October 3, 2025
Sevoke Road, Siliguri
Uncategorized

नेपाल की 2 साल की बच्ची जीवित देवी!

जहां विज्ञान की सीमा समाप्त हो जाती है, वहीं से एक अलौकिक दुनिया शुरू होती है, जिसमें केवल चमत्कार होते हैं. कुछ चमत्कार ऐसे होते हैं जिनसे पता चलता है कि ईश्वर और देवी देवता भी इसी धरती पर हैं. कुछ लोगों के पास अलौकिक शक्तियां होती हैं. यह अलौकिक शक्तियां ही अद्भुत बना देती हैं. विज्ञान जिसे समझ नहीं पाता, लेकिन धर्म और अनुभूति एक नया ज्ञान कराती है.

नेपाल की प्राचीन परंपराओं में से एक अनोखी परंपरा, जहां 2 साल की बच्ची ने सभी कसौटियों और परीक्षाओं को सफलतापूर्वक बुद्धि और साहस के साथ सामना किया और जीवित देवी के रूप में सिंहासन प्राप्त किया. ऐसी मासूम बच्ची के स्वास्थ्य की ही नहीं बल्कि उसकी काया और साहस की भी परीक्षा ली जाती है. जो बच्ची इस परीक्षा में खरी उतरती है, उसे जीवित देवी चुना जाता है. ऐसी कन्या को माता-पिता से अलग रखा जाता है.

आप चौंक जाएंगे, यह परंपरा जानकर. पिछले दिनों इसी अद्भुत परंपरा में नई कुमारी अथवा जीवित देवी के रूप में दो साल 8 महीने की एक बच्ची का चयन किया गया. बच्ची का नाम आर्य तारा शाक्य है.उसने सभी मानकों पर खरे उतरते हुए पारंपरिक कुमारी सिंहासन ग्रहण कर लिया है. इस उम्र में जहां बच्चों को कोई होश और ज्ञान नहीं रहता है, वहां आर्य तारा ने सभी मानकों और कसौटियों पर खरे उतरकर यह साबित कर दिया है कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात!

नेपाल की इस प्राचीन परंपरा के अनुसार जीवित देवी या नई कुमारी का चयन शाक्य लड़कियों में से किया जाता है. ऐसी बच्ची को 12 मानक पूरे करने होते हैं, जिनमें बच्ची के कोई दांत टूटे ना हो, उसकी माहवारी शुरू नहीं होनी चाहिए. बच्ची के शरीर पर कोई भी खरोच या घाव नहीं होना चाहिए. उसका स्वास्थ्य अच्छा हो, उसमें भरपूर साहस हो, इत्यादि.

चयन कर्ताओं की एक टीम होती है, जो काफी बौद्धिक और अनुभवी भी होते हैं. जो बच्ची इस कसौटी पर खरी उतरती है, उसी का चयन किया जाता है. ऐसी जीवित देवी की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों करते हैं. परंपरा के अनुसार चयन प्रक्रिया में बच्चियों को अंधेरे कमरे में रखा जाता है, जहां भैंस का सर और डरावने मुखोटे रखे जाते हैं और बच्ची को बिना डरे बाहर आना होता है. इस भूमिका के लिए आर्य तारा को काफी कठोर चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा.

नेपाल में कुमारी पूजा की परंपरा 500 से 600 साल पुरानी है. मल्ल राजाओं के शासन में कुमारी पूजा की परंपरा शुरू हुई थी. कुमारी को देवी तलेजू का मानव रूप मानते हैं. इस परंपरा के अनुसार नेपाल के राष्ट्रपति की जीवित देवी की पूजा करने व इंद्र जात्रा महोत्सव में उनका आशीर्वाद लेने की परंपरा रही है.

हालांकि कुमारी चुनने वाले शाक्य समुदाय को बौद्ध माना जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. एक बार कुमारी चुनने के बाद हिंदू भी उसकी पूजा करने लग जाते हैं. बौद्ध हो या हिंदू, उनकी नजर में ऐसी कुमारी देवी होती है. हालांकि भारत में भी कुमारी को देवी के रूप में पूजा जाता है. लेकिन नेपाल की जो प्राचीन परंपरा है, और जिसमें कुमारी के चयन के लिए कठोर परीक्षा देनी होती है, उस तरह की परीक्षा भारतवर्ष में नहीं होती और ना ही सिंहासन जैसी कोई परिपाटी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *