मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तथा उनकी सरकार द्वारा जारी राज्य के लोगों की स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य साथी कार्ड तथा निजी अस्पतालों के द्वारा उसे लेने से इनकार करने के मामले लगातार सुर्खियों में रहते हैं. स्वास्थ्य साथी कार्ड के जरिए सरकार प्रत्येक लाभार्थी को साल में ₹500000 तक का मुफ्त इलाज का खर्च वहन करती है.
राज्य में महिलाओं के नाम से जारी स्वास्थ्य साथी कार्ड वर्तमान में घर घर उपलब्ध हो चुका है. परंतु सिलीगुड़ी समेत पूरे राज्य में अक्सर यही शिकायत रहती है कि अस्पताल इस कार्ड को महत्त्व नहीं दे रहे हैं तथा रोगी से नगद पैसे लेकर ही इलाज करते हैं. अगर यह कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा कि स्वास्थ्य साथी कार्ड जारी करने के समय से ही यह मुद्दा लोगों की परेशानियों का कारण बन चुका है.
सरकार स्वास्थ्य साथी कार्ड की उपलब्धियों को गिना तो देती है परंतु कार्ड की स्वीकृति और उसके आधार पर रोगियों का मुफ्त इलाज हो, सरकार ने इसे सुनिश्चित करने के लिए कभी भी कोई ठोस प्रयास नहीं किया. यही कारण है कि अधिकांश निजी अस्पताल स्वास्थ्य साथी कार्ड को स्वीकृत नहीं करते और रोगी के परिजनों से पैसे लेकर ही रोगी का इलाज करते हैं.
सर्वप्रथम स्थानीय पार्षदों और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने इसकी शिकायत उच्च स्तर पर की. तृणमूल कांग्रेस के विधायक और सांसदों ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कई बार इस मामले में आवश्यक कदम उठाने की अपील की. स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई मंचों पर स्वास्थ्य साथी कार्ड को लेकर राज्य के निजी अस्पतालों को धमकाया और उनका लाइसेंस तक रद्द करने की चेतावनी तक दे डाली.
हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि इसका कोई भी असर नहीं पड़ा. पहले से हालात जरूर बदले हैं. अब बड़ी संख्या में निजी अस्पताल और नर्सिंग होम रोगी के स्वास्थ्य साथी कार्ड को स्वीकृत करने तथा मुफ्त इलाज के लिए तैयार हो रहे हैं.
लेकिन इन सबके बावजूद अभी भी अधिकांश नर्सिंग होम स्वास्थ्य साथी कार्ड को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. इससे राज्य के लोगों की शिकायत लगातार सामने आ रही है. इस समय सिलीगुड़ी समेत पूरे राज्य में दीदी के दूत कार्यक्रम चल रहे हैं. जगह-जगह तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधियों को जनता के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
इस बीच तृणमूल कांग्रेस के डायमंड हार्वर के सांसद और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने एक बार फिर राज्य के लोगों से मिली शिकायत के बाद राज्य के निजी अस्पतालों तथा नर्सिंग होम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. वास्तव में अभिषेक बनर्जी ने एक डाके अभिषेक कार्यक्रम की शुरुआत की है. इसमें अकेले डायमंड हारबर से 67000 लोगों ने फोन किया. जबकि पूरे राज्य से 700000 लोगों ने उनसे संपर्क किया है. इसमें सबसे ज्यादा शिकायतें स्वास्थ्य साथी कार्ड को अस्पतालों द्वारा स्वीकार नहीं करने को लेकर है.
ममता बनर्जी के बाद अभिषेक बनर्जी पहले ऐसे सांसद हैं, जिन्होंने स्वास्थ्य साथी कार्ड के मामले को गंभीरता से लिया है और ममता बनर्जी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि जो अस्पताल कार्ड को स्वीकार नहीं करेंगे, उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. आपको बताते चलें कि पूर्व में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस तरह की बात कर चुकी हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि स्वास्थ्य साथी कार्ड स्वीकार नहीं करने वाले कितने अस्पतालों का लाइसेंस रद्द किया गया! कुछ लोगों का मानना है कि यह एकमात्र अभिषेक बनर्जी की राजनीति हो सकती है.क्योंकि इसका वस्तु स्थिति से कोई लेना-देना नहीं होता.
अगर सरकार को जनता के हित में फैसला लेना है तो ऐसी बातें कहने के बजाय करके दिखानी चाहिए. अभिषेक बनर्जी को चाहिए कि राज्य के निजी अस्पतालों तथा नर्सिंग होम को स्वास्थ्य साथी कार्ड स्वीकार करने के लिए तैयार करें. अगर कोई अस्पताल ऐसा नहीं करता अथवा रोगी को परेशान करता है तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए. अब समय आ गया है कि कथनी और करनी को सिद्ध किया जा सके, अन्यथा राज्य के लोगों का भरोसा सरकार पर कम होता जाएगा!