पर भारी पड़ रहा है.

ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री को काफी समय से ऐसे मुद्दे की तलाश थी. दिल्ली पुलिस के एक कथित पत्र में बांग्ला भाषा को कथित तौर पर बांग्लादेशी कहने से यह संग्राम बंगाल बनाम केंद्र के बीच छिड़ गया है. हालांकि केंद्र सरकार और प्रदेश भाजपा के नेता अमित मालवीय सफाई दे चुके हैं कि दिल्ली पुलिस की मंशा यह नहीं थी, जो ममता बनर्जी बता रही है. इस मुद्दे को तूल देने के कारण अमित मालवीय इसे अत्यंत खतरनाक और भड़काऊ मान रहे हैं.

उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की मांग तक कर डाली है. अमित मालवीय ने सफाई में कहा है कि दिल्ली पुलिस ने कभी भी बंगाली को बांग्लादेशी नहीं कहा. बल्कि इस शब्द का इस्तेमाल अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए किया गया है. उन्होंने दावा किया है कि बांग्लादेश में जो भाषा बोली जाती है, उस भाषा का लहजा, शब्दावली और बोली भारतीय बांग्ला भाषा से अलग है.

ममता बनर्जी दिल्ली पुलिस के जरिए केंद्र पर हमलावर है. ममता बनर्जी ने कहा देखिए कैसे भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सीधे नियंत्रण में दिल्ली पुलिस बंगाली को बांग्लादेशी भाषा बता रही है. ममता बनर्जी ने विगत दिनों दिल्ली पुलिस पर जमकर निशाना साधा था. इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म x पर दिल्ली पुलिस का एक पत्र जारी किया और उसमें लिखा कि यह कितनी खतरनाक बात है कि दिल्ली पुलिस बंगाली भाषा को बांग्लादेशी भाषा कहती है.

ममता बनर्जी को बैठे बिठाये एक ज्वलंत मुद्दा हाथ लग गय गया है. उन्हें लगता है कि इस मुद्दे के जरिए वह 2026 का विधानसभा चुनाव आसानी से जीत सकती है. वह प्रदेश के लोगों खासकर बंगाली समुदाय को अपने पक्ष में कर सकती हैं. इसलिए वह भाषणों और अन्य मौकों पर यह कहना नहीं भूलती कि बंगाली हमारी मातृभाषा है. रविंद्र नाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद की भाषा है. यह वह भाषा है, जिसमें हमारा राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत लिखा गया है. ऐसे में बंगाली भाषा को कोई बांग्लादेशी भाषा कहता है तो यह संविधान का अपमान होता है.

अमित मालवीय ने दावा किया है कि दिल्ली पुलिस ने कहीं भी बंगाली भाषा को बांग्लादेशी भाषा नहीं कहा. बल्कि इस शब्द का इस्तेमाल घुसपैठियों की भाषा पहचान के लिए किया गया. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की बोली सिलहटी का जिक्र है, जो भारतीय बंगाली भाषा से अलग है.

सीपीएम के नेता मोहम्मद सलीम ने भी ममता बनर्जी के मुद्दे का समर्थन करना शुरू कर दिया है. वह भी ममता बनर्जी की बोली बोल रहे हैं और दिल्ली पुलिस को आड़े हाथ ले रहे हैं. उन्होंने x पर लिखा है कि दिल्ली पुलिस को क्या बांग्लादेशी भाषा का मतलब नहीं पता है? क्या उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची की जानकारी नहीं है? जिसमें बंगाली भाषा को मान्यता दी गई है. मोहम्मद सलीम ने दिल्ली पुलिस को अशिक्षित तक कह डाला. अब देखना होगा कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस मुद्दे को कहां तक ले जाती है और बंगाल की जनता का समर्थन पाने में कितना कामयाब हो पाती है!

मालूम हो कि दिल्ली पुलिस ने वैध दस्तावेजों के बगैर भारत में रह रहे आठ संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों की गिरफ्तारी के संबंध में बंग भवन के कार्यालय प्रभारी को एक पत्र लिखा था. दिल्ली पुलिस ने अनुरोध किया था कि बंग भवन गिरफ्तार लोगों के पास से उपलब्ध बांग्लादेशी भाषा वाले दस्तावेजों को हिंदी या अंग्रेजी में अनुवाद करके बताए. ममता बनर्जी को इसी बांग्लादेशी भाषा पर ऐतराज है. अगर कोई दूसरा मौका होता तो शायद यह इतना तूल नहीं पकड़ता परंतु यह चुनाव का समय है और चुनाव से पहले की तैयारी भी है. इसलिए इसे आसानी से भला कैसे छोड़ा जा सकता था!

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