सिक्किम की त्रासदी को हमेशा याद रखा जाएगा. सिक्किम त्रासदी की अनकही कहानियों में एक कहानी दावा छिरिंग तोंगदेन लेप्चा की है, जिसने अपनी कुर्बानी देकर सिंगताम तथा रंगपो के अनेक लोगों की जिंदगियां बचाई. दावा छिरिंग तोंगदेन लेपचा सिक्किम के लिए किसी देवदूत से कम नहीं है. दावा की बहादुरी, सूझबूझ और कार्य के प्रति समर्पण की भावना ने सिक्किम को एक बहुत बड़े नुकसान से बचाया है. इस युवक ने सिक्किम के युवाओं को प्रेरणा दी है कि जिंदगी का दूसरा नाम कल्याण और परोपकार है.
दावा छिरिंग 35 साल का युवक था. वह पूर्वी सिक्किम में लोअर सैमडोंग का रहने वाला था और डिकचू में एनएचपीसी तीस्ता डैम में स्टाफ मैनेजर के रूप में नौकरी करता था. दावा छिरिंग एक कर्तव्यनिष्ठ और उत्साही युवक था. वह हमेशा दूसरों की भलाई के लिए सोचता रहता था. दावा का सहकर्मी नरेश छेत्री बताते हैं 4 अक्टूबर की उस मनहूस भयानक रात में क्या हुआ था…
लहोनक लेक का डैम टूटने के बाद पानी तेजी से नीचे की ओर जाने लगा. चुंगथांग में सिक्किम ऊर्जा डैम तेजी से प्रभावित होने लगा और बांध के किनारो पर ठोकने मारने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई जलजला सा आ गया हो. देखते देखते बांध का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया और वहां से तेजी से पानी का रेला नीचे की ओर जाने लगा.
दावा छिरिंग की ड्यूटी डैम के ऊपर बैरक के अंदर लगी थी. वह अपनी बैरक से ही देख रहा था कि पानी का रेला तेजी से आ रहा है और डैम में भरता जा रहा है. काली, भयानक रात में पानी का रेला इस तरह से आवाज कर रहा था जैसे तेज झंझावात में पेड़ पौधे और प्रकृति आर्तनाद करने लगते हैं. किसी विस्फोट की तरह ही दावा के कानों तक जा रहा था. उसे लग रह रहा था जैसे पहाड़ टूट कर गिर रहा हो. डैम का मुहाना एक विचित्र आवाज से जैसे दम तोड़ने से लगा. क्योंकि पानी तेजी से ओवरफ्लो करने लगा था.
दावा छिरिंग ने सोचा कि अगर जल्दी से गेट नहीं खोला गया तो पूरा सिंगताम और रंगपो पानी में डूब जाएगा और सिक्किम को भारी नुकसान होगा. अचानक उसके दिमाग में एक आइडिया आया. इसके साथ ही लोगों की जिंदगियां बचाने का जुनून भी उत्पन्न हुआ. उसने अपनी जान जोखिम में डालकर एनएचपीसी तीस्ता का गेट खोल दिया. गेट तो उसने खोल दिया, लेकिन उसी समय हाई वोल्टेज लाइन के संपर्क में आने से वह खुद को बचा नहीं सका. वह वीरगति को प्राप्त हो गया.
इस तरह से इस नौजवान ने अपने प्राणों की चिंता नहीं की और दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. दावा की कहानी कुछ ऐसी है कि हर नौजवान को उससे प्रेरणा लेनी चाहिए. दावा छिरिंग के भाई रोंग-जोंग लेप्चा बताते हैं कि उसका भाई बहादुर था. उसने अपनी जान की परवाह नहीं की. उसने सिक्किम के लोगों की जान बचाई है. उसने यह भी नहीं सोचा कि उसके ना रहने से उसके परिवार का क्या होगा, लेकिन जो उसका फर्ज और धर्म था, उसे उसने पूरा किया.
आज दावा छिरिंग इस दुनिया में नहीं है. लेकिन उसकी वीरता की कहानी सिक्किम के नौजवानों को प्रेरित करती रहेगी. दावा छिरिंग अपने पीछे एक भरा पूरा शोक संतप्त परिवार छोड़ गया है. उसके परिवार में पत्नी गीता कुमारी राय के अलावा दो बच्चे भी हैं. दावा छिरिंग के वीरगति प्राप्त होने के बाद उसका परिवार बिखर गया है. लेकिन उनकी पत्नी को अपने बहादुर पति पर गर्व है, जिसने सिक्किम को एक बड़ी तबाही से बचाया है!