सिक्किम सरकार ने प्रदेश में चल रहे कई स्कूलों के विलय का फैसला लिया है. इसको लेकर कई बुद्धिजीवी और राजनीतिक संगठनों के लोग मुख्यमंत्री के विरोध में उतर आए हैं तो कई बुद्धिजीवी और सामान्य लोग इसे मुख्यमंत्री का उचित फैसला बताते हैं. मुख्यमंत्री ने राज्य में चल रहे उन स्कूलों के विलय का फैसला किया है, जहां बच्चों की उपस्थिति काफी कम है. ऐसे स्कूलों को बंद करके भवनों का उपयोग किसी अन्य कार्य में किया जाएगा.
सिक्किम प्रदेश में स्कूल 765 सरकारी स्कूल हैं. जबकि राज्य में निजी स्कूलों की संख्या 400 से ज्यादा है. सिक्किम सरकार ने 97 स्कूलों के विलय का फैसला किया है. इनमें से कई स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या शिक्षकों से भी कम है. राज्य सरकार ने स्कूलों के विलय का एक क्राइटेरिया तय किया है. इसके अनुसार राज्य में जिन स्कूलों के विलय का फैसला किया गया है, उनमें से 78 प्राइमरी स्कूल हैं, जहां प्रति कक्षा 10 से भी कम बच्चे पढ़ते हैं.
राज्य में 12 जूनियर हाई स्कूलों को भी चिन्हित किया गया है. इन्हें भी बंद किया जाएगा. इन स्कूलों में प्रति कक्षा 20 से भी कम बच्चे पढ़ते हैं. जबकि प्रदेश में 7 सेकेंडरी स्कूलों को भी बंद किया जा रहा है अर्थात इन स्कूलों को दूसरे स्कूलों के साथ विलय किया जाएगा, जहां प्रति कक्षा 50 से भी कम बच्चे पढ़ते हैं. अब सवाल उठता है कि राज्य सरकार का यह फैसला कितना उचित है. क्योंकि जिन स्कूलों को बंद किया जा रहा है, वहां पढ़ने वाले बच्चे क्या दूरस्थ स्कूलों में जा भी सकेंगे?
सिक्किम की भौगोलिक स्थिति पर विचार किया जाए तो यहां ग्रामीण इलाकों में दूर-दूर मकान नजर आएंगे. आबादी काफी कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी ज्यादा है. अगर बच्चों के नजदीक के स्कूलों को बंद कर दिया जाता है तो ऐसे बच्चों को दूर जाकर स्कूल में पढ़ना एक तो यातायात के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता तथा दूसरे दूर स्कूलों में छोटे बच्चे दाखिला लेने से भी घबराते हैं. माता-पिता भी ज्यादा इंटरेस्टेड नहीं होते. वे अपने बच्चों को पास के चल रहे निजी स्कूलों में दाखिला कराने पर विचार कर सकते हैं.
कुछ लोग बताते हैं कि राज्य सरकार के इस फैसले से निजी स्कूलों को प्रोत्साहन मिलेगा और उनकी मनमानियां बढ़ सकती है. साधन विहीन परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला के लिए मजबूर हो सकते हैं. उनके समक्ष दो ही रास्ते होंगे. या तो बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए या फिर बच्चों को अनपढ़ ही रखा जाए. राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी सिटीजन एक्शन पार्टी ने राज्य सरकार के इस फैसले को इसी एंगल से देखा है और अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
हालांकि यह भी सच है कि राज्य सरकार ने इसका फैसला खूब सोच समझ कर लिया है. क्योंकि कुछ स्कूल तो ऐसे भी हैं जहां बच्चों की संख्या शिक्षकों से भी कम है. ऐसे में उन स्कूलों को चलते देना कहां तक उचित है. राज्य सरकार शिक्षकों को वेतन देती है. विद्यालय में संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं. यह सब बच्चों के लिए कराया जाता है. पर बच्चे ही स्कूल में ना हों तो फिर ऐसे स्कूलों को चलाने का क्या लाभ. सरकार चाहती है कि ऐसे कई स्कूलों को मर्ज कर दिया जाए. इससे संसाधनों पर सरकार के खर्च कम होगे. साथ ही सरकार संसाधनों का अन्य कामों में इस्तेमाल कर सकेगी.
गोले सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी शिक्षक को हटाया नहीं जाएगा और उन्हें अन्य कामों में लगा दिया जाएगा. जबकि स्कूल भवनों का प्रशासनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल होगा. जानकार मानते हैं कि सिक्किम सरकार का यह फैसला प्रदेश में घटती प्रजनन दर को लेकर है, जिसके कारण सिक्किम के स्कूलों में बच्चे लगातार कम होते जा रहे हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019 से 2021 के अनुसार राज्य में देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले फर्टिलिटी रेट सबसे कम है. राज्य सरकार लगातार राज्य में फर्टिलिटी रेट प्रोत्साहन के लिए काम कर रही है. एक सर्वे के अनुसार 2009 में सिक्किम में फर्टिलिटी रेट 2.0 1% थी. जबकि वर्तमान में यह 1.01% ही रह गई है. बहरहाल राज्य सरकार का फैसला भले ही उचित हो, परंतु इतना जरूर है कि इसका बच्चों के शिक्षा के विकास पर असर जरूर पड़ेगा. जब नजदीक के स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति कम हो तो दूरस्थ स्कूलों में बच्चे कैसे जाएंगे. अच्छा तो होता कि सरकार इस पहलू पर विचार करती कि बच्चों की स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने के लिए एक सही रणनीति पर काम किया जाता.