सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सिलीगुड़ी आ रही हैं. लेकिन उससे पहले ही पहाड़ में एक राजनीतिक शंखनाद शुरू कर दिया गया है. मजे की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल के साथ गठजोड़ करने वाली पार्टी और जीटीए में सत्तारूढ अनित थापा की पार्टी ने ही यह शंखनाद किया है और अपनी मांग को लेकर मैदान में है. इस पार्टी की जो मांग है, अगर उसे पूरा किया जाता है तो ऐसे में सिलीगुड़ी को अलग जिला घोषित करना मजबूरी होगी. हालांकि यह भी जान लेना चाहिए कि यह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथ में भी नहीं है. परंतु राजनीति हो रही है.
दरअसल राज्य सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती. क्योंकि यह केंद्र का मामला है. 1998 में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल समझौते के तहत केंद्र ने संविधान में संशोधन किया था और दार्जिलिंग पहाड़ में द्विस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू की थी. जबकि सिलीगुड़ी महकमा में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था. सिलीगुड़ी महकमा परिषद के गठन के बाद 2011 में डीजीएचसी की जगह जीटीए समझौता हुआ था. आज भी यह जारी है.
अब पहाड़ में भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा की मांग के बाद सिलीगुड़ी का बुद्धिजीवी वर्ग सिलीगुड़ी को अलग जिला के रूप में देखने लगा है. लोग सवाल करने लगे हैं कि क्या सिलीगुड़ी को जिला बनाया जा सकता है? भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा ने दार्जिलिंग और कालिमपोंग जिलों में द्विस्तरीय पंचायत व्यवस्था को हटाकर त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को लागू करने तथा इन दोनों जिलों में अलग-अलग जिला परिषद बनाने की मांग उठाई है. अभी पहाड़ में द्विस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू है और यह संविधान के तहत है.
2026 में बंगाल में विधानसभा का चुनाव है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वोट कार्ड खेल सकती है और गेंद को केंद्र के पाले में डाल सकती हैं. भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा की मांग को मानने के लिए यह जरूरी है कि संवैधानिक दायित्व का पालन किया जाए. इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी. इसके लिए केंद्र सरकार की मेहरबानी की जरूरत है. और भी कई जटिलताएं और खाना पूरी की आवश्यकता होगी, जो केंद्र के सहयोग के बगैर संभव ही नहीं है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि दार्जिलिंग और कालिमपोंग को जिला परिषद बनाने की मांग ऐसी पार्टी ने उठाई है, जो पहाड़ में सत्ता में है. अगर केंद्र ने दार्जिलिंग और कालिमपोंग को जिला परिषद घोषित किया तो जीटीए का भला क्या महत्व रह जाएगा! राजनीतिक नेताओं को यह बात समझ में नहीं आ रही है. परंतु जीटीए के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी शक्ति प्रसाद शर्मा इससे तनिक भी चिंतित नहीं है और कहते हैं कि इन दोनों जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था और जिला परिषद का गठन हो जाता है तो यहां विकास के ढेर सारे कार्य होंगे. उनके हिसाब से जीटीए और जिला परिषद दोनों अपने-अपने दायरे में काम करेंगे.
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि इस पर राजनीति खेली जा रही है. पहाड़, समतल और Dooars का वोट पाने के लिए जीटीए के अध्यक्ष अनित थापा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर राजनीतिक रणनीति तैयार कर रहे हैं और इस तरह से केंद्र यानी भाजपा की शक्ति को कमजोर करना चाहते हैं. सिलीगुड़ी में सिलीगुड़ी महकमा परिषद है. लेकिन जब दार्जिलिंग और कालिमपोंग को जिला परिषद घोषित किया जाता है तो सिलीगुड़ी को अलग जिला बनाना मजबूरी होगी. परंतु सिलीगुड़ी अलग जिला कैसे बनेगा? इसमें बहुत बड़ी संवैधानिक अड़चन आ सकती है. हो सकता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सिलीगुड़ी को लेकर एक बड़ी घोषणा कर दें, परंतु इससे पहाड़ की राजनीति और ज्यादा आक्रामक हो सकती है.
पहाड़ में कई तरह की संवैधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं. हालांकि वर्तमान में यह केवल अटकलें हैं. ना तो उसका कोई रोड मैप है और ना ही कोई तैयारी. उधर भाजपा के एजेंडे में दार्जिलिंग समस्या के स्थाई समाधान की बात कही गई है और हाल ही में नई दिल्ली में एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई भी गई थी. हालांकि इस बैठक में राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ था. इसके लिए भाजपा टीएमसी पर हमला कर रही है.
आरोप प्रत्यारोप के बीच वर्तमान में तो यही चर्चा हो रही है कि अगर भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा की मांग को मान लिया गया तो ऐसे में सिलीगुड़ी को अलग जिला बनाना पड़ सकता है. हालांकि इस बारे में राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं की ओर से कोई बयान नहीं आया है. अटकलों का दौर जारी है. जो भी हो अगर सिलीगुड़ी जिला बनता है तो इससे सिलीगुड़ी के लोगों को काफी लाभ होने वाला है.