कोर्ट के बारे में कहा जाता है कि वहां तारीख पे तारीख चलती है. यानी एक मुकदमा बरसों तक निलंबित रहता है. हालांकि इसके कई कारण हैं, पर यह पूरी तरह सत्य है कि समय पर लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है. पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों को आईना दिखाते हुए मुकदमों को लेकर गाइडलाइन जारी करने की बात कही है.
बरसों से यह कहा जा रहा है कि कोर्ट में मामले लंबित पड़े होते हैं. दीवानी का मामला हो अथवा आपराधिक मामले, फैसला आने में बरसों लग जाते हैं. आज स्थिति यह है कि आपराधिक मामले के फैसले आने में अगर न्यूनतम 10 साल लग जाते हैं तो दीवानी का तो पता ही नहीं कि मुकदमा करने वाला व्यक्ति फैसले के समय जीवित रहता है या नहीं. अब सुप्रीम कोर्ट को भी यह बात समझ में आ गई है.
पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को चेतावनी दी है और जैसे कहा है कि ऐसा नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सुर्खियों में है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दीवानी मामलों में मुद्दे तय नहीं होते. आपराधिक मामलों में आरोप तय नहीं होते. आखिर कठिनाई क्या है? अगर यह स्थिति जारी रही तो हम पूरे देश के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करेंगे. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने देश भर की अदालतों को अनुशासित होकर समय पर कार्य पूरा करने को कहा है.
आमतौर पर देखा जाता है कि आरोपी सालों तक जेल में बंद रहते हैं. लेकिन मुकदमा शुरू ही नहीं हो पाता. कुछ मामले तो ऐसे होते हैं, जहां चार्जशीट दाखिल हुए तीन-चार साल हो जाते हैं. लेकिन मुकदमा शुरू ही नहीं होता. जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 251 बी में यह प्रावधान है कि सत्र न्यायालय के मामलों में पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए. लेकिन अदालतों में इसका पालन ही नहीं हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी करीब दो साल से जेल में बंद था. चार्जशीट 2023 में दाखिल की गई थी. लेकिन कोर्ट ने अभी तक आरोप तय नहीं किया. जिसके कारण आरोपी जेल में बंद रहा. यह मामला बिहार से जुड़ा हुआ है. इसी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरविंद कुमार ने उपरोक्त टिप्पणी की है.
आमतौर पर यह कहा जाता है कि अदालतों में न्यायाधीश और विचारकों की कमी के चलते मुकदमे की कार्यवाही में विलंब होता है. कुछ हद तक यह बात सही भी है. लेकिन यह पूरी तरह सत्य नहीं है. क्योंकि यह भी देखा गया है कि कई मामलों में तो बिंदु तय करने में कई साल लग जाते हैं. जबकि होना चाहिए कि एक बार आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो गया तो निर्धारित समय अवधि के भीतर आरोपी पर आरोप तय हो जाना चाहिए. पर कभी न्यायाधीश छुट्टी पर रहते हैं तो कभी बीमारी या अन्य कई तकनीकी कारणों से मुकदमे की कार्यवाही में विलंब होता जाता है.
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि अदालतों में मुकदमे की कार्यवाही समय पर नहीं होती और इसीलिए लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है और यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के लिए स्पष्ट गाइडलाइन जारी करने की बात कही है. अदालतों में मुकदमे की कार्यवाही समय पर हो और लोगों को समय पर न्याय मिल सके, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहल कर दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को न्यायालय मित्र नियुक्त किया है. जबकि भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल से इस मामले में सहायता की अपील की है. सुप्रीम कोर्ट की पहल के बाद उम्मीद की जा रही है कि भारत के लोगों को समय पर न्याय मिल सकेगा.
