दीपावली, काली पूजा से लेकर छठ पूजा तक सिलीगुड़ी के घरों, प्रतिष्ठानों और दुकानों में रौनक बनी रहेगी. इस समय घर-घर में सफाई चल रही है. दफ्तरों में सफाई चल रही है. शहर के कूड़े कचरे को जलाया जा रहा है. यानी सभी जगह सफाई अभियान चल रहा है. घर, दुकान, प्रतिष्ठान सब चमकने लगे हैं और चमकने लगी हैं महानंदा और सहायक नदियां. काश! ये नदियां पूरे वर्ष तक चमकती रहतीं, तो आज उत्तर बंगाल के लोगों को बाढ त्रासदी का सामना नहीं करना पड़ता!
महानंदा और विभिन्न नदियों को केवल छठ पूजा तक ही नहीं, बल्कि पूरे साल तक स्वच्छ और प्राकृतिक रखने के लिए प्रशासन और नागरिकों को कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है. एक दृढ़ संकल्प और समर्पण की भावना से आगे बढ़कर कार्य किया जाए तो यह काम कठिन नहीं है. प्रस्तुत है सुरेन्द श्रीवास्तव की यह रिपोर्ट!
पूरे वर्ष शहर का कचरा ग्रहण कर मैली रहने वाली महानंदा और सहायक नदियों का दिन फिर गया है. सिलीगुड़ी ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश और देश में जितने भी नदी घाट हैं, उनकी साफ सफाई शुरू हो गई है. सिलीगुड़ी के सभी घाटों में नदी की सफाई चल रही है और घाटों को रमणीक बनाया जा रहा है. महानंदा नदी सिलीगुड़ी शहर का प्राण आधार है. लेकिन यह नदी पूरे वर्ष मैली रहती है. लेकिन छठ पूजा से पहले जैसे नदी को साबुन से नहलाकर साफ सुथरा कर दिया जाता है. महानंदा और दूसरी नदियों को शायद इसी मौके का इंतजार रहता है.
छठ पूजा 25 अक्टूबर से शुरू हो रही है. कम से कम दो-तीन दिन तक महानंदा और विभिन्न नदियों के घाट चमकते रहेंगे. आप नदी क्षेत्र में जाएंगे तो आपका मन हर्षित हो उठेगा. आपकी इच्छा होगी कि यहां ज्यादा से ज्यादा समय बिताया जाए. लेकिन जैसे ही छठ पूजा समाप्त होती है, उसके अगले दिन से नदियों को फिर से कष्ट और पीड़ा से गुजरना पड़ता है. लोग नदियों में अपने घर का कूड़ा कचरा डालने लग जाते हैं. तब उस समय नदियों का हाल देखने के लिए कोई नहीं आता और ना ही प्रशासन का कोई जिम्मेदार अधिकारी नदी को गंदा करने वालों की सुध लेता है!
सिलीगुड़ी नगर निगम, सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी विकास प्राधिकरण और नागरिक प्रशासन इस समय विभिन्न घाटों की साफ सफाई में जुटा हुआ है. नदी से कचरा निकाले जा रहे हैं. लेकिन जैसे ही छठ व्रत का समापन होगा, नदी को उसके हाल पर छोड़ दिया जाएगा और नदियां वर्ष भर जैसे अभिशाप का सामना करती रहेंगी. जिस तरह से मानव नदियों से छेड़छाड़ कर रहा है, उसी का परिणाम है कि बरसात में नदियां भी मानव से बदला लेने लगती हैं. अगर प्रत्येक मानव यह संकल्प कर ले कि नदियों की पवित्रता और साफ सफाई का ध्यान रखेगा तो नदियां भी मनुष्य के प्रति कृतार्थ रहेंगी. इस तरह से ना तो नदी में बाढ आएगी और ना ही नदी का जल प्रदूषित रहेगा.
अगर एनजीटी का डर नहीं होता तो शासन प्रशासन भी नदी को उसके हाल पर छोड़ देता. प्रशासन के द्वारा एनजीटी के संदर्भ में नियमों का हवाला दिया जाता है और पुलिस प्रशासन को निर्देश दिया जाता है कि लोगों से उसका अनुपालन करवाया जाए. प्रशासन भी इससे ज्यादा कुछ नहीं करता. नदियों की स्वच्छता को लेकर कई कानून हैं, लेकिन उन कानूनों का कभी पालन नहीं होता. लोग डंपिंग ग्राउंड में नहीं जाते और चोरी छिपे घर का कचरा नदी में बहा देते हैं. ऐसा नहीं है कि केवल साधारण लोग ही ऐसा करते हो. बल्कि पढ़े लिखे लोग भी चुपचाप नदी में कचरा बहा देते हैं. इन कचरो में घर की पुरानी मूर्तियां, सूखे फूल और अन्य अवांछित सामग्री रहती है, जिन्हें नदी में बहा दिया जाता है.
अगर यह नजारा देखना हो तो नौकाघाट सेतु पर आ जाइए. थोड़ा समय इंतजार कर लीजिए.आप देखेंगे कि कार वाले, मोटरसाइकिल वाले और साधारण लोग झोले या पोटली में भरकर घर का कचरा लाते हैं और गाड़ी खड़ी कर पुल पर खड़े होकर नदी में उछाल देते हैं. खबर समय ने पहले भी प्रशासन का ध्यान आकृष्ट किया था. सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासन ने बहुत पहले कहा भी था कि नौकाघाट सेतु पर जाली लगाई जाएगी, ताकि लोग पुल से कचरा फेंक न सके. मगर आज कई साल गुजर गए. अब तक नौकाघाट जाली के लिए इंतजार ही कर रहा है और कब तक उसका अरमान पूरा होगा, यह बताना भी कठिन है.
आखिर इस समस्या का सर्वमान्य समाधान क्या होना चाहिए. ना पुलिस से, ना कानून से इसका समाधान होगा. अगर इसका समाधान होगा तो लोगों को जागरूक बनाकर और नैतिकता का पाठ पढ़ाकर. यहां के लोगों को एक दृढ़ संकल्प लेने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्हें मन से नदी की महत्ता और उसकी पवित्रता को स्वीकार करने की जरूरत है. अपने आचरण और व्यवहार में बदलाव लाकर एक ठोस रणनीति के साथ काम किया जाए तो महानंदा केवल छठ पूजा तक ही नहीं, बल्कि पूरे वर्ष तक स्वच्छ और पवित्र बनी रहेगी.