सेवक के कोरोनेशन ब्रिज के महत्व के बारे में ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं है. एक मात्र यही पुल है जो सिलीगुड़ी, पहाड़ और डुआर्स को आपस में जोड़ता है. यह वही पुल है जिससे होकर सेना का रसद और आयुध चीन बॉर्डर पर जाता है. इसी पुल से होकर पूर्वोत्तर राज्यों में आवागमन भी होता है. इसलिए पुल के महत्व के बारे में बताने की ज्यादा जरूरत नहीं है. लेकिन पुल की जिस तरह की संरचना है, वह अपनी जान खत्म करने वाले लोगों के लिए आसान स्थल बन गया है और इसीलिए सेवक के लोग इसे मौत का पुल मानते हैं.
अब तक कई दुखद घटनाएं इस सेतु पर हो चुकी हैं. हर साल कोई ना कोई त्रासदी इस सेतु से जुड़ी होती है. किसी न किसी दुख, विपदा, पारिवारिक कलह और डिप्रेशन के शिकार लोग कोरोनेशन ब्रिज पर आ जाते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं. पुल से नीचे बहती तीस्ता नदी ऊपर से भले ही शांत दिखती है, परंतु यह है काफी खतरनाक. नदी में अंडर करंट की वजह से पानी की धारा बहुत तेज बहती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति नदी के पानी की गहराई में चला जाता है तो नदी की जलधारा उसे बहुत दूर तक बहा ले जाती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि कई बार तो मृतक की लाश को ढूंढना भी मुश्किल हो जाता है.
तीस्ता नदी बांग्लादेश तक बहती है. इसलिए कई बार लाश बहती हुई बांग्लादेश तक चली जाती है. इसलिए यह भी कहा जाता है कि मृतक का दाह संस्कार भी नहीं हो पाता है. जब कोरोनेशन ब्रिज का निर्माण हो रहा था, तब यह काफी सुंदर था. 1941 में इस पुल का निर्माण हुआ था. यह पुल अपनी अनोखी वास्तुकला और तीस्ता नदी के साथ विहंगम दृश्य के लिए भी जाना जाता है. यहां पर्यटक फोटो भी खिचाते हैं. वाकई अद्भुत मंजर यहां खड़ा होता है. लेकिन इसी आकर्षण में घटनाएं भी घटती है और इसका पता तभी चलता है, जब घटना घट चुकी होती है.
सिलीगुड़ी निवासी तापस साहा ने इसी पुल से कूद कर अपनी जान दे दी थी. तापस साहा की 6 महीने पहले ही शादी हुई थी. वह सुबह में काम पर जाने के लिए घर से निकला और सीधे सेवक पुल पहुंच गया. अपनी जान देने से पहले व्यक्ति ने अपनी पत्नी को फोन कर बता दिया था. लेकिन जब तक इस घटना को रोका जाता, तब तक काफी देर हो चुकी थी. युवक इस दुनिया में नहीं था. सूत्र बताते हैं कि पिछले 10 वर्षों में कोरोनेशन ब्रिज से कूद कर अपनी जान देने वालों की तादाद में भारी वृद्धि हुई है. इससे सेवक के लोगों की चिंता बढ़ गई है.
यहां के लोग बताते हैं कि हर साल इस तरह की त्रासदी सामने आती है. लेकिन फिर भी प्रशासन की ओर से कोई मजबूत कदम नहीं उठाया जाता. प्रशासन की ओर से ज्यादा से ज्यादा सीसीटीवी कैमरा, रात के समय पुलिस गश्त, जागरूकता अभियान इत्यादि चलाए जाते हैं. इसके अलावा कुछ नहीं होता है. यहां अपनी जान देने वालों को रोकने के लिए प्रशासन की ओर से जो मजबूत उपाय किए जाने चाहिए, वे होते नहीं है. जैसे अगर पुल की संरचना पर विचार करें तो पता चलता है कि सेवक पुल पर ऊंची रेलिंग की व्यवस्था नहीं है. इसके अलावा दोनों और ऊंचे जाल भी नहीं लगाए गए हैं. ऐसे में कोई दुखी इंसान यहां आता है तो उसके द्वारा पुल से कूद कर जान देना काफी आसान हो जाता है.
स्थानीय निवासी आजकल सेवक पुल को मौत के पुल से जोड़कर देख रहे हैं. लोग पुल से गुजरते हुए काफी डर जाते हैं. कुछ लोग तो इसे भुतहा पुल भी कह रहे हैं. अगर प्रशासन हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहा तो इस तरह की घटनाओं को रोकना काफी मुश्किल होगा. प्रशासन को चाहिए कि सेवक पुल की रेलिंग को काफी ऊंचा बनाया जाए. इसके अलावा यहां ऊंचे जाल लगाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए. यह करने से एक तो दुखद घटनाओं में कमी आएगी और दूसरे में वाहनों के साथ भी हादसे भी कम होंगे. बहर हाल देखना होगा कि स्थानीय प्रशासन भविष्य में ऐसी दुखद घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस तरीका अपनाता है ?
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