एक तो देश में लिंगानुपात में कमी पहले से ही खल रही है,ऊपर से जब जब बहू पर अत्याचार जैसी घटनाएं सामने आती है, तब कई सवाल उठने लगते हैं. अपने पुत्र की शादी के लिए एक मां बाप लड़की की तलाश शुरू करता है और फिर लड़की की तलाश पूरी करके धूमधाम से बेटे का विवाह करता है. फिर कुछ दिनों के बाद यह खबर भी सुनने को आती है कि या तो बहू ने घर छोड़ दिया या फिर इस दुनिया में नहीं रही. आखिर क्या कारण है कि बहू के लिए तरसने वाला एक परिवार बहू की जान का दुश्मन बन जाता है?
सिलीगुड़ी में पिछले कुछ महीनों की ऐसी घटनाओं पर नजर डाले तो पता चलता है कि या तो बहू के साथ धोखा हुआ या फिर बहू ने खुदकुशी कर ली या फिर बहू को रास्ते से हटा दिया गया. आए दिन ऐसी खबरें सुर्खियों में रहती हैं. जैसा कि इस समय चंपासारी की घटना चर्चा में है. तो कुछ दिन पहले सिलीगुड़ी की ही एक बहू ने ससुराल से बेदखल होकर अपने अधिकार के लिए संघर्ष किया था. पिछले 2 महीनों के अंदर सिलीगुड़ी और पूरे बंगाल में कम से कम आठ से 10 घटनाएं ऐसी है, जहां बहुओं द्वारा इंसाफ मांगा गया लेकिन उन्हें मौत मिली. कोलकाता की घटना के ज्यादा दिन नहीं हुए.
जिस भारत में लड़की के अभाव में अच्छे-अच्छे घरों के लड़के कुंवारे रह जाते हैं,उस भारत में बहू पर जुल्म और उत्पीड़न का होना कई सवाल खड़े करते हैं. मौजूदा समय में ऐसी घटनाएं अधिकतर हो रही है.लेकिन एक जमाना था जब ऐसी घटनाओं की चर्चा बहुत कम ही होती थी. विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान में ऐसी घटनाओं के पीछे लड़कियों द्वारा अपने अधिकार का इस्तेमाल और कानून की धमकी की बात सामने आती है.
जब जब बहू अपने अधिकार के लिए संघर्ष करती है और ससुराल वालों से अपने अस्तित्व और अहम की मौजूदगी बनाए रखने के लिए अपने तेवर दिखाती है, तभी ऐसी घटनाएं सामने आती है. विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तव में आज की बहू पढ़ी लिखी होती है जो सही और गलत के लिए अपनी आवाज बुलंद करती है. यह बात ससुराल वालों को पसंद नहीं आती. क्योंकि उनकी मानसिकता कहीं ना कहीं हावी रहती है कि वे पुरुष प्रधान समाज के अंग है. ऐसे में स्त्री शक्ति का सर उठाना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है. जब लड़की को समझाने से भी बात नहीं जमती, तब एक सुनियोजित साजिश के तहत लड़की के वजूद को मिटाने की ही कोशिश शुरू कर दी जाती है.
अनेक मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने माना है कि लड़कियों की शिक्षा ही उन्हें महत्वाकांक्षी बना रहा है. एक शिक्षित लड़की किसी के सहारे की मोहताज नहीं होती. इसलिए उसका निर्णय स्वयं का होता है. जबकि उससे ससुराल पक्ष का व्यक्ति यह उम्मीद रखता है कि बहू उनके अनुसार चले. वे जो कहें, वही ठीक है और वह जो कहे वह गलत और जहां इस तरह की मानसिकता होती है कम से कम एक पढ़ी लिखी बहू बगावती तेवर अपना लेती है. ऐसे में परिणाम कुछ भी हो सकता है!
अगर सिलीगुड़ी की बात करें तो हाकिमपाडा से लेकर हैदरपाडा और फिर खालपारा से लेकर चंपासाड़ी, मिलन मोर तथा सिलीगुड़ी के विभिन्न भागों की घटनाओं पर नजर डालें तो पिछले 2 महीने के दरमियान कम से कम पांच से छह इस तरह की घटनाएं भले ही अलग-अलग कारणों से घटी हो, परंतु उन सभी घटनाओं में एक बहू के महत्वकांक्षी होने तथा ससुराल पक्ष के द्वारा उसकी आकांक्षा को मिटाने की कोशिश ने ही अप्रिय वारदातों को जन्म दिया है. कुछ विद्वानों का मानना है कि वर्तमान में लोगों के अंदर धैर्य भाव खत्म होता जा रहा है. यही कारण है कि बात बात में लड़ाई झगड़े, खून खराबे और इस तरह की हिंसक वारदातें हो रही हैं.
एक जमाना था जब बहू को सिखाया जाता था कि मायके से डोली उठती है और ससुराल से अर्थी. लेकिन आज यह सिखाया जाता है कि अपने हक और इंसाफ के लिए हमेशा आवाज उठाओ. क्योंकि तुम एक पढ़ी-लिखी महिला हो. यह बात एक पुरुष प्रधान समाज हजम नहीं कर पाता और यही कारण है कि आए दिन इस तरह की घटनाएं सुर्खियों में रहती हैं. अब चंपासारी अथवा ऐसी ही अन्य घटनाओं में कौन सही है, कौन गलत है. सवाल यह नहीं है. सवाल यह है कि बहुओं को इंसाफ तो मिलना ही चाहिए!