मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिजनेस सम्मेलन में छोटे लघु और मध्यम व्यवसाईयों की बात करते हुए पर्यटन को मुख्य आधार बताया है. उन्होंने सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग और कालिमपोंग क्षेत्रों के पर्यटन विकास की संभावनाओं पर बल देते हुए पर्यटन के क्षेत्र में कुछ नया करने पर जोर दिया है. पहाड़ की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही आश्रित है. पहाड़ में अनेक छोटे बड़े व्यवसायी हैं, जिनकी जीविका का मुख्य आधार पर्यटन ही है. ऐसे में पर्यटन को विकसित करने और उसमें सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने न्यू दार्जिलिंग और न्यू कालिमपोंग का विकल्प दिया है. इसी तरह से न्यू मिरिक का भी विकल्प है. उन्होंने इसके लिए स्थान भी बताया है. ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री खुद से कुछ ना करके सब कुछ जीटीए और दार्जिलिंग प्रशासन पर छोड़ देना चाहती हैं. देखा जाए तो वक्त के हिसाब से पहाड़ में न्यू दार्जिलिंग, न्यू कालिमपोंग और न्यू मिरिक होना ही चाहिए. मुख्यमंत्री ने कई सुझाव भी दिए हैं. पर यह कितना व्यावहारिक होगा, यह बताना मुश्किल है. मुख्यमंत्री पहाड़ से अपने लगाव की बात तो करती हैं, परंतु नए दार्जिलिंग को लेकर कुछ उलझने जरूर दिखाई देती हैं.
दार्जिलिंग, कालिमपोंग, मिरिक और कर्सियांग पहाड़ी इलाकों में यातायात की गंभीर समस्या है. खासकर दार्जिलिंग में अक्सर जाम की शिकायत रहती है. यह बात मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जानती हैं. इसके अलावा शहर को प्राचीन तरीके से ही बसाया गया है, जो वर्तमान समय के अनुसार आबादी और व्यवसाय को अनुकूलित नहीं कर सकता है. इसीलिए ममता बनर्जी चाहती है कि एक नया दार्जिलिंग का निर्माण हो, जहां पर्यटन, व्यवसाय और लोगों को काम मिल सके. इसके साथ ही एक नए शहर का आभास हो सके.
हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नए दार्जिलिंग की बात तो जरूर की है, परंतु उन्होंने इसका कोई सर्वमान्य फार्मूला नहीं सुझाया है कि आखिर नए दार्जिलिंग का सपना कैसे साकार होगा! उन्होंने जीटीए और दार्जिलिंग के लोगों पर ही सब कुछ छोड़ दिया है. उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार पहाड़ को सहयोग दे सकती है, परंतु उसका ब्लूप्रिंट क्या हो, यह पहाड़ के लोग ही तय करेंगे. नए दार्जिलिंग का सपना तो अच्छा लगता है. परंतु यह कार्य उतना ही ज्यादा कठिन भी है.
अगर दार्जिलिंग शहर की भौगोलिक संरचना की बात करें तो यहां मकान और व्यवसाय स्थल तत्कालिन समाज की आवश्यकता के अनुरूप तैयार किए गए थे. आधुनिक युग में ये आवश्यकता की पूर्ति करने में उतना सक्षम नहीं हैं. उनका विकास आधुनिक तरीके से ही किया जाना चाहिए. इसके लिए मकान और दुकानों को आधुनिक लेबल दिया जाना जरूरी है. यह कार्य आसान नहीं है. पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. अगर जीटीए कोई नई योजना लेकर आता है तो इससे उनका कार्य आसान हो सकता है.
नए दार्जिलिंग की कल्पना को लेकर पहाड़ के लोग खुश तो हैं. परंतु उनकी यह खुशी अगले पल उतर जाती है. जब इसके लिए ना तो कोई विजन नजर आता है, और ना ही कोई सर्वमान्य फार्मूला. जिस शहर में जाम एक बड़ी समस्या हो और इसके समाधान के लिए जीटीए और दार्जिलिंग प्रशासन ने क्या कुछ नहीं किया, फिर भी समाधान नहीं हो सका. ऐसे में एक नया दार्जिलिंग, जिसमें जाम नहीं हो, की कल्पना को मूर्त रूप देना आसान नहीं है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने होम स्टे और अन्य छोटे-मोटे पर्यटन व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन तो जरूर दिया है, परंतु इससे व्यवसाईयों को कितना लाभ होगा. यह तो आने वाला समय ही बताएगा. मुख्यमंत्री एक मोमो व्यवसायी की बात करती हैं जो अपने घर में रहकर मोमो तैयार करता है और बिक्री करता है. यह उन्हें ज्यादा प्रभावित करता है. इस तरह का व्यवसाय अनेक छोटे कारोबारियों को काफी राहत दे सकता है. मुख्यमंत्री इसके लिए काफी सचेष्ट दिखाई देती हैं.
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