सेवक रंगपो रेल परियोजना का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है. यह परियोजना गंगतोक तक रेल मार्ग बिछाने की है. पहले चरण में रंगपो तक रेल जाएगी.उसके बाद दूसरे चरण में इस रेलमार्ग को गंगटोक तक बढ़ाया जाएगा. देशभर की निगाहें सेवक रंगपो रेल मार्ग परियोजना पर टिकी है. इरकॉन के अधिकारी अत्यंत ही बुद्धिमता और सूझबूझ तरीके से परियोजना के कार्यों की देखरेख कर रहे हैं तथा यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि निर्धारित समय सीमा के भीतर काम पूरा हो सके.
इस समय एक बात और ध्यान में रखने की है कि काफी पहले जोशीमठ में पहाड़ों को काटकर अथवा ब्लास्ट करके कुछ इसी तरह का सड़क अथवा निर्माण कार्य हुआ था, तब अधिकारियों और जनता ने कुछ इसी तरह का जश्न मनाया था. जिस तरह का जश्न इस रेल परियोजना की अब तक की सबसे लंबी सुरंग संख्या 11 की सफलतापूर्वक खुदाई करने पर 23 जनवरी को इरकॉन,रेलवे तथा सामान्य व्यक्तियों ने मनाया था. खुशी हो क्यों नहीं, क्योंकि पहाड़ में रेल मार्ग बिछाया जा रहा है. ऐसे में पहाड़ और रेल के लोगों की खुशी तो होगी ही. उन्हें ट्रेन से लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए सिलीगुड़ी चलकर जाना पड़ता है. जब रेल मार्ग बिछ जाएगा और ट्रेन की आवाजाही शुरू हो जाएगी, तब उन्हें सिलीगुड़ी जाने की आवश्यकता नहीं होगी!
जैसे-जैसे परियोजना के कार्यों की गति बढ़ रही है, वैसे वैसे स्थानीय लोगों की खुशी में भी इजाफा हो रहा है. लेकिन इसके साथ ही कहीं ना कहीं जोशीमठ की घटना भी जेहन में कौंध सी जाती है. हालांकि रेलवे तथा इरकॉन के अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रख रहे हैं कि विकास के क्रम में प्रकृति से ज्यादा छेड़छाड़ ना हो. परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि सुरंग खोदने के लिए ब्लास्ट तो करने ही पड़ते हैं. जितनी बड़ी सुरंग हो, उतना ही बड़ा ब्लास्ट! ब्लास्ट के क्रम में पहाड़ों का हिलना तथा आसपास के पारिस्थितिक पर्यावरणीय संतुलन का खतरा बढ़ जाता है. इसे कैसे भुला जा सकता है!
जब टनल संख्या 11, जिसकी लंबाई 3 किलो मीटर और 205 मीटर है, खोदा जा रहा था तो इस कार्य में कई छोटे-बड़े ब्लास्ट हुए. करीब 2 अंतराल में खनन कार्य का अंतिम ब्लास्ट 23 जनवरी को संपन्न हुआ और रेलवे के अधिकारियों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी थी. इस टनल के निर्माण का काम 11 नवंबर को शुरू हुआ था. इसमें 50 मजदूर, 200 से अधिक कर्मचारी तथा एक सौ से ज्यादा इंजीनियर लगे थे और दिन रात काम हो रहा था. हालांकि ब्लास्ट की संख्या ज्ञात नहीं हो सकी है, परंतु यह आसानी से समझा जा सकता है कि इतनी लंबी सुरंग की खुदाई करने पर कितने ब्लास्ट हुए होंगे!
रेलवे और इरकॉन के कर्मचारी सभी पहलुओं का ध्यान रखते हुए कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. विदेशों से आए इंजीनियर्स की दक्षता को चुनौती नहीं दी जा सकती. परंतु प्रकृति की भी अपनी एक क्षमता होती है. इतिहास गवाह है कि जब-जब प्रकृति के साथ अधिक छेड़छाड़ की गई है, तब तब प्रकृति ने अपना विकराल स्वरूप दिखाया है. दूसरी ओर यह भी गौरतलब है कि रेलवे लाइन बिछाने के लिए सुरंग तो खोदनी ही पड़ेगी और जब सुरंग खोदी जाएगी तो ब्लास्ट होंगे ही. इस डर से कि सुरंग खोदने के क्रम में पहाड़ हिलेंगे ही, पत्थर अपनी जगह से खिसकेंगे ही, तो क्या विकास का काम रोक देना चाहिए? वक्त का तकाजा है कि पहाड़ में विकास हो परंतु पहाड़ की संवेदनशीलता को ध्यान में रखना भी विकास का एक अंग होना चाहिए और सरकार तथा रेलवे के अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए!
आपको बताते चलें कि रंगपो तक 14 टनल के खनन में 6 टनल का काम सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है. टनल संख्या 11 के बाद अब दूसरे टनल के खनन का कार्य जून से जुलाई के मध्य पूरा होगा. इसी तरह से शेष टनल को इसी साल के आखिर तक पूरा कर लिया जाएगा.अगर किलोमीटर की बात करें तो कुल 39 किलोमीटर में से 26 किलोमीटर का निर्माण कार्य पूरा हो गया है. इस साल के आखिर तक अथवा साल 2024 की पहली तिमाही तक परियोजना का कार्य शेष हो जाएगा.उसके बाद इस रेलमार्ग को गंगटोक तक बढ़ाया जाएगा!