उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय का दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है. सीबीआई के छापे के बाद एक पर एक घटी कई घटनाओं ने विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल किया है. ओम प्रकाश मिश्रा उपकुलपति के कार्यभार से मुक्त हो चुके हैं. इस समय उत्तरबंग विश्वविद्यालय प्रशासन बिना नाथ का रह गया है. ऐसे में विश्वविद्यालय के सहायक कंट्रोलर मनमाना फैसला कर रहे हैं. जिसकी सभी तबकों में घोर आलोचना और निंदा की जा रही है.
वर्तमान में सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्रों में उत्तरबंग विश्वविद्यालय के सहायक कंट्रोलर के तुगलकी फरमान की चर्चा सुर्खियों में है. जिसमें विश्वविद्यालय के छात्रों की परीक्षा को लेकर सहायक कंट्रोलर ने फरमान जारी किया है कि बिरसा मुंडा कॉलेज और बानरहाट कार्तिक उरांव हिंदी गवर्नमेंट कॉलेज के ही विद्यार्थी केवल हिंदी में उत्तर पुस्तिका लिख सकेंगे. उपरोक्त के अलावा उत्तरबंग विश्वविद्यालय के अधीन सभी कॉलेजों के छात्र- छात्राओं को यह सुविधा नहीं मिलेगी.
ऐसे में यह सहज ही कल्पना की जा सकती है कि जिन छात्रों ने हिंदी में तैयारी की है, वे हिंदी के अलावा अन्य भाषा में उत्तर पुस्तिका में कैसे लिख सकेंगे. उत्तरबंग विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले से हिंदी भाषी छात्रों के पांव तले की धरती खिसक गई है. प्रशासन के इस फैसले के बाद एक तरफ जहां हिंदी भाषी छात्र आक्रामक हो रहे हैं, तो दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी हिंदी भाषी छात्रों के साथ दिख रहे हैं.
हिंदी भाषी छात्रों का कहना है कि आखिर उत्तरबंग विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारी उनके साथ कठोर मजाक कैसे कर सकते हैं. क्योंकि 2015 से ही उत्तरबंग विश्वविद्यालय में प्रश्न पत्र हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और नेपाली भाषा में तैयार होता रहा है. विश्वविद्यालय के परीक्षार्थी इन 4 भाषाओं में जो उनको बेहतर होता था, वे उत्तर पुस्तिका में उत्तर लिखते थे.
22 फरवरी से स्नातक प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा शुरू हो रही है. ऐसे में इतने कम समय में हिंदी भाषी छात्र अन्य भाषाओं में परीक्षा की तैयारी कैसे कर सकते हैं. यह सवाल छात्र-छात्राओं के अलावा तृणमूल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हिंदी प्रेम पर भी सवालिया निशान खड़ा कर रहा है. सिलीगुड़ी के हिंदी भाषी छात्र-छात्राओं के पक्ष में वाममर्चा नेता अशोक भट्टाचार्य भी उठ खड़े हुए हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उत्तरबंग विश्वविद्यालय का फैसला गलत है. साथ ही उन्होंने ममता सरकार पर भी निशाना साधा है कि तृणमूल सरकार चुनाव से पहले कुछ कहती है और चुनाव के बाद कुछ करती है.
ना केवल अशोक भट्टाचार्य ही, बल्कि कांग्रेस नेता शंकर मालाकार, भाजपा नेता शंकर घोष, उत्तर बंगाल हिंदी अकादमी के सदस्य संजय शर्मा, नक्सलबाड़ी के भाजपा विधायक आनंदमय बर्मन समेत स्थानीय विभिन्न दलों के नेताओं ने उत्तरबंग विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले को गलत मानते हुए इसे तुगलकी फरमान बताया है और हिंदी भाषी छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया है.
आपको बताते चलें कि उत्तरबंग विश्वविद्यालय के अधिकतर महाविद्यालयों में हिंदी भाषी छात्रों की संख्या सर्वाधिक है. शंकर मालाकार ने कहा है कि ऐसे फैसले से छात्रों की परीक्षा पर बुरा असर पड़ सकता है. सिलीगुड़ी के भाजपा विधायक शंकर घोष ने एनबीयू के फैसले को बदलने की मांग की है. उधर हिंदी भाषी छात्र भी सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं.
इन सभी के बीच तृणमूल कांग्रेस की जिला अध्यक्ष पापिया घोष का बयान राहत देने वाला है. पापिया घोष ने कहा है कि इस संबंध में उत्तरब॔ग विश्वविद्यालय प्रशासन से बात की जाएगी और हिंदी भाषी छात्रों के हित में जो भी सही कदम होगा, उठाया जाएगा.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह साबित करना होगा कि उनका हिंदी प्रेम दिखावा नहीं बल्कि दिल से है. उम्मीद की जा रही है कि हिंदी भाषी छात्रों के हित में जल्द ही कदम उठाए जाएंगे.