21वीं सदी में जहां सिलीगुड़ी में विकास और विज्ञान इतना प्रबल हुआ है, बड़ी-बड़ी इमारतें, भव्य मकान,चमचमाती कारें, शॉपिंग मॉल सब कुछ तो है इस सिलीगुड़ी में. लोगों की जीवन शैली में भी परिवर्तन आया है. लेकिन सिलीगुड़ी में सब जगह विकास हुआ है,ऐसा नहीं कह सकते. क्योंकि इसी सिलीगुड़ी शहर में कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां के लोगों का जीवन आज भी पुराने धड़े पर चल रहा है.
कुछ पीछे जाएं तो सिलीगुड़ी शहर में महानंदा नदी को पार करके लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाते थे. चाहे वह खरीदारी करने की बात हो अथवा नौकरी प्रयोजन के हिसाब से या फिर अन्य कार्यों से लोगों को अपने घर से निकलकर नदी पार करना पड़ता था. तब नदी में डोंगी चलती थी. लोग ₹1 या 50 पैसे या कभी-कभी बिना पैसे दिए ही डोंगी पर चढ़कर नदी पार करते थे. खैर, वह जमाना तो खत्म हो गया. अब तो महानंदा नदी पर एक से अधिक पुल बन गये है. आवागमन के साधन पहले से काफी विकसित हुए हैं परंतु इसके साथ एक सच्चाई यह भी है कि सब जगह ऐसा हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता.
सिलीगुड़ी में सिलीगुड़ी नगर निगम के अंतर्गत 44 नंबर, दो नंबर और तीन नंबर वार्ड के बीच रहनेवाले लोगों की जिंदगी अभी भी डोंगी पर निर्भर करती है. महानंदा के तट पर बसे कई कॉलोनी और गांव ऐसे हैं, जहां के लोगों को शहर में जाने के लिए एक मात्र सहारा डोंगी ही है. यहां के लोग घर से निकलने के बाद डोंगी का ही सहारा लेते हैं. चाहे बच्चे हो अथवा बड़े, सभी को डोंगी से ही पार होना पड़ता है. खासकर बरसात के दिनों में जब नदी उमड़ने लगती है. तब नदी में डोंगी अथवा नौका को उतारना पड़ता है. बच्चों को स्कूल जाना हो अथवा यहां के निवासियों को कामकाज के सिलसिले मे नौका से ही नदी पार करके जाना होता है.
दुखद बात तो यह भी है कि सिलीगुड़ी नगर निगम सिलीगुड़ी के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करता है. परंतु वास्तविकता तो यह है कि आज भी कई कई वार्डों में लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. यहां के लोगों ने बताया कि कम से कम निगम की ओर से नदी पार करने के लिए एक नाव भी दे दी जाती तो उनके लिए काफी अच्छा होता. परंतु यहां तो लोगों को खुद इंतजाम करना होता है. एक महिला ने बताया कि गांव के लोगों ने अपने पैसों से ही पहले एक नाव खरीदी थी. लेकिन जब वह खराब हो गई तो यहां के एक परिवार ने अपने पैसों से डोंगी अथवा नाव खरीद कर नदी में उतार दिया. अब इस नाव से यह परिवार लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाता है और आजीविका कमाता है. उन्होंने बताया कि रोजाना 400 से ₹500 की कमाई हो जाती है.
नौका अथवा डोंगी से नदी पार करने में खतरा भी हो सकता है. खासकर उस समय जब नदी में बाढ़ आने लगती है या फिर नदी की जलधारा पूरे शबाब पर रहती है. ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजना अथवा लोगों को काम पर जाने के क्रम में हादसा हो सकता है. लोगों ने बताया कि एक बार में नदी पार करने से ₹5 डोंगी का देना होता है. अगर वापसी जाना है तो फिर ₹5 देकर ही जा सकते हैं. यानी कम से कम ₹10 नदी पार करने के लग जाते हैं.
सिलीगुड़ी नगर निगम के 44 नंबर, दो नंबर और तीन नंबर वार्ड के अनेक लोगों से खबर समय की बातचीत में उनका दर्द छलक कर बाहर आया. हालांकि कुछ बच्चों के लिए नौका अथवा डोंगी से पार जाना एक रोमांचक अनुभूति प्रदान करता है. परंतु इसमें खतरा भी है. इसे वे नहीं जानते. यहां के लोगों का कहना है कि प्रशासन को इन वार्डो के निवासियों के हक में नदी पर एक पुल का निर्माण करना चाहिए. लोगों ने बताया कि पिछले 8 से 10 सालों से यहां के लोग इसी धरे पर अपनी जिंदगी जी रहे हैं. अब तो वे इसके अभ्यस्त भी हो चुके हैं. वे सिलीगुड़ी नगर निगम और प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी शहर की मुख्य धारा में शामिल किया जाए. उनकी जिंदगी में बदलाव हो सके, इसके लिए एक साधारण पुल की आवश्यकता है. अगर सरकार व प्रशासन ने देरी की तो नौका अथवा डोंगी से नदी पार करने के क्रम में किसी दिन कोई बड़ी घटना घट सकती है. तब इसका जिम्मेदार कौन होगा?