उड़ीसा में ट्रेन हादसे की गूंज पूरे विश्व में सुनाई पड़ रही है. मृतकों की संख्या की सही सही स्थिति अब स्पष्ट होने लगी है. सैकड़ो लोग मारे गए हैं. घायलों की संख्या तो हजार पार कर गई है. जब भी ऐसे हादसे होते हैं तो सर्वप्रथम एनडीआरएफ, सेना और सुरक्षा बल रेस्क्यू ऑपरेशन चलाते हैं और जान माल के बचाव में जुट जाते हैं.
एनडीआरएफ की जहां तक बात है, इतिहास गवाह है कि हर समय एनडीआरएफ के लोगों ने प्राकृतिक विपदा के समय अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों के जान माल की रक्षा की है.यह एक बार फिर से साबित हुआ है.जिस समय यह रेल हादसा हुआ था, उस समय घटनास्थल पर लगभग डेढ़ घंटे तक अंधेरा ही अंधेरा था.
एनडीआरएफ का एक जवान जिसका नाम वेंकटेश है, वह हावड़ा से कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार होकर 1 महीने की छुट्टी में अपने घर तमिलनाडु जा रहा था. भगवान का शुक्र है कि वह इस हादसे में बाल-बाल बच गया. लेकिन वह जख्मी जरूर हो गया. इसके बावजूद उन्होंने अपने दर्द और जख्म की परवाह नहीं की. उसने अपनी जान जोखिम में डालकर जो कुछ भी किया, वह एक मिसाल ही है. यह हादसा शाम 6:30 बजे के आसपास हुआ था. एकाएक तेज आवाज के साथ जोर का झटका लगा.
वेंकटेश ने बड़ी मुश्किल से अपनी बोगी का दरवाजा खोला. चारों तरफ से लोगों की चीख-पुकार सुनाई पड़ रही थी. बाहर का मंजर देख कर वेंकटेश की चीख निकल गई. उन्होंने अपने इंस्पेक्टर को फोन किया. इंस्पेक्टर ने कमांडर को हादसे की जानकारी दी. धीरे-धीरे पूरा हेड क्वार्टर हरकत में आ गया. लेकिन जब तक बचाव दल पहुंचा, उससे पहले वेंकटेश ने अकेला अपना काम करना शुरू कर दिया था.
उन्होंने अपने मोबाइल फोन की लाइट जलाई और लोगों के बचाव के लिए स्वयं ही पहल करना शुरू कर दिया. नजदीक ही एक बोगी से महिलाओं और बच्चों की चीख सुनाई पड़ रही थी. उन्होंने कुछ ग्रामीणों को साथ लिया और बोगी से यात्रियों को बाहर निकालने का प्रयास शुरू कर दिया. इस बीच एनडीआरएफ की टीम पहुंच गई तो आगे का रेस्क्यू ऑपरेशन आसान होता चला गया. एनडीआरएफ ने लगभग 4 दर्जन लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है. एनडीआरएफ के इस जवान के पुरुषार्थ और जज्बे को सलाम है!