October 28, 2025
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क्या SIR को लेकर बंगाल में ‘खून-खराबे’ होंगे?

पश्चिम बंगाल समेत देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में SIR शुरू हो गया है. लेकिन उनमें पश्चिम बंगाल की चर्चा करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि यहां SIR को लेकर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के द्वारा पहले से ही धमकी दी जा रही है. तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं ने धमकी दी थी कि अगर बंगाल में एस आई आर लागू किया गया तो यहां खून खराबे की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर हमला बोला था. उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि आग से मत खेलो. उन्होंने कहा था कि बंगाल बिहार नहीं है. यह वही बंगाल है जहां अंग्रेजों को डर लगता था. इसलिए उन्होंने राजधानी दिल्ली में बसाया.

ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर भी आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग अपनी सीमाएं लांघ रहा है और चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले ही सरकारी अधिकारियों को धमका रहा है. बहरहाल तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की धमकियों की परवाह नहीं करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने एस आई आर लागू कर दिया है. इसके साथ ही बंगाल की राजनीति में तूफान खड़ा होने लगा है.

जिस समय मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार बंगाल समेत देश के अन्य राज्यों में SIR लागू करने की घोषणा कर रहे थे, तो कुछ पत्रकारों ने टीएमसी नेताओं के खून खराबे वाले बयान की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया और पूछा कि इस स्थिति में चुनाव आयोग क्या करेगा? तो ज्ञानेश कुमार ने जवाब दिया कि कोई रुकावट नहीं है.

दरअसल उनका आशय यह था कि यह एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. राज्य सरकार एक संवैधानिक संस्था है. चाहे मुख्यमंत्री इसका विरोध करें या तृणमूल कांग्रेस के नेता खून खराबे की धमकी दें, राज्य सरकार को इसमें सहयोग करना होगा. चुनाव आयोग की प्रक्रिया पूरी करने के लिए राज्य सरकार को जरूरी कर्मचारी और सहयोग उपलब्ध कराना ही होगा. यह उनका दायित्व है.

संविधान के अनुच्छेद 324 में अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही गई है. राज्य सरकार इसके लिए बाध्य भी है. चुनाव आयोग भी एक संवैधानिक संस्था है. जैसे राज्य सरकार संविधान के तहत अपने दायित्व का पालन करती है, इसी प्रकार से चुनाव आयोग भी संविधान के अनुसार अपना काम करता है. राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है. राज्य सरकार चुनाव आयोग के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकती और चुनाव आयोग के काम में मदद करेगी.

बहरहाल आज से राज्य में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन शुरू हो गया है. लेकिन जैसे-जैसे इसका कार्य आगे बढ़ता जाएगा, मुश्किलें भी सामने आती जाएंगी. जैसे 2002 के बाद बने नए मतदाताओं को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक कागजातों की आवश्यकता पड़ सकती है.

यह कागजात क्या हो सकते हैं, यह कितने आसान होंगे और कितने लोगों के पास उपलब्ध होंगे? अगर सब कुछ सरल हुआ तो ठीक है वरना इन कागजातों को एकत्र करना मुश्किल हुआ तो स्थिति बिगड़ सकती है. क्योंकि कोई भी वैध व्यक्ति मतदाता सूची से अपना नाम कटता हुआ नहीं देख सकता है.

इन मुश्किलों से निपटने के लिए राज्य की जनता और राज्य सरकार कितना सक्षम होगी, यह आने वाले समय में पता चलेगा. अभी तो इसकी शुरुआत हुई है. आगे आगे देखना होगा कि बंगाल में SIR किस करवट लेता है!

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