भारत में रह रही बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आईसीटी के आज आए फैसले, जिसमें उन्हें मौत की सजा दी गई है, को मानने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा है कि ICT का फैसला राजनीतिक बदले से की गई कार्रवाई है. शेख हसीना ने कहा कि फर्जी अदालत का फैसला मानने के लिए वह बाध्य नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यह मुकदमा एकतरफा है. उनकी अनुपस्थिति में चला और उन्हें अपने बचाव का कोई मौका ही नहीं दिया गया.
आज अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा सुनायी है, जिसकी आहट कई दिन पहले से ही लग रही थी. आईसीटी ने शेख हसीना पर लगाए गए मानवता विरोधी कृत के आरोप को सही पाया है और इसके बाद ही उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है. अदालत में वकीलों का भारी जमावड़ा और शेख हसीना को फांसी की मांग से पता चलता है कि बांग्लादेश में हवा शेख हसीना के खिलाफ हो चुकी है.
शेख हसीना ने आईसीटी के इस फैसले को संविधान विरोधी बताया है. उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपी को खारिज कर दिया है. वह अगस्त 2025 के बाद से ही बांग्लादेश छोड़कर भारत में रह रही है. उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा है कि आईसीटी का यह फैसला पक्षपात पूर्ण और राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने आईसीटी के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है और कहा है कि यह फैसला बिना किसी लोकतांत्रिक जनादेश वाले एक धांधली पूर्ण न्यायाधिकरण ने दिया है. यानी उनकी नजर में इस कोर्ट की कोई मान्यता ही नहीं है.
शेख हसीना के इस आरोप और बयान से कुछ सवाल भी उठ रहे हैं. आखिर बांग्लादेश में सुप्रीम कोर्ट भी है. फिर भी शेख हसीना को मौत की सजा आईसीटी ने क्यों दी? वास्तव में आईसीटी बांग्लादेश की एक विशेष अदालत है, जो 1971 के युद्ध अपराधों के मामलों की सुनवाई करती है.यह अदालत सुप्रीम कोर्ट की तरह आम मामलों को नहीं सुनती है. इसका काम उन लोगों को सजा देना है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान सेना की मदद की. इसके अलावा मानवता के विरुद्ध अपराध, नरसंहार, बलात्कार, हत्या, अग्निकांड आदि के अपराध और देश के खिलाफ साजिश के मामलों में ही यह अदालत विशेष दखल देती है.
जो भी हो, यह बहस का विषय है. आईसीटी ने शेख हसीना को तीन मामलों में दोषी पाया है. इनमें बांग्लादेश के लोगों को भड़काना, हिंसा के लिए आदेश देना और अत्याचारों को रोकने में विफल रहना शामिल है. आईसीटी ने शेख हसीना पर मानवता के विरुद्ध अपराध को सत्य पाया. पूर्व गृह मंत्री जमाल खान कमाल को उकसाने का दोषी पाया. तीसरा आरोपी पूर्व इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस चौधरी अब्दुल्लाह अल मामून भी शामिल है. उन पर आरोप था कि उन्होंने ढाका तथा आसपास के क्षेत्रों में छात्रों की हत्या के लिए कार्रवाई को अधिकृत किया. लेकिन यह सब तभी संभव है, जब आईसीटी के फैसले को लागू किया जाता है. शेख हसीना तो इसे फर्जी अदालत बता रही है.
पिछले कई दिनों से बांग्लादेश के हालात बिगड़ गए हैं. कट्टरपंथी ताकतें शेख हसीना को फांसी की सजा से कम नहीं चाहती थी और इसीलिए अदालत पर दबाव डालने के लिए पिछले कई दिनों से हसीना विरोधी ताकते बांग्लादेश में सक्रिय थीं. हालांकि बांग्लादेश में शेख हसीना के समर्थक भी कम नहीं है. वे अदालत के फैसले का विरोध कर रहे हैं. आज कोर्ट के फैसले के खिलाफ शेख हसीना के समर्थक ढाका की सड़कों पर उतर आए और भारी हंगामा कर दिया. उधर शेख हसीना के विरोधी भी सड़कों पर उतरे और उन्हें फांसी देने की मांग करते हुए धान मंडी 32 इलाके में शेख हसीना के समर्थकों से टकरा गए
गनीमत थी कि बांग्लादेश पुलिस ने समय रहते मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभाल लिया. आपको बता दें कि धान मंडी इलाका शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश की नींव रखने वाले शेख मुजीबुर रहमान का घर है. जिसे अब म्यूजियम में बदल दिया गया है. म्यूजियम की सुरक्षा सेना करती है. आज ढाका कॉलेज के कुछ छात्र इस म्यूजियम को नुकसान पहुंचाने के लिए जा रहे थे. लेकिन समय रहते पुलिस ने मौके पर पहुंचकर किसी बड़ी वारदात को होने से टाल दिया.
शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने अदालत के फैसले के खिलाफ दो दिनों के बंद का ऐलान किया है. बांग्लादेश की सरकार ने हिंसा फैलाने और आगजनी करने वालों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया है. जो हालात बन रहे हैं उससे इस बात का अंदेशा है कि आने वाले कुछ दिनों में बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा की चपेट में आ सकता है. क्योंकि बांग्लादेश में आवामी लीग के समर्थक और कार्यकर्ता आईसीटी के फैसले को नहीं मान रहे हैं और वे कुछ भी कर सकते हैं. बहरहाल यह देखना होगा कि शेख हसीना को मिली सजा ए मौत के बाद शेख हसीना और उनके समर्थक आईसीटी के फैसले को किस तरह से चुनौती देते हैं. सवाल यह भी है कि क्या भारत सरकार शेख हसीना को बांग्लादेश को सौंप सकती है?
