November 21, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

मिलनमोड़, देवीडांगा, माटीगाड़ा, डागापुर, सालबाड़ी, खपरैल के बिल्डर्स और भू माफियाओं की मौज ही मौज!

बहुत जल्द सिलीगुड़ी के आसपास के क्षेत्र में भू माफिया और बिल्डर्स की चहल-पहल बढ़ने वाली है. जब से केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय ने महानंदा वन्य अभयारण्य क्षेत्र के दायरे को घटाया है, तभी से ही सिलीगुड़ी और आसपास के बिल्डर्स और भू माफियाओं में खुशी देखी जा रही है. जिन इलाकों में निर्माण कार्य नहीं चल रहा था, अब वहां बड़े-बड़े निर्माण होंगे. माटीगाड़ा, सालबाड़ी, खपरैल, राजगंज, फुलबाड़ी, देवीडांगा, मिलन मोड़ इलाकों में बड़े-बड़े आवासीय फ्लैट बनेंगे. यहां बिल्डरों का दबदबा होगा. यहां जमीनों की कीमत आसमान छूने वाली है.

अगर आप इन इलाकों में जमीन खरीदना चाहते हैं तो देर ना करें. सिलीगुड़ी से सटे शहरी इलाकों में बसावट तेज होने वाली है. आज जमीन की यहां जो कीमत है, अगर 2 महीने में राज्य सरकार की ओर से कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाती है अथवा वन विभाग की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता है तो आज यहां जमीन की जो कीमत है, आने वाले कुछ महीनो में लगभग दुगुनी तिगुनी बढ़ जाने वाली है. इसमें कोई संदेह नहीं है. अब तक यह क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन के अंतर्गत आता था, जहां किसी तरह का निर्माण कार्य पर प्रतिबंध था.

2020 में महानंदा वन्य जीव अभ्यारण्य का क्षेत्र 5 किलोमीटर निर्धारित किया गया था अर्थात सिलीगुड़ी शहर से सटे 5 किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह का बिल्डिंग निर्माण अथवा अन्य निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता था. केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु मंत्रालय की अधिसूचना के बाद इन क्षेत्रों में चल रहे निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई थी. कई लोगों का पैसा भी फंस गया था. बिल्डर भी अपना कार्य रोक कर अन्य क्षेत्रो में चले गए थे. परिणाम स्वरूप यहां जमीन की कीमत आधी से भी कम होकर रह गई थी. कई लोगों ने तो सस्ते में ही अपनी जमीन बेच दी थी. आज एक बार फिर से हवा का रुख पलटा है. यहां की जमीन के दिन फिर गए हैं.

केंद्र सरकार ने जो प्रारूप अधिसूचना जारी किया है, उसके अनुसार महानंदा जीव अभ्यारण्य से सटे शहरी इलाकों में इको सेंसेटिव जोन का दायरा 5 किलोमीटर से घटाकर 1 किलोमीटर कर दिया गया है. वही जंगल की और इसका विस्तार क्षेत्र 18.16 किलोमीटर तक बढ़ाया है. केंद्रीय पर्यावरण जलवायु एवं वन मंत्रालय ने आपत्ति दर्ज करने के लिए दो महीने का समय दिया है. उसके बाद अंतिम निर्णायक अधिसूचना जारी कर दी जाएगी. सरकार के इस फैसले के बाद बिल्डर्स और भवन निर्माता काफी खुश हैं. यहां भू माफिया सक्रिय हो रहे हैं और मोटी उगाही के लिए तैयार हैं.

लेकिन इसका दूसरा पक्ष काफी दुखदायक है. एक तो पहले ही सिलीगुड़ी और आसपास के इलाके प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण की घटती दर से दो चार हो रहे हैं और जिसके फल स्वरुप जीवन और व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रों पर असर पड़ रहा है. ऐसे में इको सेंसेटिव जोन के इलाकों में भवन और अन्य निर्माण कार्यों के करने से पर्यावरण पर भारी असर पड़ेगा. केवल इतना ही नहीं प्रदूषण की दर में भी वृद्धि होगी. लोगों को शुद्ध वायु नहीं मिलेगी. जिससे प्राण वायु घटेगी.

कहने का मतलब यह है कि एक तरफ तो सिलीगुड़ी का काफी भौतिक विकास होगा, लेकिन दूसरी तरफ पर्यावरण और वन संरक्षण के स्तर पर विनाश भी होगा. ऐसे में सरकार, पर्यावरण संगठनों और बुद्धिजीवियों को अधिसूचना का व्यापक अध्ययन करके इसकी लाभ और हानि का आकलन करते हुए उचित आपत्ति दर्ज करने के लिए तैयार रहना चाहिए.क्योंकि जिंदगी की कीमत पर विकास अच्छा नहीं होता. विकास ऐसा होना चाहिए जहां जीवन के मूल्य बढ़े. बहरहाल यह देखना होगा कि स्वैच्छिक संगठन, समाजसेवी संगठन, पर्यावरण प्रेमी, बंगाल सरकार ,बुद्धिजीवी वर्ग केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय की अधिसूचना का किस तरह से अध्ययन करता है और इस पर किस तरह अपनी आपत्ति दर्ज कराता है.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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