अगर आपका बच्चा विद्यालय में पढता है और बगैर लिखित परीक्षा के ही बच्चे का मूल्यांकन किया जाए तो कैसा लगेगा?
यह बहस का विषय है कि दूसरी कक्षा तक के बच्चों को कोई लिखित परीक्षा नहीं देनी होगी, तो क्या इससे उनका रचनात्मक विकास बाधित नहीं होगा? या यह भी कह सकते हैं कि अगर दूसरी कक्षा तक के बच्चे लिखित परीक्षा नहीं देंगे तो उनका मूल्यांकन किस तरह से हो सकेगा? लिखित परीक्षा नहीं देने से उनकी रचनात्मक प्रतिभा का विकास कैसे होगा? इस तरह के कई सवाल बांस का विषय हो सकते हैं और इस पर चिंतन किया जा सकता है.
परंतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा यानी एनसीएफ ने जो मसौदा तैयार किया है अगर उसके सुझाव को शिक्षा मंत्रालय मान लेता है तो दूसरी कक्षा तक कोई भी लिखित परीक्षा नहीं होगी. जबकि तीसरी कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक के बच्चों को लिखित परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. अब जरा एन सी एफ के मसौदे की मुख्य बात और तर्क जान लेते हैं. इसमें सुझाव दिया गया है कि तीसरी कक्षा से लिखित परीक्षा होनी चाहिए.
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के सुझाव के अनुसार बच्चों के बीच और उनके पठन-पाठन के दौरान मूल्यांकन में विविधता को बढ़ावा देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे अलग अलग तरीके से सीखते हैं और भिन्न तरीके से उसे व्यक्त करते हैं. सीखने के परिणाम तथा क्षमता संबंधी उपलब्धता का मूल्यांकन करने के अलग अलग तरीके हो सकते हैं. ऐसे में शिक्षक को एक समान सीखने के परिणाम के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार की पद्धतियों का विकास करना चाहिए.
मसौदे के अनुसार विद्यालय में विज्ञान की पढ़ाई को रुचिकर बनाने की आवश्यकता है. इसके साथ ही कक्षा,जमीनी अनुभव और प्रयोगशाला के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है. इस मसौदे के अनुसार विज्ञान की पढ़ाई केवल विषय के सिद्धांत और तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि सिद्धांत एवं वास्तविक जीवन के बीच संबंध, विज्ञान की प्रक्रिया क्षमता का ज्ञान प्राप्त करना और जानकारियों का उपयोग दुनिया को समझने में करना है.
अब शिक्षा मंत्रालय ने बुद्धिजीवियों से इस पर प्रतिक्रिया मांगी है. अगर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के मसौदे को मान लेने का सुझाव और प्रतिक्रिया सामने आती है तो शिक्षा मंत्रालय इसे लागू कर सकता है. ऐसी स्थिति में दूसरी कक्षा तक के बच्चों को कोई भी लिखित परीक्षा नहीं देनी होगी. ऐसे में छोटे बच्चों के बौद्धिक विकास से लेकर रचनात्मक विकास की कई जटिलताएं भी सामने आ सकती हैं.