लोकसभा चुनाव 2024 मई में होगा. इसकी तैयारी भाजपा और सभी दलों की ओर से शुरू कर दी गई है. चुनाव के समय हर दल जनता से कुछ वायदे करते हैं और जीतने के बाद पूरा करने का संकल्प व्यक्त करते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने गोरखालैंड और गोरखा लोगों की 11 जाति गोष्टी को जनजाति का दर्जा देने तथा पहाड़ का स्थाई राजनीतिक समाधान निकालने का संकल्प किया था. लेकिन 4 साल से ज्यादा हो गया. भाजपा ने अपने संकल्प पत्र का वायदा पूरा नहीं किया. इससे पहाड़ के नागरिक, गोरखा और स्थानीय राजनीतिक संगठनो के नेता सब नाराज दिख रहे हैं.
दार्जिलिंग लोक सभा के सांसद हैं राजू बिष्ट. विभिन्न राजनीतिक संगठनों के नेता भाजपा के संकल्प पत्र को याद दिलाते हुए राजू बिष्ट पर दबाव बढ़ा रहे हैं. आरंभ से ही राजू बिष्ट कह रहे हैं कि भाजपा अपना वायदा पूरा करेगी. ऐसा नहीं है कि केंद्रीय स्तर पर भाजपा ने पहाड़ के गोरखा के राजनीतिक समाधान के लिए पहले प्रयास नहीं किया था. लेकिन कोई बात नहीं बन सकी. हाल ही में पहाड़ में पंचायत चुनाव हुए थे. इस चुनाव में भी गोरखालैंड या गोरखा जाति के 11 जाति गोष्टी को जनजाति का दर्जा दिलाने की मांग उठी थी.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पंचायत चुनाव में पहाड़ में भाजपा की हार का सबसे बड़ा यह कारण बना था. विपक्षी राजनीतिक संगठन यह प्रचार करने में कामयाब रहे कि भाजपा पहाड़ के लोगों को धोखा दे रही है. राजू बिष्ट समय रहते इसका तोड़ नहीं निकाल सके. यही कारण है कि पंचायत चुनाव में भाजपा की शर्मनाक हार हुई थी.
वर्तमान में दार्जिलिंग पहाड़ के राजनीतिक समाधान के लिए यहां के सभी क्षेत्रीय राजनैतिक संगठन और दल सक्रिय हो गए हैं. उन्हें लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो एक बार फिर से उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी. कुछ समय पहले राजू बिष्ट और भाजपा के साथ सहयोग करने वाले सहयोगी दलों तथा स्वयं कर्सियांग के भाजपा विधायक बी पी बजगई ने भी राजू बिष्ट का साथ छोड़ दिया और गोरखालैंड के मुद्दे पर पहाड़ के दूसरे दलों के साथ एकजुट दिखाई दे रहे हैं.
धीरे-धीरे गोरखालैंड को लेकर पहाड़ की राजनीति गर्म होती जा रही है.राजू बिष्ट अब भी लोगों को भरोसा दे रहे हैं कि उनकी समस्या का स्थाई राजनीतिक समाधान कोई छीन नहीं सकता. परंतु गोरखा लोगों का धैर्य लगातार कमजोर होता जा रहा है.यही कारण है कि वर्तमान में दार्जिलिंग से लेकर दिल्ली तक गोरखालैंड को लेकर पूरी तैयारी चल रही है. पिछले दिनों दिल्ली के जंतर मतर पर गोरखालैंड एक्टिविस्ट समूह का धरना प्रदर्शन हुआ था. 2 दिनों के इस कार्यक्रम में गोरखालैंड एक्टिविस्ट समूह ने एक तरह से केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है. ग्रुप के संयोजक किशोर प्रधान ने कहा है कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ 8 महीने हैं. इन 8 महीनों में गोरखालैंड अथवा गोरखा लोगों के स्थाई राजनीतिक समाधान निकाले जाने तक ग्रुप का आंदोलन चलता रहेगा.
उधर गोरखा जनमुक्ति नारी मोर्चा भी जंतर मंतर पर तीन दिवसीय धरना देने की तैयारी में जुट गया है. गोर्खा जनमुक्ति नारी मोर्चा की मांग है अलग राज्य गोरखालैंड तथा छूटे गोरखा जाति के 11 जाति गोष्टी को जनजाति का दर्जा दिलाना. नारी मोर्चा 4 अगस्त से लेकर 6 अगस्त तक दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम में शामिल होगा. इस कार्यक्रम में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष विमल गुरुंग भी शामिल होंगे और अपना वक्तव्य रखेंगे.
आज विमल गुरुंग दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गए हैं. उन्होंने गोरखालैंड के मुद्दे पर एक ही बात कही है कि सरकार को उसका वायदा याद दिलाने के लिए धरना कार्यक्रम किया जा रहा है.अब समय आ गया है कि इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई लड़ी जाए. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त के बाद हम सभी इस मुद्दे पर निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे. विमल गुरुंग ने इस बात से इनकार किया है कि वह NDA का एक हिस्सा है. पहाड़ के लगभग सभी राजनीतिक संगठनों की एक ही मांग है गोरखालैंड या स्थाई राजनीतिक समाधान.
पहाड़ में सभी पार्टियां इसी मुद्दे को लेकर राजनीति करती रही हैं. नई पार्टी हाम्रो पार्टी भी गोरखालैंड को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है. इस तरह से सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी संगठन गोरखालैंड के मुद्दे पर एकजुट दिख रहे हैं. हाम्रो पार्टी के संविधान में अलग राज्य का मुद्दा सबसे ऊपर है. आपको बताते चलें कि पहाड़ में अलग राज्य गोरखालैंड की मांग कोई नई नहीं है. लेकिन 1907 से गोरखालैंड की मांग में आंदोलन शुरू हुआ था. इसी तरह से गोरखा के छूटे हुए 11 जाति गोष्ठी को जनजाति का मान्यता देने की बात भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जनसभाओं में की थी, जो आज तक पूरी नहीं हो सकी है. यह मुद्दा भाजपा की चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया गया था.