August 14, 2025
Sevoke Road, Siliguri
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ममता बनर्जी का भाषा आंदोलन कहीं भाजपा का खेल न बिगाड़ दे!

कहीं ना कहीं सत्तापक्ष और विपक्ष सभी ने यह मान लिया है कि ममता बनर्जी राजनीति की धुरंधर खिलाड़ी हैं. उन्होंने राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को काफी मुश्किल में डाल दिया है.भाजपा जो यह दिवा स्वप्न देख रही थी कि 2026 के चुनाव में वह तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर देगी, कम से कम मौजूदा स्थिति में ऐसा लगता नहीं है.

ममता बनर्जी को बंगाल में मुसलमानों का 100% वोट मिलता रहा है. अब उन्होंने बंगाली अस्मिता कार्ड भी खेलना शुरू कर दिया है. और इसके जरिए बांग्ला भाषी को एकजुट करने की मुहिम में जुट गई है. बंगाल के सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स में प्राइम टाइम के दौरान एक बांग्ला फिल्म दिखाना अनिवार्य किए जाने के बाद भाजपा बंगले झांकने लगी है. प्रदेश में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोर्चा संभाला है. जबकि दिल्ली में अभिषेक बनर्जी ने भाषा आंदोलन को संसद तक पहुंचा दिया है.

संसद में तृणमूल कांग्रेस के नेता बांग्ला भाषा में ही बोलते हैं और अपने साथियों को भी बांग्ला भाषा में ही प्रश्न करने पर जोर देने लगे हैं. अभिषेक बैनर्जी सर के बहाने लोकसभा भंग कर फिर से चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं. जिस तरह से ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने बांग्ला भाषा के माध्यम से बंगाली समुदाय की एकता और एकजुटता को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ मुहिम शुरू की है, ऐसे में भाजपा के लिए स्थिति पहले से ज्यादा जटिल हो गई है.

पश्चिम बंगाल में स्थानीय मुद्दे गौण हो गए हैं. बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भाजपा ने राजनीति शुरू की. लेकिन लगता है कि भाजपा की यह राजनीति उस पर उल्टा पड़ने लगी है. इस मुद्दे पर ममता बनर्जी बीजेपी को ही घेर रही है. एक समय था, जब ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बाहरी बोलकर हमला करती थी. अब उन्होंने उन्हें बांग्ला विरोधी साबित करना शुरू कर दिया है. भाजपा के लिए ऐसी समस्या है कि वह इसका काट ढूंढ नहीं पा रही है.

बंगाल में बांग्ला भाषा के नाम पर जो राजनीति की जा रही है, वह कुछ ऐसी ही है जैसे गुजराती अस्मिता और मराठी अस्मिता की राजनीति. इससे पहले ममता बनर्जी ने मुस्लिम वोट को तो पक्का कर ही लिया है. जो थोड़ी बहुत फुरफुरा शरीफ इलाकों में दिक्कत थी, अब ममता बनर्जी ने पीरजादा कासिम सिद्दीकी को तृणमूल कांग्रेस का महासचिव बनाकर उसका रास्ता ढूंढ लिया है. भाजपा के प्रदेश स्तर के बड़े-बड़े नेता यहां तक कि शुभेंदु अधिकारी को भी ममता बनर्जी के मुद्दे का काट ढूंढने में पसीने छूट रहे हैं.

पिछले कुछ समय से ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा, जगन्नाथ मंदिर आदि के जरिए हिंदू वोटो को भाजपा से छीनने की चाल भी शुरू कर दी है. जिसका जवाब बीजेपी के नेता सटीक रूप से नहीं रख रहे हैं. इस तरह से कहा जा सकता है कि एक नई रणनीति के मार्ग पर ममता बनर्जी कदम बढ़ाने लगी है. वहां भाजपा को काउंटर करने के लिए अब कुछ नया सोचना होगा. अन्यथा अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2026 के चुनाव में भाजपा का प्रदेश में सरकार बनाने का सपना सपना ही रह जाएगा.

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