वक्त से बड़ा और बलवान कोई नहीं. वक्त में इतनी बड़ी ताकत है कि वह तिनके को भी पहाड़ बना सकता है और पहाड़ को मिट्टी में भी मिला सकता है. एक वक्त था जब मुकुल राय को ममता बनर्जी का दाया हाथ समझा जाता था. बंगाल की राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले मुकुल राय का तृणमूल कांग्रेस में बड़ा दमखम था. लेकिन अब वही तृणमूल कांग्रेस उन्हें पार्टी में जगह देने के लिए तैयार नहीं है. ममता बनर्जी के साथ मिलकर टीएमसी का गठन करने वाले मुकुल राय को स्वयं ममता बनर्जी भी तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा नहीं मानती.
मुकुल राय ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर जीता था. हालांकि 2021 विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 9 दिन बाद ही वे फिर से तृणमूल कांग्रेस में लौट गए थे. मुकुल राय ने 2017 में भाजपा ज्वाइन किया था और विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को राज्य की सत्ता में लाने के लिए उन्होंने भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं के साथ बंगाल का दौरा किया था. हालांकि भाजपा सत्ता में नहीं आ सकी.
अब भाजपा भी तृणमूल कांग्रेस की तरह उनसे किनारा कर लेना चाहती है. क्योंकि भाजपा मानती है कि मुकुल राय राजनीति से रिटायर हो चुके हैं. उनका पार्टी में रहना या ना रहना, दोनों ही बराबर है. आज मुकुल राय की स्थिति ऐसी है कि कोई भी पार्टी उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं है. मुकुल राय भाजपा के बड़े नेताओं से मिलना चाहते हैं. लेकिन वे भी उनसे मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.
वक्त ने मुकुल राय को कहां से कहां ला पटका है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनके बेटे द्वारा उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराना और दिल्ली में उनका पाया जाना, इसके बाद बेटे का यह बयान कि उनके पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, बहुत कुछ कहता है! इससे उनकी माली हालत का भी पता चलता है!
यह सच है कि मुकुल राय अभी भी भाजपा विधायक हैं. लेकिन बंगाल से लेकर दिल्ली तक पार्टी में भाजपा के कई नेता उनकी वापसी का विरोध कर रहे हैं. हालांकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार मुकुल राय के संबंध में सारा फैसला हाईकमान पर छोड़ चुके हैं. इस तरह से प्रदेश में पार्टी का कोई भी नेता मुकुल राय की वापसी नहीं चाहता. मुकुल राय के मामले को ठीक तरह से समझने वाले लोग यह भी कहते हैं कि फर्श से अर्श और फिर अर्श से फर्श तक पहुंचने का राजनीति में मुकुल राय एक बड़ा उदाहरण है. राजनीति में आगे भी मुकुल राय एक उदाहरण बनते रहेंगे!
मुकुल राय की मौजूदा स्थिति देखते हुए राजनेताओं और साधारण लोगों को वक्त से सीख लेनी चाहिए और यह नहीं भूलना चाहिए कि वक्त बड़ा बलवान होता है. इसलिए ऐसा कोई काम नहीं करो ताकि वक्त एक दिन आपसे काम का हिसाब लेने लगे! समझदार, अकलमंद और ईमानदार राजनीति और व्यवसाय वक्त की मांग है!