एक देश एक चुनाव को लेकर संसद में बिल पेश हो गया है. विपक्षी पार्टियों ने बिल का विरोध किया है.सवाल है कि विपक्ष के विरोध के बावजूद क्या यह बिल सदन में पारित हो जाएगा ? इसका उत्तर है सरकार की मौजूदा संख्या को देखते हुए असंभव. खैर,बिल को पास कराने से पहले उसे कई प्रक्रियाओं से गुजरना होगा. सबसे पहले बिल को जेपीसी के पास भेजा जाएगा. सभी पार्टियों की राय और सहमति बनाने के लिए ही यह प्रक्रिया अपनाई जाएगी. जेपीसी की रिपोर्ट के आधार पर बिल को सदन में पेश किया जाएगा. अगर संसद के दोनों सदनों में यह बिल पास हो जाता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बिल कानून बन जाएगा. हालांकि इन सभी प्रक्रियाओं में अभी काफी विलंब है.
आज लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल को सदन के पटल पर रखा. इसके पक्ष में 269 वोट पड़े. जबकि विपक्ष में 198 वोट पड़े हैं. इस तरह से लोकसभा में बहुमत के आधार पर वन नेशन वन इलेक्शन बिल को जेपीसी के पास विचार के लिए भेज दिया गया है. तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने इस बिल को लोकतंत्र का गला घोटने वाला बताया है. तृणमूल कांग्रेस की ओर से अभिषेक बनर्जी और कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने बिल का विरोध किया.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी जेपीसी ने भारत की 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. उनमें से 32 ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया था जबकि 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया था. दूसरी तरफ 15 ऐसे राजनीतिक दल थे, जिन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया. कमेटी ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी थी. समिति की रिपोर्ट 18000 पन्नों से भी ज्यादा में है. समिति की रिपोर्ट और सिफारिश के अनुसार लोकसभा और विधानसभा चुनाव के साथ-साथ नगर पालिकाओं और पंचायत चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. इसके लिए दो चरण होंगे.
पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवाए जाएं, जबकि समिति की दूसरी सिफारिश थी नगर पालिकाओं और पंचायत के चुनाव एक साथ करवाए जाए. उनके चुनाव लोकसभा विधानसभा चुनाव खत्म होने के 100 दिन के भीतर कराया जाना चाहिए. समिति ने सुझाव दिया था कि संविधान में अनुच्छेद 82 A जोड़ा जाए. अगर इसे लागू किया जाता है तो सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा. अगर यह 2029 से पहले लागू हो जाता है तो सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक होगा. ऐसे में अगर किसी विधानसभा का कार्यकाल 2027 में समाप्त होता है तब भी उसका कार्यकाल जून 2029 तक ही होगा.
सवाल है कि यह बिल लोकसभा में क्यों नहीं पास होगा?विपक्षी दल बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं? सरकार यह बिल क्यों लाना चाहती है? दरअसल सरकार वन नेशन वन इलेक्शन के जरिए चुनाव खर्च में कटौती करना चाहती है. जबकि विपक्ष सरकार की नियत पर सवाल उठा रहा है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह एक असंवैधानिक है. इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा. सरकार ने बिल को जेपीसी के पास तो भेज दिया है, परंतु उसे पास कराना आसान नहीं होगा. बिल को पास कराने के लिए संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए. संसद में एनडीए के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है. लोकसभा में 543 सांसद हैं जो वोटिंग में शामिल होंगे. बिल पास कराने के लिए 362 वोट चाहिए जबकि राज्यसभा में 164 वोट की जरूरत होगी.
लोकसभा में एनडीए के पास 292 सांसद हैं. राज्यसभा में 112 सांसद हैं. छह मनोनीत सांसद हैं जो एनडीए के साथ हैं. इस बिल का विरोध करने वाली पार्टियों के पास लोकसभा में 205 और राज्यसभा में 85 सांसद हैं. कुल मिलाकर इस बिल को पास करने के लिए विपक्ष के समर्थन की जरूरत होगी. इस बिल का विरोध करने वाली पार्टियों में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी ,तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीएम, बसपा और अन्य छोटे-छोटे दल है. झारखंड मुक्ति मोर्चा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समेत 15 राजनीतिक दलों ने अभी इसका कोई जवाब नहीं दिया है.
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