December 18, 2024
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अगर भविष्य में आप शादी करना चाहते हैं तो रखें इन बातों का ख्याल! सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सनातनी विवाह परंपराओं की हुई जीत!

हमारी सनातन संस्कृति में लड़का लड़की की शादी को पवित्र बंधन माना गया है. हिंदू संस्कृति में ऐसी किसी शादी का कोई स्थान नहीं है, जहां पवित्र अग्नि के सात फेरे ना लिए जाते हो. ऐसी शादी जिसमें भारतीय सनातनी परंपरा, रीति रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान और बड़े बुजुर्गों की सदियों से चली आ रही परंपराओं, आदर्श, पवित्रता और शुद्धिकरण का पालन नहीं किया जाता हो, उसे शादी नहीं कहा जा सकता.हिंदू विवाह के चिंतक और विचारक भी ऐसी शादी को मान्यता नहीं देते. परंतु पाश्चात्य संस्कृति में पले बढे कई लोग बड़े बुजुर्गों की स्थापित परंपरा, मूल्यों और रीति-रिवाज को ज्यादा तवज्जो नहीं देते.

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया है कि बड़े बुजुर्ग बुजुर्गों की कही बातों का आदर और सम्मान करने का वक्त आ गया है. उन्होंने जो परंपरा और मान्यता स्थापित की है, वही सही है और बाकी गलत है.

सनातनी समाज में आज भी अधिकांश लोग शादी विवाह के मामले में सदियों पुरानी परंपरा, रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते हैं. कई हिंदू विधियों और संस्कारों के बीच लड़के और लड़कियों की शादी संपन्न होती है. पुराने जमाने में भारतीय हिंदू विचारकों और संतों ने विवाह को एक पवित्र बंधन मानते हुए लड़का और लड़की के सुखद जीवन और उनके भविष्य को मजबूती प्रदान करने के लिए संस्कारों की अहमियत पर जोर दिया था. ऐसी मान्यता है कि ऐसे संस्कारों और रीति रिवाज के बीच संपन्न होने वाली शादी का बंधन काफी मजबूत होता है और पति-पत्नी के बीच संबंधों को प्रगाढ बनाता है.

यूं तो हमारे संविधान और कानून में हिंदू विवाह के मामले में धार्मिक रीति रिवाज, परंपरा और संस्कृति को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया गया है. भारतीय हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के अनुसार कोर्ट मैरिज अथवा विवाह के लिए पंजीकरण को एक सबूत माना गया है. यह इस बात का सबूत है कि दो जोड़े पति-पत्नी बन गए. परंतु यह केवल प्रमाण दिखाने के लिए ही होता है. इसका यह मतलब नहीं है कि उनके बीच शादी संपन्न हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह को इसी नजरिये से देखने वालों के विश्वास को मजबूत किया है. आमतौर पर एक हिंदू व्यक्ति शादी का रजिस्ट्रेशन सिर्फ कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए ही करता है. अन्यथा एक गरीब से गरीब व्यक्ति भी पारंपरिक रीति रिवाज, वैदिक मंत्र और संस्कारों के बीच शादी करता है.

आज जब हमारे देश में पश्चिमी सभ्यता में पला बढा युवा वर्ग पारंपरिक तरीके से संपन्न शादी विवाह को महत्व नहीं देता है और वैधानिक शादी जैसे विवाह रजिस्ट्रेशन, कोर्ट मैरिज को ही शादी मानता है. सुप्रीम कोर्ट का विचार और जजमेंट ऐसे युवाओं की आंख खोल देने के लिए पर्याप्त है. कहीं ना कहीं सुप्रीम कोर्ट का विचार है कि हम सभी सनातनी लोगों को, बड़े बुजुर्गों की स्थापित परंपरा, मान्यता, रीति रिवाज, संस्कार और आदर्शों को अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में महान मूल्यों की संस्था के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए.

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 किसी हिंदू लड़का या लड़की की शादी के लिए समारोह की आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करता है.यानी लड़का या लड़की की शादी के लिए रस्म रिवाज, संस्कार, धार्मिक कर्मकांड, रीति रिवाज, मान्यताएं और सभी सनातनी विधियों का पालन किया जाना चाहिए. ऐसे विवाह को ही हिंदू विवाह कहा जा सकता है. दूसरी तरफ हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 के अनुसार लड़का या लड़की की शादी का पंजीकरण केवल एक प्रमाण है. लेकिन यह शादी की वैधता प्रदान नहीं करता है. यह केवल विवाह का प्रमाण है. इसके अलावा कुछ नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कन्या पक्ष और वर पक्ष दोनों को ही अपने बच्चों की शादी के लिए सभी पारंपरिक समारोह और रीति-रिवाज का पालन किया जाना चाहिए. तभी हिंदू विवाह की अधिनियम 7 के अनुसार ऐसी शादी को मान्यता दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर जरूरी समारोह नहीं हुए तो हिंदू विवाह को अमान्य घोषित किया जाएगा. रजिस्ट्रेशन से भी इसे वैध नहीं ठहराया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की कानूनी आवश्यकताओं तथा हिंदू विवाह की पवित्रता को एक बार फिर से प्रमाणित किया है.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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