समय-समय पर राजनीतिक दलों तथा संगठनों के नेता अपने बयानों से सुर्खियां बटोरते रहते हैं.उत्तर बंगाल को पृथक कामतापुरी राज्य बनाने की मांग कामतापुरी संगठनों की शुरू से ही रही है. भाजपा के कई कद्दावर नेता भी इस तरीके के बयान पूर्व में दे चुके हैं. जिसे लेकर खूब हंगामा भी हुआ है. तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बंगाल के एक और विभाजन के खिलाफ हैं. मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया है कि बंगाल का विभाजन उनकी लाश पर होगा. यानी उनके जीते जी नहीं होगा.
कुछ दिनों तक बंगाल विभाजन का मुद्दा ठंडे बस्ते में रहने के बाद एक बार फिर से कर्सियांग के भाजपा विधायक बी पी बजगई के बयानों से सुर्खियो मे है. इस बार तो भाजपा विधायक ने बंगाल विभाजन को लेकर पूरा दम दिखा दिया है. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि बंगाल का विभाजन अवश्यंभावी है तथा इसे कोई भी नहीं रोक सकता. हालांकि समझा जा सकता है कि भाजपा विधायक का यह बयान राजनीतिक ही है. क्योंकि वस्तु स्थिति ऐसी नहीं है कि सिर्फ मांग कर देने से अथवा नारे लगा देने से बंगाल का विभाजन हो जाएगा.
दिल्ली में अगले महीने पहाड़ और गोरखा लोगों की विभिन्न समस्याओं के स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए संभवत: त्रिपक्षीय बैठक होने वाली है. उससे पहले पहाड़ से लेकर Dooars तक गोरखा लोगों में अपनी पहचान बनाने तथा उनके सेंटीमेंट को भुनाने की दिशा में कर्सियांग के भाजपा विधायक बी पी बजगई जय गांव और Dooars का भ्रमण कर रहे हैं तथा गोरखा लोगों को एकजुट कर रहे हैं.
हालांकि सवाल तो यह भी उठता है कि जब जब चुनाव का समय आता है, पहाड़ में राजनीतिक हलचल बढ़ जाती है. भाजपा हो अथवा दूसरी पार्टियां, गोरखा समुदाय की भावनाओं को भुनाने के लिए हर संभव प्रयास में लग जाती है. भाजपा विधायक का उपरोक्त बयान किसी राजनीतिक लाभ के लिए है या फिर गोरखा लोगों को अधिकार दिलाने के लिए, इस पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. परंतु ऐसा लगता है कि बीपी बजगई पहाड़ में गोरखा लोगों को अधिकार दिलाने तथा स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए कुछ भी करने को तैयार नजर आ रहे हैं.
क्योंकि एक तरफ तो उन्होंने अपनी पार्टी भाजपा तथा भाजपा सांसद राजू बिष्ट पर हमला बोला है तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस को भी नहीं छोड़ा है. उन्होंने सीधे-सीधे अलग राज्य की बात को जनता से जोड़ दिया और कहा कि यह जनता की मांग है. इसका एक मतलब हो सकता है कि आने वाले समय में पहाड़ में एक बार फिर से गोरखालैंड का मुद्दा हावी होने वाला है.
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि चुनाव से पहले पहाड़ में ऐसे बयान उठाए जाते रहेंगे.भाजपा ने पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान की बात कही है तथा गोरखा लोगों से वादा भी किया था. भाजपा , हो सकता है कि अपना वादा पूरा भी कर दे परंतु गोरखालैंड तथा बंगाल विभाजन का मुद्दा लोकसभा चुनाव तक बना रहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. इसका संकेत बीपी बजगई के बयान से भी मिल जाता है. जब उन्होंने अपने ही सांसद के खिलाफ आग उगलते हुए कहा कि पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान बंगाल विभाजन के बिना हो ही नहीं सकता!