डॉन फिल्म का एक फिल्मी डायलॉग है, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है. अगर इस फिल्मी डायलॉग को बंगाल की राजनीति में इस्तेमाल किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि बंगाल में दीदी को हराना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है. कम से कम इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने इस फिल्मी डायलॉग को जमीन पर उतारा है. क्योंकि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह सबसे बड़ा कठिन समय था. ऐसे समय में भी टीएमसी ने 2019 के मुकाबले 7 अधिक सीटों से जीत दर्ज की है. इसके साथ ही उनका वोट प्रतिशत भी बढा है.
लोकसभा चुनाव में बंगाल में दीदी के पक्ष में सब कुछ नकारात्मक ही था. संदेशखाली का मुद्दा, शिक्षक भर्ती घोटाला, सीबीआई, ईडी के छापे इत्यादि को जिस तरह से भाजपा ने जोर-जोर से उठाया था, तब ऐसा लग रहा था कि इस बार दीदी को बंगाल की जनता हरा देगी. हवा का रुख भांपते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल में 20 से ज्यादा रैलियां की थी. एग्जिट पोल के नतीजे भी इसी दिशा में ले जा रहे थे कि बंगाल दीदी के हाथ से निकला. परंतु दीदी को बंगाल की जनता खासकर महिलाओं पर पूरा भरोसा था. हर बार की तरह बंगाल की महिलाओं ने दीदी का कठिन समय में भी साथ दिया है.
2024 का लोकसभा का चुनाव पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए एक सबक है. भाजपा ममता को हराने चली थी, लेकिन खुद हार गई. भाजपा को 2019 में जीती हुई अपनी 6 सीटें भी गंवानी पड़ी है. केंद्रीय मंत्री निशित प्रमाणिक, केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार, प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता दिलीप घोष आदि बड़े-बड़े नेता चारों खाने चित हो गए. हारने के बाद वे सभी प्रदेश भाजपा नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं. बंगाल भाजपा में असंतोष भी बढा है.
दूसरी तरफ टीएमसी ने गंगा के क्षेत्र में 16 लोकसभा सीटों में से 14 सीटों पर जीत हासिल की. उत्तर और दक्षिण 24 परगना, कोलकाता, हावड़ा और हुगली जिले भी इसी के अंतर्गत आते हैं. इस क्षेत्र में भाजपा की सीटें 3 से घटकर 2 रह गई है. जिस डायमंड हार्बर में भाजपा ने अभिषेक बनर्जी को हराने के लिए अपने तरकश के सारे तीर छोड़ रखे थे, वहां अभिषेक बनर्जी ने बंगाल के चुनावी इतिहास में अब तक के सबसे अधिक मतों से जीत हासिल की. उन्होंने 7 लाख 10000 वोटो के रिकॉर्ड अंतर से भाजपा उम्मीदवार को हराया है .
भाजपा को सबसे ज्यादा भरोसा जिस सीट पर थी, तो वह थी बशीरहाट सीट. यहां संदेशखाली भी आता है. यहां से भाजपा ने रेखा पात्रा को टिकट दिया था. लेकिन हाजी नुरुल इस्लाम ने लगभग 2 लाख मतों के अंतर से रेखा पात्रा को हरा दिया. नुरुल इस्लाम टीएमसी के उम्मीदवार थे. इस चुनाव में कहा जा रहा था कि आदिवासी भाजपा के साथ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भाजपा और तृणमूल ने जंगल महल में चार-चार सीटों पर जीत हासिल की है यानी आदिवासी समुदाय बट गया है और आधा भाजपा की ओर तथा आधा टीएमसी की ओर चला गया है.
भाजपा को सबसे जबरदस्त झटका केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार और निशित प्रमाणिक की हार से लगा है. केंद्रीय मंत्री निशित प्रमाणिक कूचबिहार में टीएमसी के जगदीश चंद्र वर्मा वसुनिया से 39000 से अधिक मतों से हार गए. केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार बांकुड़ा सीट पर तृणमूल के अरूप चक्रवर्ती से 32000 से अधिक वोटो के अंतर से हार गए. बालूरघाट सीट पर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने बड़ी मुश्किल से जीत हासिल की है. उन्होंने मात्र 10386 मतों से टीएमसी के उम्मीदवार को हराया है. जबकि पिछले चुनाव में वह 33000 से अधिक मतों के अंतर से जीते थे.
आखिर क्या कारण है कि हर सीट पर तृणमूल कांग्रेस का वोट बढा है. जबकि भाजपा का वोट प्रतिशत 2019 के मुकाबले घटा है. इस बार के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को प्राप्त मत प्रतिशत 45.77 रहा, जो कि 2019 में तृणमूल को प्राप्त 43.7% से 2% से अधिक है.
टीएमसी ने राज्य में 29 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की है. 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को मात्र 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस बार टीएमसी को 7 सीटों पर फायदा मिला है. अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में टीएमसी का वोट 4.64 प्रतिशत बढ़ा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीती थी और उसके वोट प्रतिशत में 22.02% की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी. इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में 2% से अधिक की गिरावट आई है. इस बार भाजपा को बंगाल में 38.73% वोट मिले हैं. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 40.6% वोट हासिल हुए थे.
ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भाजपा को चुनावी लाभ लेने के लिए बंगाल में हालात अनुकूल थे. जबकि टीएमसी के लिए हालात प्रतिकूल थे. इन सभी के बावजूद टीएमसी ने 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले सीट और वोट प्रतिशत में बेहतर सफलता हासिल की है. जबकि भाजपा ने 2019 के मुकाबले अपनी जीती हुई 6 सीटें भी गंवा दी. इसके साथ ही वोट प्रतिशत में भी गिरावट आई. तो क्या यह समझा जाए कि बंगाल को दीदी पसंद है. दीदी के अलावा बंगाल किसी और को नहीं चाहता. यह टीएमसी के चुनाव प्रचार का एक हिस्सा भी था.
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