पश्चिम बंगाल के सभी सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स में पूरे साल प्राइम टाइम में रोजाना कम से कम एक बांग्ला फिल्म दिखाना अनिवार्य किए जाने के बाद दार्जिलिंग और जीटीए क्षेत्र में राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ असंतोष दिखने लगा है. पहाड़ में इसे नेपाली भाषा और संस्कृति पर आक्रमण के रूप में देखा जा रहा है. और इसीलिए पहाड़ में असंतोष बढ़ने लगा है. अजय एडवर्ड, गोरखा राष्ट्रीय युवा मोर्चा तथा दूसरे क्षेत्रीय संगठनों के द्वारा विरोध के बाद GTA के चेयरमैन अनित थापा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पहाड़ के सिनेमाघरों में अपना फैसला वापस लेने को लेकर एक खत लिखा है.
पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार के द्वारा भाषा आंदोलन शुरू किया गया है. राज्य में बांग्ला भाषा को प्राथमिकता दी जा रही है और उसे सभी क्षेत्रों में अनिवार्य किया जा रहा है. ऐसे में दार्जिलिंग और पहाड़ी इलाकों में जहां नेपाली भाषा और संस्कृति है, वहां बांग्ला भाषा को अनिवार्य किए जाने से गोरखा समुदाय के लोग मानते हैं कि यह उनकी भाषा और संस्कृति पर कुठाराघात है. ऐसे में उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. एक दिन पहले ही राज्य के सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों के विभाग की ओर से राज्य के सभी सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स को एक अधिसूचना जारी कर दी गई. जिसमें कहा गया है कि रोजाना कम से कम एक शो बांग्ला फिल्म उन्हें दिखाना ही होगा.
सवाल यह है कि बांग्ला भाषी इलाकों में तो सरकार के इस फैसले को लेकर लोगों की आपत्ति नहीं हो सकती है, परंतु जहां नेपाली अथवा दूसरे भाषा भाषी रहते हैं और उनकी मातृभाषा नेपाली, हिंदी के अलावा बांग्ला नही है, वहां के सिनेमाघरों में बांग्ला भाषा की फिल्म दिखाने का क्या औचित्य है. यही कारण है कि गोरखा जन मोर्चा नेता अजय एडवर्ड ने कहा है कि राज्य सरकार पहाड़ में भाषा थोप नहीं सकती है. उनका कहना उचित भी है. होना तो यह चाहिए कि इस बारे में सरकार कोई नोटिफिकेशन जारी ही नहीं करती. यह सब सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स पर छोड़ देना चाहिए.
अजय एडवर्ड ने कहा है कि यह केवल फिल्मों का मामला नहीं है बल्कि पहाड़ की भाषा और संस्कृति पर दबाव बनाने की कोशिश भी है. उन्होंने कहा है कि हमारी मातृभाषा नेपाली है. हमारे गीत, संगीत, कहानी, साहित्य सब नेपाली भाषा में है और यही हमारी पहचान है. अजय एडवर्ड ने सरकार को चेताते हुए कहा है कि सरकार को यह याद रखना चाहिए कि 2017 में राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा को भी अनिवार्य करने की कोशिश की थी. परिणाम क्या निकला?
बता दूं कि 2017 में जब राज्य सरकार ने उपरोक्त फरमान जारी किया था, तब इसके खिलाफ 104 दिनों तक लंबा आंदोलन चला था और पहाड़ की जनता ने इसका भारी विरोध किया था. अजय एडवर्ड ने सरकार के फैसले पर तीव्र प्रतिक्रिया देते हुए कहा, सरकार कान खोलकर सुन ले! हमारी पहचान बांग्ला भाषा नहीं है. हम बिकाऊ नहीं है और हम अपनी संस्कृति पर किसी भी तरह का कोई समझौता सहन नहीं कर सकते हैं. अजय एडवर्ड ने सरकार से मांग की है कि अगर राज्य सरकार ने पहाड़ी इलाकों में आदेश वापस नहीं लिया तो पहाड़ में अशांति बढ़ेगी और इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार होगी.
कुछ इसी तरह का विरोध गोरखा राष्ट्रीय युवा मोर्चा की ओर से किया गया है. केंद्रीय सदस्य अनमोल निरौला ने कहा है कि नेपाली भाषा हमारी पहचान व प्राण है. हम इसके लिए बलिदान देने के लिए तैयार हैं. अगर राज्य सरकार ने पहाड़ के लिए अपना फैसला वापस नहीं लिया तो यहां सामूहिक विरोध होगा और किसी भी हालत में सरकार के फैसले को लागू होने नहीं दिया जाएगा. इस तरह से धीरे-धीरे पहाड़ में सुगबुगाहट शुरू हो गई है.
स्थानीय नेताओं के द्वारा गोरखा समुदाय के लोगों को सरकार के फैसले के खिलाफ एकजुट किया जा रहा है. पहाड़ का मिजाज खराब हो, इससे पहले ही स्थिति की नजाकत को भांपते हुए जीटीए के चेयरमैन अनित थापा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि बेहतर होगा कि राज्य सरकार पहाड़ में नेपाली भाषा की फिल्मों को सिनेमाघरों में अनिवार्य रूप से दिखाने को आदेश जारी करे. इससे पहाड़ में नेपाली भाषा और संस्कृति का संरक्षण होगा तथा नेपाली भाषा को उचित प्रतिनिधित्व भी मिलेगा. उन्होंने कहा कि नेपाली क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देने से गोरखा समुदाय की सांस्कृतिक एकता मजबूत होगी.
अब देखना होगा कि अनित थापा के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र के बाद मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की ओर से इसका क्या जवाब सामने आता है!