भारत-पाकिस्तान सीज फायर से संबंधित संवादों का आदान-प्रदान देश में चल ही रहा है कि इसी बीच श्रमिक संगठन ए आई यू टी यू सी के द्वारा 20 मई को पूरे भारत में आम हड़ताल का आह्वान कर दिया गया है. सिलीगुड़ी और आसपास के इलाकों में भारत बंद के समर्थन में श्रमिकों की रैलियां निकाली जा रही है. पूरे भारत में 10 ट्रेड यूनियनों और फेडरेशन के द्वारा यह बंद बुलाया जा रहा है.
20 मई भारत बंद को सफल बनाने के लिए अभी से ही विभिन्न ट्रेड यूनियनों और फेडरेशन के द्वारा तैयारी शुरू कर दी गई है. इस हड़ताल को सफल बनाने के तरीके पर विस्तार से चर्चा की जा रही है.ए आई यू टी यू सी के जिला सचिव मृणाल कांति राय, गोपाल खेस ,सीटू के शंकर दास, जयंत चिक बडाइक, यूटीयूसी के गोपाल प्रधान, सुभाष लोहार आदि कई मजदूर नेता राज्य और केंद्र सरकारों की मजदूर विरोधी नीतियों की खुलकर आलोचना कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल आशा कर्मी यूनियन की दार्जिलिंग जिला शाखा और एआईयूटीसी के सदस्यों ने इस हड़ताल के समर्थन में एक रैली निकाली है. यह रैली खोडीबाडी बीडीओ कार्यालय से खोडीबाडी बाजार होते हुए हाई स्कूल तक गई. आरोप लगाया गया कि आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भत्ते के बदले काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. उनकी शिकायत है कि सरकार 12 महीने काम कराती है. लेकिन उन्हें 10 महीने का ही मेहनताना मिलता है. इसके विरोध में वे लोग हड़ताल पर जा रहे हैं.
ए आई यू टी यू सी के दार्जिलिंग शाखा के सचिव जय लोध कहते हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार मजदूरों के हित में कोई काम नहीं कर रही है. चार मजदूर विरोधी श्रम कार्ड को खत्म करना होगा. इसके अलावा मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाना जरूरी है. उनकी और भी बहुत सी मांगे हैं. उनके समर्थन में जनता में जागरूकता फैलाई जा रही है. मुख्य रूप से जो मांगे है, उनमें श्रम कोडों को खत्म करना, मूल्य वृद्धि को रोकना, बेरोजगारों के लिए स्थाई रोजगार, चाय बागानों और सभी बंद कारखाने को फिर से खोलना, संगठित और असंगठित श्रमिकों के लिए जीविका मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि मांगे शामिल है.
उधर मदारीहाट वीरपारा ब्लॉक के बीरपारा आरएसपी पार्टी कार्यालय में भी हड़ताल के समर्थन में एक बैठक की गई. इस बैठक में 100 से भी ज्यादा मजदूर प्रतिनिधियों ने भाग लिया. हालांकि जिस तरह देश के हालात हैं, ऐसे में ट्रेड यूनियन कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते हैं. वे शांति से केंद्र और राज्य के समक्ष अपनी बात रखना चाहते हैं. इसलिए वे आक्रामक ढंग से अपनी बात सरकार तक पहुंचाना नहीं चाहते. लेकिन वे एक संदेश देना चाहते हैं कि मजदूरों की स्थिति शोचनीय है और उन्हें सुधारना होगा.
हालांकि भारत बंद का जो टाइमिंग है, उसे उचित नहीं कहा जा सकता है. ट्रेड यूनियन और फेडरेशनों को भी इस पर विचार करना होगा और सरकार को कुछ वक्त देने की जरूरत है. फिर भी यह लोकतांत्रिक देश है और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मजदूर यूनियन और फेडरेशन स्वतंत्र हैं. वह अपनी बात मनवाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपना प्रदर्शन कर सकते हैं. भारत बंद का विकल्प तो अंतिम हथियार होना चाहिए.
जैसे-जैसे समय करीब आता जाएगा, निश्चित रूप से ट्रेड यूनियन और फेडरेशन के द्वारा रैलिया और जुलूस भी निकाले जा सकते हैं. पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा स्थिति अनुकूल नहीं है. उन्हें सही वक्त का इंतजार करना चाहिए. वर्तमान में सरकार भारत-पाकिस्तान सीज फायर की समीक्षा और नुकसान का जायजा ले रही है.