अगर सिलीगुड़ी के लोगों से पूछा जाए कि दार्जिलिंग, कालिमपोंग और सिक्किम में से किस स्थान पर जाना उन्हें अधिक सुविधाजनक और जाम मुक्त लगता है, किस स्थान पर बिना ट्रैफिक जाम में फंसे आसानी से पहुंचा जा सकता है? इसका उत्तर देना शायद बड़ा कठिन होगा.क्योंकि इन दिनों दार्जिलिंग ही नहीं, कालिमपोंग और सिक्किम में यात्रा करना काफी कठिन काम है. दार्जिलिंग का ट्रैफिक जाम तो सर दर्द ही बन चुका है और सिक्किम जाने का मतलब कम से कम तीन-चार घंटे फालतू समय बर्बाद करना है. इसका असर न केवल पर्यटन क्षेत्र पर ही पड़ रहा है, बल्कि उद्योग व्यवसाय और कारोबार भी प्रभावित हो रहा है.
सिलीगुड़ी और पहाड़ के लोग रोज-रोज के लगने वाले जाम से काफी परेशान हो गए हैं. दार्जिलिंग में तो अब वहां के लोगों के द्वारा बाकायदा आंदोलन छेड़ दिया गया है. कई संगठनों के लोग जीटीए, पुलिस प्रशासन और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं. विभिन्न संगठनों और संस्थाओं के द्वारा यहां आए दिन होने वाले जाम के स्थाई समाधान के लिए आवाज उठाई जा रही है. हिमालय यातायात समन्वय समिति दार्जिलिंग के लोग पुरजोर तरीके से अपनी बात रख रहे हैं.
ऐसा कोई भी दिन नहीं होता जब पहाड़ में खासकर दार्जिलिंग में जाम नहीं लगता हो. अगर सिलीगुड़ी की तरह थोड़ा बहुत जाम लगे तो ठीक है, लेकिन यहां तो घंटों गाड़ियों को निकालने का रास्ता ही नहीं मिलता. गाड़ियां तो छोड़िए, पैदल सवार लोग भी आड़े तिरछे होकर निकलते हैं. कभी-कभी उन्हें भी देर तक इंतजार करना पड़ता है.बच्चे स्कूल जाते हैं. लौटकर कब घर आएंगे, यह उन्हें भी पता नहीं होता है. हालांकि यह स्थिति तो पूरे पहाड़ में है. चाहे वह कालिमपोंग हो, अथवा सिक्किम. परंतु दार्जिलिंग की तो बात ही कुछ अलग है. ऐसा नहीं है कि दार्जिलिंग में पहली बार ट्रैफिक जाम सर दर्द बना हुआ है.
लेकिन इन दिनों पर्यटन का मौसम चल रहा है. मैदानी इलाकों में तेज गर्मी और लू के चलते लोग पहाड़ों की ओर जा रहे हैं. कोलकाता, सिलीगुड़ी के अलावा देश के कोने-कोने से पर्यटक सिलीगुड़ी आकर पहाड़ों की ओर जा रहे हैं. दार्जिलिंग और पहाड़ी इलाकों में जाने वाली गाड़ियों की तादाद बढ़ी है . रास्ते संकीर्ण होने के चलते चालक ना तो ओवरटेक कर सकते हैं और ना ही तेज गाड़ियां भाग सकते हैं. दार्जिलिंग में तो पार्किंग का सर्वथा अभाव है. पार्किंग के अभाव में चालकों को सड़कों पर ही गाड़ियां खड़ी करनी पड़ती है. इससे घना जाम की स्थिति बन जाती है.
इस जाम को बढ़ाने में जीटीए और दार्जिलिंग नगर पालिका भी कम जिम्मेवार नहीं है. यहां आए दिन छोटे-मोटे कार्यक्रम, रैलियां और अन्य कार्यक्रमों के लिए प्रशासन के द्वारा अनुमति मिल जाती है. इससे भी ट्रैफिक जाम की समस्या गंभीर हो जाती है. हिमालयन यातायात समन्वय समिति दार्जिलिंग के द्वारा चौक बाजार इलाके में पोस्टिंग की गई है. इसमें ट्रैफिक जाम की समस्या के समाधान के लिए जिम्मेवारी तय करने की बात कही गई है. पोस्टर में सवाल उठाया गया है कि यह किसकी जिम्मेदारी है? केंद्र सरकार, राज्य सरकार अथवा जीटीए प्रशासन का? इसके साथ ही तीन बंदरों का चित्र भी अंकित किया गया है.
यहां गाड़ियों की भीड़ को पोस्टर में दिखाया गया है. दार्जिलिंग हिमालयन यातायात समन्वय समिति के अध्यक्ष पासांग शेरपा कहते हैं कि दार्जिलिंग में ट्रैफिक जाम इससे पहले इतना ज्यादा नहीं था. अब तो यह जाम नहीं, बल्कि ट्रैफिक लॉक ही कहिए. जब तक दार्जिलिंग की जनता जागरुक नहीं होगी, यहां से जाम की समस्या का समाधान नहीं होने वाला है. लोगों को जागना होगा. उसके साथ ही स्थानीय प्रशासन को किसी भी छोटे-मोटे राजनीतिक अथवा सामाजिक कार्यक्रम की अनुमति सड़क पर नहीं करने के लिए सख्त हिदायत देनी चाहिए.
ऐसा नहीं है कि जीटीए और दार्जिलिंग यातायात पुलिस लोगों को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. लेकिन यह प्रभावशाली कदम नहीं है. यहां बरसों से गाड़ी पार्क करने के लिए पार्किंग की व्यवस्था की मांग की जा रही है. परंतु जीटीए प्रशासन के द्वारा अभी तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है. केवल घोषणाएं होती हैं और कुछ नहीं. यहां के कई लोगों ने दार्जिलिंग के ट्रैफिक जाम के लिए सीधे-सीधे जीटीए प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया है.
लोगों का मानना है कि अगर ट्रैफिक जाम के समाधान के लिए प्रशासन के द्वारा उचित ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता और उसका सही तरीके से क्रियान्वयन होता,तो शायद दार्जिलिंग में ट्रैफिक जाम की समस्या इतनी विकराल नहीं होती. बहरहाल यह सवाल आपसे है कि दार्जिलिंग में ट्रैफिक जाम के लिए आप किसे ज्यादा कसूरवार मानते हैं और इसका स्थाई समाधान क्या होना चाहिए?