ऐसा लग रहा था कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव निर्धारित समय से पहले हो जाएंगे. जिसकी तैयारी राज्य चुनाव आयोग काफी पहले से कर रहा था. जिस तरह से राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान और रणनीतियां सामने आ रही थी, उनसे यही पता चलता था कि राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग पंचायत चुनाव निर्धारित समय से पहले करा लेंगे.
परंतु अब इसमें संदेह ही है कि पंचायत चुनाव समय से पहले अथवा समय पर होंगे. दरअसल सत्ता पक्ष और विपक्ष में जोर आजमाइश चल रही है. मामला अदालत तक पहुंच गया है. सत्ता पक्ष राज्य पुलिस बलों की निगरानी में पंचायत चुनाव कराने पर अडा हुआ है. जबकि विपक्ष खासकर भाजपा चाहती है कि राज्य चुनाव आयोग केंद्रीय बलों की निगरानी में चुनाव कराने का राज्य सरकार को आदेश दे.
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने केंद्रीय बलों की निगरानी में राज्य में पंचायत चुनाव कराने की मांग में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने पंचायत चुनाव की अधिसूचना पर 9 जनवरी तक के लिए रोक लगा दी है. मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी.
उससे पहले ना तो राज्य सरकार और ना ही राज्य चुनाव आयोग कोई फैसला कर सकता है. विशेषज्ञ और जानकार बताते हैं कि हाई कोर्ट में मामला जाने के बाद सुनवाई और फैसले में कुछ वक्त लग सकता है. ऐसे में तब तक चुनाव आयोग पंचायत चुनाव की प्रक्रिया को शुरू नहीं कर सकता. सीधा सा मतलब यह है कि पंचायत चुनाव अपने निर्धारित समय पर होंगे, इसमें संदेह ही है.
शुभेंदु अधिकारी ने हाईकोर्ट में दायर अपनी जनहित याचिका में कहा है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया की निगरानी कोलकाता हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में संपन्न हो.जबकि राज्य चुनाव आयोग इसका विरोध कर रहा है. शुभेंदु अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि 2018 में राज्य पुलिस की निगरानी में चुनाव हुए थे. उसमें बड़े पैमाने पर हिंसा और तोड़फोड़ के मामले हुए थे. जबकि 2013 में केंद्रीय बलों की निगरानी में पंचायत चुनाव शांतिपूर्ण चुनाव हुए थे पंचायत चुनाव हुए थे