ऐसा लगता है कि उत्तर बंग विश्वविद्यालय को उपकुलपति नहीं मिलने जा रहा है. पिछले कई महीनों से उपकुलपति का पद रिक्त है. उत्तरबंग यूनिवर्सिटी के फाइनेंसर ऑफिसर तथा कार्यवाहक रजिस्ट्रार का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है. ऐसे में उत्तर बंग विश्वविद्यालय दिशाहीन होने के कगार पर खड़ा है. अब तो भगवान ही मालिक है!
यह सब इसलिए कहा जा रहा है कि कोलकाता हाईकोर्ट ने उपकुलपति का पद खारिज कर दिया है. राज्य सरकार अब कोई भी उपकुलपति नियुक्त नहीं कर सकती. हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार नियम व कानून को ताक पर रखकर जिन उपकुलपतियों की ममता सरकार ने नियुक्ति की थी, उन्हें भी सेवा मुक्त कर दिया गया है.
राज्य में जिन उपकुलपतियों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उन्हें फिर से नियुक्त करने का अधिकार नहीं है. हाई कोर्ट ने एक झटके से राज्य में 29 उपकुलपतियों का पद निरस्त कर दिया है. राजनीतिक गलियारों में हाई कोर्ट का फैसला किसी धमाके से कम नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक इसे ममता सरकार को झटका करार दे रहे हैं.
लेकिन राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने इसे झटका मानने से इनकार कर दिया है.उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट के फैसले से राज्य सरकार को किसी तरह की हानि नहीं होने वाली है. उन्होंने माना है कि राज्यपाल के हस्ताक्षर के बगैर राज्य सरकार कुलपतियों की नियुक्ति नहीं कर सकती और यही बात कोर्ट ने कही है.
मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की खंडपीठ ने फैसला सुनाया है. चर्चा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है. राज्य में करीब 25 विश्वविद्यालयों में उपकुलपतियों की नियुक्ति में यूजीसी की गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया था. नेशनलिस्ट प्रोफेसर एंड रिसर्चरस एसोसिएशन ने इस मांग को उठाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. उस समय राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ थे.
कोलकाता हाई कोर्ट के ताजा फैसले ने उत्तरबंग विश्वविद्यालय को निराश ही किया है, जो नए उपकुलपति का इंतजार कर रहा था. लेकिन अब लगता है कि यह विश्वविद्यालय बिना नाथ का ही रहेगा. ऐसे में विश्वविद्यालय में अराजकता बढ़ सकती है.