उत्तर से लेकर दक्षिण तक बंगाल की राजनीति गरमाती जा रही है. भाजपा हो या टीएमसी, किसी भी दल के नेता सुरक्षित नहीं है. लेकिन भाजपा नेताओं पर ज्यादा हमले हो रहे हैं. जैसे-जैसे चुनाव की राज्य में सरगर्मी बढ़ती जा रही है, तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच वार और प्रतिवार तेज होता जा रहा है. हाल की घटनाओं में उत्तर बंगाल से लेकर दक्षिण बंगाल तक भाजपा नेता हमले के शिकार हुए हैं.
अलीपुरद्वार के कुमार ग्राम के भाजपा विधायक, उत्तर मालदा के भाजपा सांसद खगेन मुर्मू, सिलीगुड़ी के भाजपा विधायक शंकर घोष, दार्जिलिंग के भाजपा सांसद राजू विष्ट और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सुबेंदु अधिकारी की कार पर हमला, यह सभी घटनाएं बंगाल की दिन प्रतिदिन हिंसक हो रही राजनीति के ट्रेलर हैं. शुभेंदु अधिकारी काली पूजा और दीवाली उत्सव में भाग लेने गए थे.
दार्जिलिंग के भाजपा सांसद और अखिल भारतीय भाजपा प्रवक्ता राजू बिष्ट ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट जारी किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सुखिया पोखरी में उन पर हमले पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति के बाद कराये गये. उनका साफ इशारा था कि कुछ लोग नहीं चाहते हैं कि पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान हो और यह मामला अधर में लटका रहे.
लेकिन सोचने वाली बात है कि पहाड़ में कोई भी राजनीतिक अथवा सामाजिक संगठन नहीं चाहता कि पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान नहीं हो. बल्कि मध्यस्थ की नियुक्ति के बाद पहाड़ के विभिन्न संगठनों और भाजपा गठजोड़ पार्टियों के नेता खुश दिखे. लेकिन अगर कोई नाखुश हुआ तो वह संगठन था, टीएमसी. जिसकी मुखिया ममता बनर्जी ने केंद्र के एकतरफा फैसले की आलोचना करते हुए प्रधानमंत्री से नाराजगी व्यक्त की थी. तो क्या टीएमसी की ओर से राजू विष्ट पर हमले कराए गए? इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला है.
अगर पिछले दिनों की घटनाओं पर एक नजर डाले तो पिछली घटनाओं से इसकी समानता भी सामने आती है. उत्तर बंगाल में बाढ़ की स्थिति का दौरा करने के दौरान भाजपा सांसद खगेन मुर्मू और सिलीगुड़ी के विधायक शंकर घोष पर जलपाईगुड़ी के नागराकाटा में जानलेवा हमला किया गया था. यह दोनों भाजपा नेता भी राहत सामग्री वितरण के लिए गए थे. अलीपुरद्वार के कुमार ग्राम के एक भाजपा विधायक पर भी बाढ़ प्रभावितों के बीच राहत सामग्री वितरण के दौरान ही हमला किया गया था.
राजू विष्ट शनिवार को रिंभीक और लोधामा में भूस्खलन प्रभावित इलाकों का निरीक्षण करने गए थे. उन पर यह हमला शाम को लौटते समय हुआ था. हालांकि हमले में राजू बिष्ट को कोई चोट नहीं आई थी. लेकिन उनकी कार का शीशा टूट गया था. राजू बिष्ट ने कहा था कि मुझ पर पत्थरबाजी की गयी. लेकिन पत्थर मेरी कार पर नहीं लगे. बल्कि मेरी कार के पीछे काफिले में चल रही एक कार पर लगे. इस हमले में कोई भी घायल नहीं हुआ था. उन्होंने जोर बंगलो पुलिस स्टेशन में इसकी शिकायत भी दर्ज करा दी.
कुछ दिनों पहले राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सुबेंदु अधिकारी पर भी हमला हुआ था. सुबेंदु अधिकारी ने अपने ऊपर हुए हमले के लिए टीएमसी को जिम्मेदार ठहराया था. इन सभी घटनाओं का आपस में कहीं ना कहीं संबंध जरूर है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह हमले इसलिए हो रहे हैं कि कोई भी दल नहीं चाहता कि उसके रास्ते का कोई रुकावट बने. वह चाहे बीजेपी हो या टीएमसी. अगर आज भाजपा नेताओं पर हमले हो रहे हैं तो आने वाले समय में प्रतिवार देखने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. इसलिए राजू बिष्ट दावे के साथ नहीं कह सकते कि पहाड़ में स्थाई राजनीतिक समाधान के लिए किए गए उनके प्रयास के फल स्वरुप मध्यस्थ की नियुक्ति के बाद उन पर हमले कराए गए.
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि आने वाले समय में बंगाल की राजनीति और हिंसक होती जाएगी. इसलिए भाजपा के कुछ और मुखर नेताओं पर इस तरह के हमले हो, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही है. ऐसे में वार प्रतिवार आने वाले समय में कुछ ज्यादा ही देखने को मिल सकता है.