May 1, 2025
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धर्म पर भारी पड़ी जाति! अब राजनेता पूछेंगे, ए भाई, तुम किस जाति के हो’!

आने वाले समय में अगर आपको किसी राजनेता अथवा प्रथम जनप्रतिनिधि से कुछ काम कराने की आवश्यकता पड़ी, तो आपका प्रतिनिधि कुछ और पूछे या ना पूछे, आपसे यह सवाल जरूर करेगा कि आप किस जाति के हैं? अब सरकार आपका धर्म और बुद्धिमत्ता नहीं, बल्कि आपकी जाति देखेगी और इसी के आधार पर भविष्य में आपको सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकता है

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सरकार ने वह फैसला लिया है, जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी. कांग्रेस समेत जिन छोटे दलों के द्वारा काफी समय से जातिगत जनगणना की मांग की जा रही थी और भाजपा के द्वारा उनकी मांग पर यह जवाब दिया जा रहा था कि जातिगत जनगणना समाज को बांटने और भारत को कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं है… जो भाजपा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू के सिद्धांतों की बात कर रही थी… जो भाजपा कांग्रेस शासित प्रधानमंत्री और बड़ी हस्तियों की बात करती रही थी और इस मुद्दे पर राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हुए उन्हें आईना दिखाती रही थी… उसी भाजपा ने अचानक पूरे देश को जाति में बांट देने का फैसला लिया है, जिससे सभी को हैरानी हो रही है.

वह भी उस समय जब पहलगाम हमला हुआ है और जिस हमले ने पूरे देश को झकझोर डाला है. देश में पाकिस्तान को सबक सिखाने का वातावरण है. भारतीय सेना सरहदों पर पाकिस्तानी फौजियों तथा आतंकवादियों को धूल चटा रही है, ऐसे वातावरण में देश मोदी सरकार से यही उम्मीद कर रहा था कि पाकिस्तान पर कुछ बड़ा फैसला आएगा. लेकिन अचानक ही राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने इस मुद्दे से हटकर जातिगत जनगणना करने का फैसला कर लिया. ऐसा करने वाली मोदी सरकार आजादी के बाद पहली सरकार है, जिसने इतना बड़ा फैसला किया है.

आजादी के बाद पहली बार देश में जातिगत जनगणना की जाएगी. इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे देश में आरंभ से ही जाति प्रथा प्रबल रही है. प्राचीन काल में चार जातियां थी. ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र. धीरे-धीरे जातियों की उपजातियां होती चली गई. राजनीतिक दलों ने कुछ हद तक इनका लाभ भी उठाया. हालांकि बीच के कुछ समय में जाति गौण और इंसानियत प्रथम रही थी. राष्ट्रवादी पार्टियों ने भी राष्ट्रीयता को ऊपर रखा और जाति को पीछे. लेकिन राजनीति में नीति और नीयत कब बदल जाए, यह किसी को पता नहीं होता. राजनेता हवा की रूख भांप लेते हैं और सिद्धांतों से समझौता करने से कोई गुरेज नहीं करते हैं.

भाजपा कोई भी तर्क दे, फिलहाल तो लोग यही कह रहे हैं कि सर्वप्रथम संसद में राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना करने की मांग की थी. उसके बाद विपक्ष के कई दलों ने जातिगत जनगणना के पक्ष में अपने-अपने तर्क दिए थे. मोदी सरकार ने काफी मंथन के बाद यह फैसला लिया है. निश्चित रूप से भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह फैसला राजनीतिक नफा और नुकसान को देखते हुए लिया है. पर ऐसे फैसलों के लिए यह उचित समय नहीं था. क्योंकि देश फिलहाल पाकिस्तान को सबक सिखाने और आतंकवाद के खात्मे की खबर सुनने के लिए बेकरार है.

भारतीय जनता पार्टी और एन डी ए की सरकार इसे अपनी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बता रही है. जबकि कांग्रेस समेत राजद और दूसरे दलों के द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि उनके दबाव में झुक कर सरकार ने यह कदम उठाया है. इसलिए वे लोग खुशियां मना रहे हैं. जबकि सच्चाई यह है कि मोदी सरकार किसी के आगे ना झुकी है और ना झुकने की नियत रखती है. मोदी सरकार का यह फैसला आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए उठाया गया है. सरकार को लगता है कि जातिगत जनगणना के फैसले से चुनाव में पार्टी को काफी लाभ होगा और विभिन्न जातियों को खुश करने में सफलता मिलेगी.

लेकिन दूसरी ओर जातिगत जनगणना के साइड इफेक्ट भी सामने आएंगे. आलोचकों को लगता है कि इससे देश जातियों मे बट कर रह जाएगा. सरकार की योजनाएं जातियों को देखकर बनाई जाएंगी. और उसका लाभ सभी लोगों को नहीं मिलेगा. आलोचकों के अनुसार सवर्ण जातियां ऐसे फैसले से ठगा महसूस कर रही है. जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण का मुद्दा भी प्रबल होगा और यह 50% से भी ज्यादा मांग की आवाज के साथ उठेगा.

कुछ संवैधानिक और सामाजिक कठिनाइयां भी सामने आएंगी. राष्ट्रीय एकता और सामाजिक एकता भी कमजोर होगी. इन सभी संभावनाओं को देखते हुए आलोचक और राजनीतिक विश्लेषक सहमे हुए जरूर हैं. पर राजनीति के हिसाब से देखें तो मोदी सरकार को भविष्य में एक बड़ा राजनीतिक लाभ मिल सकता है. अब यह देखना होगा कि मोदी सरकार के इस फैसले से सरकार को कितना लाभ होता है.

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