राज्य में पंचायत चुनाव से ठीक पहले कोलकाता हाईकोर्ट ने राजनीतिक दलों की सभा रैलियों के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है.राजनीतिक जानकार इस फैसले को तृणमूल कांग्रेस को एक बड़ा झटका बता रहे हैं. राज्य में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं. उससे पहले कोलकाता हाई कोर्ट का यह फैसला सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता.
यह कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल में जिस पार्टी की सरकार रहती है,वह पार्टी हमेशा विपक्षी पार्टियों की सभा, रैली आदि कार्यक्रमों पर कैंची चलाती रहती है. वाममोर्चा सरकार के समय से ऐसा चलता आ रहा है. इसके खिलाफ कई बार विपक्षी पार्टियां सड़क पर उतरी और कई बार सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिकाएं भी डाली गई. किसी भी तरह की सभा अथवा रैली करने के लिए दलों को थाने की इजाजत लेनी पड़ती है!
आमतौर पर विपक्षी पार्टियों की शिकायत रहती है कि सत्तारूढ़ सरकार के इशारे पर चुनाव के समय उन्हें सभा अथवा रैली करने के लिए थानों से इजाजत नहीं मिलती है. पुलिस जानबूझकर उनकी रैली रद्द कर देती है अथवा अधर में लटका देती है. जबकि सत्तारूढ़ पार्टी की रैली को पहली नजर में हरी झंडी देती है. इसे लेकर कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी. अब न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने इस पर अपना फैसला सुनाया है.
न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने जो निर्देश दिया है, उसके अनुसार अब से पश्चिम बंगाल में सभा, रैली अथवा किसी तरह के राजनीतिक कार्यक्रम करने के लिए पार्टियों को थाने में आवेदन करने की जरूरत नहीं है. पार्टी सीधे पुलिस अधीक्षक अथवा पुलिस कमिश्नरेट को ऑनलाइन आवेदन कर सकती है.
अदालत ने कहा है कि आवेदन मिलने के बाद पुलिस अधीक्षक अथवा पुलिस कमिश्नरेट उसे ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर सूचीबद्ध करेंगे. इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा. और पूरी तरह निष्पक्ष होकर पार्टियों को रैली की इजाजत देनी होगी. कोर्ट ने कहा है कि रैली का रूट ,सभा स्थल, रैली पर लोगों की संभावित भीड़ आदि के संबंध में पूछताछ के बाद पुलिस रैली की इजाजत देने के संबंध में कागज तैयार करेगी.
कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चेताया है कि रैली शांतिपूर्ण होनी चाहिए तथा इसमें ध्वनि प्रदूषण के नियमों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. आपको बताते चलें कि दक्षिण 24 परगना के एक इलाके में इंडियन सेकुलर front और माकपा की सभा तथा रैली को पुलिस ने इजाजत नहीं दी थी. इसी के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसी याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश राजशेखर मंथा ने यह निर्देश दिया है.