मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सिलीगुड़ी और उत्तर बंगाल के लोगों को औद्योगिक तोहफा तो दे ही रही है, इसके साथ ही शोषित व वंचित लोगों को भी राहत दे रही है. खासकर तीस्ता नदी के किनारे बसे लालट॔ग बस्ती और चमक डांगी के भूमिहीन लोगों को पट्टे बांट रही है. मुख्य मंत्री ने तीस्ता नदी के किनारे बसे लोगों के पुनर्वास के लिए एक योजना बनाई है, जिसे तीस्ता पल्ली नाम दिया गया है. अब तीस्ता के सताए लोगों का पुनर्वास का मार्ग प्रशस्त हो गया है.
यह बताने की जरूरत नहीं है कि यहां के निवासी हर साल तीस्ता नदी की बाढ़ में सब कुछ गंवा बैठते हैं. कई बार उनकी स्थिति काफी दयनीय हो जाती है. माल मवेशी सब पानी में डूब जाते हैं. यहां तक कि खुद उनकी जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है. बरसात आने में कुछ विलंब जरूर है. पर बीच-बीच में होने वाली बरसात से तीस्ता नदी बरसात की चाल क्या होगी, यह एहसास करा जाती है.
आप भी इस मंजर को देख सकते हैं. इसी से पता चलता है कि जब रात दिन बरसात होगी तब तीस्ता का कलेवर कैसा होगा. सोच कर ही रूह कांप जाती है. तीस्ता नदी के किनारे बसे लोगों को सावधान हो जाने की जरूरत है. क्योंकि अभी से ही तीस्ता नदी अंगड़ाई लेने लगी है. पिछले दिनों की बरसात में तीस्ता नदी की जलधारा में वृद्धि दर्ज की गई है. विशेषज्ञ और जानकार मानते हैं कि इस साल तीस्ता नदी काफी विकराल रूप धारण कर सकती है.
मुख्यमंत्री को भी इस बात की चिंता सता रही है. यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने इस बार तीस्ता नदी के किनारे बसे बस्ती क्षेत्रो और गांवों को तीस्ता नदी की बाढ़ से बचाने और उनके पुनर्वास के लिए एक अभियान शुरू किया है, जिसका नाम तीस्ता पल्ली है. इस अभियान से यहां के निवासियों को जरूर राहत महसूस हो रही होगी. लाल टांग बस्ती के निवासी कहते हैं कि देर से ही सही, सरकार जागी तो सही!
तीस्ता नदी के गर्भ में गाद ऊपर तक आ गई है, जिसके कारण पानी तेजी से किनारे की ओर फैलने लगा है. जब थोड़ी सी बरसात में ही कटाव इतना हो तो बरसात में आलम क्या होगा, आसानी से समझा जा सकता है. सेवक से लेकर मयनागुड़ी व जलपाईगुड़ी तक तीस्ता नदी के पेट में बालू पत्थर और मिट्टी की कई परतें जम गई है, जिन्हें हटाने के लिए सिंचाई विभाग ने पूर्व में पहल भी की थी. लेकिन यह कारगर नहीं हो सका. इसी के कारण विशेषज्ञ चिंतित हैं और तीस्ता नदी को अभी से ही खतरनाक मानने लगे हैं.
कयास लगाया जा रहा है कि अगर सिक्किम में पिछले बार की त्रासदी की पुनरावृत्ति होती है तो समस्या काफी गंभीर हो सकती है. क्योंकि इस बार तीस्ता नदी की गहराई काफी घट गई है. नदी की गहराई घटने से जलधारा तीव्र हो जाती है. जैसे-जैसे यह नदी पहाड़ी ढलानों से उतरकर मैदानी इलाकों में आगे बढ़ती जाती है, उसके जल प्रवाह में तीव्रता आती जाती है. पहाड़ से बड़े-बड़े पत्थर और मलबा नदी की जलधारा में गिरते हैं तो उसका प्रवाह तेज होता जाता है.
यही सोचकर विशेषज्ञ भविष्य के प्रति आशंकित हैं. यू तो सिंचाई विभाग अपना काम कर रहा है, मगर वक्त काफी कम है. इसलिए सरकार अभी से ही इस दिशा में जुट गई है, ताकि कम से कम क्षति हो सके. अब देखना होगा कि बंगाल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह प्रयास कितना रंग लाता है!