श्रवण कुमार का नाम उनकी मातृ पितृ भक्ति के कारण जाना जाता है. त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता की इकलौती संतान थे. माता-पिता ने बड़ी कठिनाइयों से श्रवण कुमार को पाला था. इसलिए जब श्रवण कुमार जवान हुए तो वह माता-पिता की सेवा में लग गए.
एक बार श्रवण कुमार के माता-पिता ने तीर्थ यात्रा करने की इच्छा जताई. तब श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता के लिए बांस की दो टोकरियां बनवाई. एक टोकरी में उन्होंने अपनी माता को बैठाया तथा दूसरी टोकरी में अपने पिता को बैठाया और लकड़ी के सहारे टोकरी को अपने कंधे पर उठा लिया. उन्होंने अपने माता-पिता को तीर्थ धाम की यात्रा कराई.
श्रवण कुमार हर दिन जंगल से जाकर लड़कियां काट कर ले आते. खुद खाना पकाते और अपने माता-पिता को अपने हाथों से खाना खिलाते थे. एक बार श्रवण कुमार के माता-पिता को जोरों की प्यास लगी. वह अपने माता-पिता के लिए जलाशय से जल लेने के लिए गए. जब श्रवण कुमार जलाशय से जल भर रहे थे तब उनके बर्तन से ऐसी आवाज निकल रही थी, जैसे कोई जानवर पानी पी रहा हो. ठीक उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ शिकार के लिए जंगल में आए थे.
राजा दशरथ के पास शब्दभेदी बाण चलाने की कला थी. जिसमें वह केवल ध्वनि सुनकर अपने बाण को निशाने पर मार सकते थे. श्रवण कुमार पानी भर रहे थे. उसी समय राजा दशरथ ने बर्तन से निकलने वाली ध्वनि की आवाज सुनी तो उन्होंने सोचा कि वह कोई पशु है. यही सोच कर राजा दशरथ ने उस ध्वनि की तरफ अपना बाण छोड़ दिया. यह बाण श्रवण कुमार के शरीर पर लगा तो उनकी चीख निकल गई. राजा दशरथ को अपने किए पर काफी अफसोस हुआ. उन्होंने श्रवण कुमार से माफी मांगी.लेकिन श्रवण कुमार ने सिर्फ इतना कहा कि मेरे माता-पिता अंधे हैं तथा वह कुटिया में मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे. आप यह जल ले जाइए और उनको पिला दीजिए. यह कहकर श्रवण कुमार ने अपने प्राण त्याग दिए…
आप सोच रहे होंगे कि मैं श्रवण कुमार की कहानी क्यों सुना रहा हूं. यह इसलिए कि सिक्किम में एक और श्रवण कुमार पैदा हुआ है, जो त्रेता युग के श्रवण कुमार को सिक्किम की धरती पर देखना चाहता है. यह श्रवण कुमार कोई और नहीं बल्कि सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग हैं. वर्तमान समय में जब आज के नौजवान लड़के लड़कियां माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं और बुढ़ापे में मां-बाप को उनके हाल पर छोड़ देते हैं. ऐसे माता-पिता का सहारा और सेवक बनने तथा उनके आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा देने के लिए मुख्यमंत्री गोले ने राज्य में श्रवण कुमार अवॉर्ड की स्थापना की है.
सिक्किम में बड़े बुजुर्गों का खोया हुआ सम्मान वापस दिलाने के लिए मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने यह पहल की है. आज के बच्चे बुढ़े माता-पिता की सेवा करना तो दूर उन्हें अपने साथ भी रखना नहीं चाहते. अधिकांश माता-पिता बेटा बहू पर बोझ नहीं बनने के लिए वृद्ध आश्रम की शरण लेते हैं. प्रेम सिंह तमांग ने यह सब देखा है और यही कारण है कि उन्होंने सिक्किम के नौजवानों में मातृभक्ति और पितृ भक्ति जगाने के लिए इस अवार्ड की घोषणा की है. इसके अनुसार सिक्किम के सभी भागों में ग्राम पंचायत और नगर पंचायत स्तर पर ऐसे परिवार के बेटा बेटी जो अपने माता-पिता की सबसे ज्यादा सेवा करते हैं, उन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा.
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने घोषणा की है कि प्रत्येक साल 15 अगस्त को सिक्किम में श्रवण कुमार अवॉर्ड ऐसे सिक्किम के बेटा बेटी को दिया जाएगा जो अपने माता-पिता की सबसे ज्यादा सेवा करेंगे. यानी श्रवण कुमार बनकर दिखाएंगे. प्रेम सिंह तमांग खुद एक आदर्श पिता और पुत्र हैं. इसलिए वह हर उस मां-बाप का दर्द समझते हैं जो वर्तमान में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. उनकी शेष जिंदगी वृद्ध आश्रम में कट रही है.प्रेम सिंह तमांग ने यह घोषणा नामची में वर्ल्ड रेनवल स्पिरिचुअल ट्रस्ट के भूमि पूजन के मौके पर की थी. उन्होंने एक साथ कई घोषणाएं की. इनमें देवऋंग रोड का विकास, ड्रेनेज की साफ सफाई भी शामिल है.
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की घोषणाओं में सबसे बड़ी घोषणा राज्य के ऐसे C और D ग्रेड के कर्मचारियों के लिए की गई है जो अगर बीमार पड़ते हैं या किसी अस्पताल में भर्ती होते हैं या फिर उनके ट्रीटमेंट के लिए दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाता है तो उन्हें 5 लाख की मेडिकल सहायता राज्य सरकार देगी. इसके अलावा मुख्यमंत्री गोले ने राज्य के कर्मचारियों को भरोसा दिया है कि राज्य में पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल किया जाएगा. लेकिन सिक्किम में वर्तमान में सबसे ज्यादा चर्चा श्रवण कुमार अवॉर्ड के संबंध में मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की पहल को लेकर हो रही है.