इन दिनों बालासन नदी से बालू पत्थर संग्रह करने का काम रुका हुआ है, जिसे तुरंत शुरू करने की मांग को लेकर श्रमिक और परिवहन से जुड़े लोग आंदोलन कर रहे हैं. आए दिन आंदोलनकारियों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है. अब आंदोलनकारी श्रमिक प्रशासनिक अधिकारियों की कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं है.
सिलीगुड़ी की विभिन्न नदियों से बालू पत्थर संग्रह करने का काम एक प्रमुख उद्योग बन चुका है. इस कार्य में हजारों श्रमिक और परिवहन मालिक जुड़े हुए हैं. ऐसे ही कार्यों से श्रमिकों का घर परिवार चलता है तथा परिवहन मालिक रोजी रोटी कमाते हैं. आमतौर पर बरसात के दिनों में उनका उद्योग धंधा बंद हो जाता है. तब नदियों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
उस समय यह श्रमिक काफी खस्ता हालत में आ जाते हैं. आय का अतिरिक्त कोई साधन ना होने तथा शिक्षा की कमी ने हजारों श्रमिकों को नदी से बालू पत्थर निकालने के कार्यों में संलग्न किया है. कोरोना काल में और एनजीटी के आदेश के बाद श्रमिक काफी समय तक बेरोजगार थे.
आज श्रमिकों तथा उनके परिवार के समक्ष रोजी रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. अगर बालासन नदी की वह घटना नहीं घटती, जिसमें दो बच्चों की दबकर मौत हुई थी तो इतना बड़ा झमेला भी नहीं होता! यह श्रमिकों का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि सिलीगुड़ी की नदियों से बालू उत्खनन अथवा पत्थर संग्रह का काम पूरी तरह बंद हो गया है! लेकिन इस पूरे काम में काफी गड़बड़झाला भी दिख रहा है. रात के अंधेरे में तो यह काम होता है. लेकिन दिन के उजाले में यह कार्य नहीं किया जा सकता. यह पूरा धंधा और बिल्टी का सौदा किस तरह से होता है, यह तो एक अधिकारी ही बता सकता है!
अब एक नई समस्या उत्पन्न हुई है. जनवरी महीने में विभिन्न नदियों के घाटों का लीज नवीकरण होता है. लेकिन अब तक लीज नवीकरण का काम नहीं हो सका है. कारण क्या है, यह कोई नहीं जानता! जिसके कारण नदी घाटों से बालू पत्थर संग्रह का काम कानूनन नहीं किया जा सकता. बालासन नदी से बालू पत्थर संग्रह करने के कार्य में हजारों श्रमिक जुड़े हुए हैं. यह सभी मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द लीज नवीकरण का कार्य हो ताकि कानूनी रूप से राजस्व उगाही के साथ-साथ बालासन नदी से बालू पत्थर संग्रह का काम शुरू हो सके.
श्रमिक तथा परिवहन विभाग के लोग पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. वे विभिन्न सरकारी दफ्तरों में जाकर अधिकारियों को ज्ञापन देते हैं और अपनी व्यथा सुनाते हैं. बीडीओ अथवा दूसरे अधिकारी भी बेबस हैं. क्योंकि जो वे मांग कर रहे हैं उसे पूरा करना उनके हाथ में नहीं है. जैसा कि माटीगाड़ा के बीडियो श्रीनिवास विश्वास ने अपनी मजबूरी बताई है. लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि वह उनकी बात को ऊपर तक पहुंचा चुके हैं. फैसला अधिकारियों को लेना है.
बालासन नदी के आसपास जो क्षेत्र आते हैं, उनमें माटीगाड़ा प्रमुख है.श्रमिकों की ओर से माटीगाड़ा बीडियो के अलावा माटीगाड़ा पंचायत समिति तथा भूमि एवं भू राजस्व विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन दिया जा चुका है. परंतु अभी तक इस संदर्भ में सारे दरवाजे बंद दिख रहे हैं. अब श्रमिक और परिवहन विभाग के मालिक प्रशासन से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ चुके हैं. उन्होंने प्रशासन को 3 दिनों का अल्टीमेटम दिया है. अगर इस दौरान प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो श्रमिकों की माने तो वे सोमवार से सड़क पर उतरने पर मजबूर होंगे. अब देखना है कि श्रमिकों की धमकी के मद्देनजर प्रशासन क्या फैसला करता है!