बांग्लादेश में एक समुदाय विशेष के खिलाफ जो कुछ हो रहा है, उसकी तीखी प्रतिक्रिया सिलीगुड़ी से लेकर त्रिपुरा तक शुरू हो चुकी है. बांग्लादेश सम्मिलित सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और हिंदू श्रद्धालुओं पर हमले के बाद स्थिति और खराब हुई है.
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग तो पहले भी असुरक्षित थे , अब तो ऐसा शासक वहां के कट्टरवाद को मिल चुका है, जो उनके इशारे पर नाचता है. जब तक शेख हसीना सरकार में थी, कट्टरवाद को ज्यादा छूट नहीं मिली थी. लेकिन उनके जाने के बाद जैसे कट्टरपंथियों को मुंह मांगी मुराद मिल चुकी है. वे अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रहे हैं और उन्हें उनके ही घर में बेगाना बना दिया है. बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे हिंदुस्तान सुलग रहा है. खासकर उत्तर पूर्व भारत में उसकी धमक सुनाई पड़ रही है.
सिलीगुड़ी में बांग्लादेश के शासक मोहम्मद यूनुस के खिलाफ पहले ही पोस्टरिंग हो चुकी है. अब सिलीगुड़ी में बांग्लादेशी मरीजों का इलाज नहीं करने का यहां के डॉक्टरों ने फैसला किया है. विभिन्न हिंदूवादी और सामाजिक संगठनों और एक राजनीतिक दल की ओर से बांग्लादेश के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो चुका है. पहले त्रिपुरा स्थित बांग्लादेशी उच्चायोग के सामने प्रदर्शन हुए. उसके बाद भारत के छोटे बड़े शहरों में भी बांग्ला देशी लोगों के खिलाफ अभियान जोर पकड़ता जा रहा है. ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने खुलना स्थित भारतीय उच्च आयोग के सामने प्रदर्शन किया था.
त्रिपुरा में बांग्लादेशी बॉयकॉट मूवमेंट जोर पकड़ता जा रहा है. पहले अस्पताल के बाद अब होटल एंड रेस्टोरेंट ओनर्स एसोसिएशन ने बांग्लादेशी मेहमानों को होटल में रहने पर प्रतिबंध लगा दिया है. अब से बांग्लादेशी मेहमानों को सिलीगुड़ी से लेकर त्रिपुरा तक ना तो किसी होटल में कमरा मिलेगा और ना ही उन्हें भोजन उपलब्ध होगा.
मीडिया खबरों के अनुसार बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा है. वहां ना तो मंदिर सुरक्षित है और ना ही मंदिर के पुजारी. भारतीय समाचार पत्रों की सुर्खियों के अनुसार बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भागे भागे फिर रहे हैं. वे अपने ही घर में बेगाने हो गए हैं. बांग्लादेशी शासक मोहम्मद यूनुस की अपील में सच्चाई है या फिर दिखावा. यह समझ से परे है. इस्लामिक संगठनों के आगे बांग्लादेश के कानून और शासन सब जैसे फेल हो चुके हैं. उनके निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और उनके पवित्र स्थल हैं. अगर कोई हिंदू धार्मिक चोला पहनकर सड़कों पर या पवित्र स्थल में नजर आता है, तो उसकी जान का खतरा हर समय रहता है.
एक लोकप्रिय अखबार में प्रकाशित खबरों के अनुसार चिन्मय कृष्ण दास को ढाका के हजरत शाह जलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उस समय गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वे चटगांव स्थित एक रैली में भाग लेने जा रहे थे. उन पर देशद्रोह का आरोप बांग्लादेश ने लगाया है. वहां की अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया. 2 जनवरी तक उनकी जमानत पर सुनवाई नहीं हो सकती है. 26 नवंबर को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. तब से वे जेल में ही है. जो वकील उनकी तरफ से पैरवी कर रहा था, उसका नाम रमन राय है. मीडिया खबरों के अनुसार इस्लाम के कट्टर लोगों ने वकील रमन राय पर हमला कर दिया था, ताकि वह कृष्ण दास की पैरवी नहीं कर सके.
बांग्लादेश में सबसे ज्यादा इस्कॉन के अनुयायी दहशत में है. समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार इस्कॉन के अनुयायियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा है. बांग्लादेश के चार शहरों चटगांव, कुश्तीया, खुलना और मयमन सिंह स्थित इस्कॉन के मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रमो को बंद कर दिया गया है. कोलकाता स्थित इस्कॉन के प्रवक्ता के अनुसार बांग्लादेश में गेरुआ वस्त्र धारण करने पर कट्टरपंथी उन्हें निशाना बना रहे हैं और उन्हें मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं. बांग्लादेशी इस्कॉन से जुड़े लोग उनसे मदद की गुहार लगा रहे हैं. कोलकाता इस्कॉन के प्रवक्ता ने बांग्लादेश में रह रहे इस्कॉन के पुजारी और श्रद्धालुओं से अपनी पहचान छुपा कर रहने की अपील की है. श्रद्धालुओं को सार्वजनिक स्थानों पर भगवा वस्त्र धारण नहीं करने तथा तिलक लगाने से बचने की सलाह दी गई है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्थिति यहां तक आ गई है कि कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय के पुजारी या धार्मिक संगठन से जुड़े लोग परंपरागत वस्त्र धारण करके सार्वजनिक स्थानों पर नहीं जा सकते हैं. वहां के सन्यासियों और भक्तों से अपील की गई है कि वह जितना संभव हो सके, साधारण तरीके से धर्म का पालन करें और अपने घर में ही रहे. भारतीय तिरंगे के अपमान से शुरू हुई कहानी कहां तक जाकर खत्म होगी, यह कोई नहीं जानता. संसद में यह मुद्दा लगातार गर्मा रहा है. किसी समय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बांग्लादेश को लेकर सॉफ्ट नीति अपनाती रही है. किंतु बदले क्रम में उन्होंने भी केंद्र के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा है कि बांग्लादेश के खिलाफ केंद्र जो भी कदम उठाएगा, तृणमूल कांग्रेस उसका समर्थन करेगी. इससे पहले तृणमूल कांग्रेस का एक सांसद संसद में बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार का मुद्दा उठा चुका है.
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भारत की तरफ टकटकी लगाए देख रहे हैं. भारत सरकार वेट एंड वॉच की स्थिति में है. भारतीय संसद में लगभग सभी दल चाहते हैं कि बांग्लादेश को उसकी औकात दिखाई जाए. जैसे 1971 में भारत ने बांग्लादेश को उसकी औकात दिखा दी थी. आज तो भारत के पास सब कुछ है. बांग्लादेश के अल्पसंख्यक भी इस बात को समझते हैं कि संकट की स्थिति में भारत चुप नहीं रहेगा. फिलहाल मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, वह कितना सत्य है, यह भारत समझने की कोशिश कर रहा है. इसलिए भारत सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.
सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बांग्लादेश में शांति कैसे लौटेगी. भारत सरकार कब तक चुप बैठी रहेगी. क्या बांग्लादेश का पतन होना बाकी रह गया है? ऐसा लगता है कि बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की वही स्थिति है जैसे पाकिस्तान में कट्टरपंथियों के आगे वहां की सरकार की. बांग्लादेश ने जो आग लगाई है अगर उसे जल्द ही बुझाया नहीं गया तो पक्की बात है कि भारत सरकार कोई कठोर कदम उठा सकती है. सबकी नज़रें 2 जनवरी को चिन्मय कृष्ण दास की होने वाली जमानत याचिका पर सुनवाई पर टिकी है. अगर उन्हें बांग्लादेशी हाई कोर्ट से जमानत नहीं मिलती है, तो भारत इसका माकूल जवाब दे सकता है.