पश्चिम बंगाल के बारे में यह कहा जाता है कि बंगाल आज जो सोचता है,भारत कल सोचता है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस बात को बार-बार दोहराया है और अपनी कई जनसभाओं में कहा भी है कि बंगाल आज जो सोचता है, भारत कल सोचता है.
ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी है. 2021 के विधानसभा चुनाव में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ममता बनर्जी की सरकार गई! लेकिन उन्होंने कुछ ऐसा किया कि ना केवल वह दोबारा सत्ता में लौटी, बल्कि पहले से भी ज्यादा सीटे ले आई. चुनावी विश्लेषक भी हैरान रह गए. यह ममता बनर्जी की राजनीतिक सोच की जीत थी. अन्यथा भाजपा ने जिस तरह का माहौल पूरे राज्य में खड़ा कर दिया था, उसके बाद किसी को भी संदेह नहीं रहा कि ममता बनर्जी का शासन खत्म हो जाएगा. लेकिन वह अपने दिमाग और बुद्धिमता से भारी जीत हासिल कर दोबारा सत्ता में लौट आई.
ममता बनर्जी से पहले राज्य में वाममोर्चा की सरकार थी. वाममोर्चा ने सबसे ज्यादा समय तक शासन किया. विश्लेषण और अध्ययन से पता चलता है कि 35 वर्षों तक शासन करने वाली वाममोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री ज्योति बसु से लेकर बुद्धदेव भट्टाचार्य तक ने अपने मस्तिष्क और राजनीतिक सोच का सही इस्तेमाल करके राज्य की जनता का भरोसा जीता और देश के दूसरे राज्यों का मार्गदर्शन किया. उन्होंने दिखा दिया कि राजनीति कैसे की जाती है और जनता का भरोसा बनाकर कैसे रखा जाता है.
पश्चिम बंगाल एक ऐसा प्रदेश है, जहां की नेताओं की राजनीति स्थिरता और क्षमता दोनों से परिपूर्ण रहती है. देश के दूसरे राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल का इतिहास रहा है कि यहां सत्ता परिवर्तन जल्दी नहीं होता. नेताओं की राजनीतिक सोच और बुद्धिमता जनता से सीधे कनेक्ट होती है और यही कारण है कि पूरे भारत में बंगाल पहला ऐसा राज्य है जहां एक पार्टी की सबसे ज्यादा समय तक सरकार रही.
देखा जाए तो कुछ ऐसा ही संकेत मिल जाता है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीतिक कार्यशैली में. सरकार की कई योजनाएं केंद्र और विभिन्न संगठनों के द्वारा पुरस्कृत हो चुकी हैं. हाल ही में केंद्र ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की द्वारे सरकार योजना को सम्मानित करने का फैसला किया है. इससे पहले भी उनकी सरकार की कई योजनाओं को विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.
दरअसल बंगाल की संस्कृति और कला ऐसी है कि ब्रिटिश काल से ही बंगाल सुर्खियों में रहा है. आबोहवा, लोकाचार,सज्जनता और अभिनव सोच बंगाल को विशिष्ट बनाती है. ब्रिटिश काल में अंग्रेजी सरकार बंगाल की मुरीद थी. बंगाल के पानी और कल्चर ने अंग्रेजी शासकों को यहां लंबे समय तक शासन संचालन में सहयोग किया. बंगाल के लोगों को अपना सिपहसालार बनाकर अंग्रेजों ने यहां अपने पांव मजबूत किए. फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई. इसी बंगाल की धरती से अंग्रेजों को खदेड़ने की भी फुल प्रूफ योजना तैयार हुई थी.
अगर बांग्ला साहित्य और संस्कृति का अध्ययन करें तो यह सहज ही पता चल जाता है कि बंगाल ने जो पहले सोचा, बाद में उस पर शेष भारत ने विचार किया. रविंद्र नाथ टैगोर का साहित्य ऐसा है जिसमें भारत के भविष्य की संस्कृति की झलक मिल जाती है. नए राज्यपाल सी बी आनंद बोस एक तरफ जहां बांग्ला संस्कृति और साहित्य के कायल हो चुके हैं, वहीं वे इस बात को दोहराना नहीं भूलते कि बंगाल आज जो सोचता है, भारत कल सोचता है.
बांग्ला भाषा में मिठास है और यह भाषा दुश्मन को भी गले लगाने पर मजबूर कर देती है. राज्यपाल आनंद बोस बंगाली संस्कृति और कल्चर पर एक पुस्तक लिखने की योजना बना रहे हैं. अब तो यहां की संस्कृति और कला से प्रभावित होकर उन्होंने यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि आने वाले समय में बंगाल भारत का मार्गदर्शन करेगा. बंगाल के इतिहास को देखते हुए इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है.