पश्चिम बंगाल में शिक्षक नियुक्ति भ्रष्टाचार का मामला अभी शांत भी नहीं हो सका है कि इसी दरमियान सरकारी कॉलेजों में प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता का आरोप लगने लगा है. इसके बाद शिक्षा विभाग सवालों के घेरे में आ गया है. हालांकि सीएससी द्वारा इसका खंडन भी किया गया है. परंतु दाग तो लग ही चुका है.
पश्चिम बंगाल में सरकारी विश्वविद्यालयों में प्राचार्य के अनेक पद रिक्त हैं, जिनकी नियुक्ति के लिए राज्य शिक्षा विभाग सभी महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है. परंतु कठिनाई यह है कि प्राचार्य अथवा प्रोफ़ेसर अपनी शर्तों पर उन्हीं विश्वविद्यालयों में पढ़ाना चाहते हैं, जहां उनकी स्वयं की इच्छा होती है.
पश्चिम बंगाल के सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियुक्ति में धांधली की शिकायतें पश्चिम बंगाल कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव केशव भट्टाचार्य को मिली हैं. उन्होंने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल को एक ईमेल भेजा है. राज्य के अनेक महाविद्यालयों में प्राचार्य ही नहीं है.वहां उम्मीदवारों की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया चल रही है. कई उम्मीदवारों ने पसंद का कॉलेज नहीं मिलने से प्राचार्य पद ठुकरा दिया है.
वर्तमान में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, वह कहीं ना कहीं अराजकता की स्थिति है. पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग में लोगों का भरोसा लौट नहीं रहा है. पूर्व शिक्षा मंत्री आज भी जेल की सलाखों के पीछे हैं. पूर्व राज्यपाल और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टकराहट भी किसी से छिपी नहीं है. तत्कालीन राज्यपाल और वर्तमान उपराष्ट्रपति के बाद अब पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल के साथ भी वर्तमान सरकार के संबंध कुछ अच्छे नहीं है.
बहरहाल जो संदिग्ध परिस्थितियां हैं, उनमें कई उलझाव भी दिख रहे हैं. जैसे आरंभ में यह शिकायत सामने आई कि अभ्यर्थियों के स्कोर का खुलासा नहीं हुआ है. केवल नाम की सूची प्रकाशित की गई है. किस अभ्यर्थी को कितना स्कोर या अंक मिला है यह स्पष्ट नहीं है. और ना ही उनके अनुभव के बारे में कुछ पता चलता है. अभ्यर्थियों की शिकायत है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम और शर्तों के अनुसार उन्हें वेतनमान नहीं मिलता है.
निजी कॉलेजों में प्राचार्य की नियुक्ति का मापदंड अलग होता है.उसका पैनल अलग होता है. यही कारण है कि सरकारी कॉलेजों में प्राचार्य की नियुक्ति का वेतनमान अलग होता है. ऐसी स्थिति में प्राचार्य निर्धारित वेतनमान को प्राप्त करेंगे, इसमें संदेह ही है. सबसे बड़ा झोल तो यह है कि प्राचार्य ने 15 साल का अनुभव प्राप्त किया है. यह कैसे पता चले. इन सभी स्थितियों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अनियमितता और इसका खंडन के पीछे कहीं ना कहीं धुंआ जरूर उठ रहा है.