आमतौर पर झोलाछाप डॉक्टरों को बिना डिग्री अथवा लाइसेंस के डॉक्टर समझा जाता है. वैधानिक रूप से इन्हें आरएमपी कहा जाता है. RMP का मतलब होता है रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशर. इसके तहत काम करने वाले डॉक्टर ड्रग कंट्रोल विभाग से पंजीकृत होते हैं. ये एमबीबीएस डॉक्टर की तरह नहीं होते हैं. पर एक विशेष प्रशिक्षण के बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी एमबीबीएस डॉक्टरों के प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर उन्हें सेवा करने की आज्ञा दे देते हैं.
शहर से बाहर दूर दराज के गांवों में यह दवा की दुकान खोलकर बीमार लोगों की तीमारदारी करते हैं. गांव के ऐसे लोग जो गरीब होते हैं, पैसे के अभाव में अस्पतालों में नहीं जा पाते हैं, ऐसे मरीजों की यह प्राथमिक चिकित्सा करते हैं. अधिकांश आरएमपी डॉक्टरों की दुकान का लाइसेंस नहीं होता. ऐसे डॉक्टर और उनके क्लीनिक सब जगह मिल जाएंगे. जब तक सब कुछ ठीक रहता है, तब तक ऐसे बिना लाइसेंस के डॉक्टर अथवा दुकान सुरक्षित रहते हैं अथवा औषधि नियंत्रण विभाग शांत रहता है. लेकिन गलत चिकित्सा के कारण मरीज को हुई हानि के बाद स्वास्थ्य विभाग उनके पीछे पड़ जाता है.
आरएमपी डॉक्टरों को औषधि नियंत्रण विभाग महामारी जैसे डेंगू मलेरिया के दौरान दूर दराज के क्षेत्रों में मरीज के इलाज के लिए विशेष प्रशिक्षण देता है. उनके लिए औषधि नियंत्रण विभाग गाइडलाइंस जारी करता है. इसी विशेष व्यवस्था के तहत उनसे इलाज की उम्मीद की जाती है. लेकिन कभी-कभी आरएमपी डॉक्टर एक एमबीबीएस डॉक्टर की तरह इलाज करने लग जाते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि गलत चिकित्सा के कारण मरीज को लेने के देने पड़ जाते हैं.
इन दिनों उदलाबाड़ी में हड़कंप मचा हुआ है. यहां कई दुकानों को औषधि नियंत्रण विभाग के अधिकारियों ने बंद करा दिया है. इसको लेकर आरएमपी संगठनों में तीव्र विरोध देखा जा रहा है. आरएमपी डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखने का फैसला किया है. फिलहाल जलपाईगुड़ी जिले में यह अभियान तेजी से चल रहा है. संभावना जताई जा रही है कि सिलीगुड़ी में भी यह अभियान चल सकता है.
माल रोड की एक से अधिक दवा दुकानों को बंद कराए जाने तथा उदलाबाड़ी में दवा दुकानों को बंद करने का फरमान जारी करने से RMP डॉक्टर परेशान और चिंतित बताए जा रहे हैं. ड्रग कंट्रोल अधिकारियों ने जिले की बिना लाइसेंस वाली दवा दुकानों से कहा है कि वह जिला औषधि नियंत्रण विभाग से संपर्क करके लाइसेंस के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू करें. अन्यथा वे दुकान नहीं खोल सकते हैं. सुदूर देहाती क्षेत्रों में काम करने वाले रूरल मेडिकल प्रैक्टिशर का कहना है कि उनके पास ना तो समय है और ना ही पैसा है. यह प्रक्रिया आसान भी नहीं है.
पिछले दिनों RMP संगठनों के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई थी. इस बैठक में विभिन्न आरएमपी संगठनों के प्रतिनिधियों ने ड्रग कंट्रोल्स अधिकारियों के फरमान का विरोध करने का फैसला किया और इसके खिलाफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखने का फैसला किया है. इन डॉक्टरों का कहना है कि एमबीबीएस डॉक्टर जहां नहीं पहुंच पाते हैं, वह उन क्षेत्रों में पहुंचकर गरीब और निर्धन मरीज का इलाज करते हैं और उन्हें राहत पहुंचाते हैं. ऐसे में औषधि नियंत्रण विभाग उनके लिए विशेष गाइडलाइंस जारी कर सकता है और वे गाइडलाइंस का अनुसरण कर सकते हैं. लेकिन उनकी दवा दुकान बंद कर देना कहां तक उचित है. ऐसे में तो से उनकी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.
वास्तव में औषधि नियंत्रण विभाग के पास जो डाटा उपलब्ध है, उसके अनुसार अधिकांश आरएमपी डॉक्टर ना तो रजिस्टर्ड हैं और ना ही उनकी दुकानों को लाइसेंस प्राप्त है. बगैर लाइसेंस अथवा पंजीकरण के डॉक्टर ना तो मरीज का इलाज कर सकते हैं और ना ही अपनी दवा दुकान चला सकते हैं. वर्षों से चल रहे ऐसे डॉक्टरों की क्लीनिक की ओर जिला औषधि नियंत्रण विभाग का ध्यान कभी नहीं गया और अचानक विभाग उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहा है. ऐसे में उनकी दुकान बंद होने से उन्हें विभिन्न तरह की आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
जिला ड्रग कंट्रोल विभाग वैधानिक कार्रवाई ही कर रहा है, जो उसे करना ही चाहिए. आरएमपी डॉक्टरों को भी चाहिए कि वे सरकारी व्यवस्था के तहत सेवा कार्य करें. अगर उन्होंने अपनी दुकानों का पंजीकरण नहीं कराया है तो उन्हें पंजीकरण कराना चाहिए. यह उनके हक में भी अच्छा होगा. इसके बजाय ऐसे डॉक्टर औषधि नियंत्रण विभाग के फरमान का विरोध करके क्या साबित करना चाहते हैं और क्या संदेश देना चाहते हैं, या समझ से परे है. अगर कहीं कुछ गड़बड़ है तो उसे ठीक कर लेना अच्छा है. जहां तक पंजीकरण प्रक्रिया का सवाल है तो औषधि नियंत्रण विभाग को चाहिए कि पंजीकरण प्रक्रिया को अधिक से अधिक सरल करे. प्रक्रिया को सरल करने के लिए काम करना चाहिए, ताकि जो डॉक्टर रजिस्टर्ड नहीं है अथवा उनकी दुकान पंजीकृत नहीं है, वह भी आसानी से अपनी दुकानों का पंजीकरण करा सकें.
सिलीगुड़ी के ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक आरएमपी डॉक्टर क्लीनिक खोलकर बैठे हैं. वे मरीज का सस्ता इलाज तो करते हैं परंतु कभी-कभी उनकी गलत चिकित्सा के कारण मरीज की मौत तक हो जाती है. अगर ऐसे आरएमपी डॉक्टरों के लिए एक विशेष दिशा निर्देश जारी किया जाए और सभी आरएमपी डॉक्टर उसका पालन करने लग जाए तो भविष्य में अनहोनी की घटनाओं को टाला जा सकता है.जलपाईगुड़ी में औषधि नियंत्रण विभाग का अभियान जारी होने के बाद अगला नंबर सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग जिले का होगा, इसमें कोई दो मत नहीं है. जिला औषधि नियंत्रण विभाग की कार्रवाई उचित है या अनुचित, कमेंट करके जरूर बताइएगा.