अब कोई भी निजी अस्पताल या नर्सिंग होम, किसी मरीज का शव रोक कर नहीं रखेगा. मौत की पुष्टि होने के 2 घंटे के भीतर ही शव को परिजनों को सौंपना अनिवार्य होगा. चाहे परिजनों ने बिल का भुगतान किया हो या नहीं. पश्चिम बंगाल में पश्चिम बंगाल क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमिशन के द्वारा कुछ इसी तरह के नियम पूर्व में बनाए गए हैं जो राज्य के सभी नर्सिंग होम और निजी अस्पतालों के लिए हैं. परंतु WBCERC आयोग के इस नियम का क्या पालन भी होता है?
सिलीगुड़ी में इस तरह के कई मामले पहले भी देखे गए हैं, जहां निजी अस्पताल अथवा नर्सिंग होम के द्वारा बिल भुगतान नहीं होने की स्थिति में मरीज के शव को परिजनों को सौपा नहीं गया था. इस पर परिजनों के द्वारा काफी हंगामा भी हुआ था. WBCERC ने राज्य के निजी अस्पतालों तथा नर्सिंग होम के लिए नियम तो जरूर बना दिए हैं, परंतु उसका पालन कितने निजी अस्पताल वाले करते हैं? जब तक मरीज से बकाया पैसे की वसूली नहीं कर लेते, तब तक वह शव को अस्पताल से ले जाने नहीं देते हैं.
इसका कारण पश्चिम बंगाल सरकार की लापवाही भी है. ऐसा लगता है कि बंगाल सरकार ने आयोग के नियमों को गंभीरता से नहीं लिया है.अगर इस नियम को असम सरकार की तरह पश्चिम बंगाल सरकार भी दृढ़ता के साथ लागू करे तो नर्सिंग होम और निजी अस्पताल डेड बॉडी के मामले में मनमानी नहीं कर सकते. असम सरकार ने निजी अस्पतालों द्वारा शव को रोके जाने को लेकर बड़ा फैसला लिया है. असम सरकार ने कहा है कि कोई भी निजी अस्पताल मृतक के शव को 2 घंटे से अधिक समय तक नहीं रख सकते. चाहे बिल का भुगतान किया गया हो या नहीं.
जिस तरह से असम सरकार ने इतना बड़ा साहस दिखाया है, इसी प्रकार से बंगाल में भी सरकार को हिम्मत दिखानी होगी और निजी अस्पतालों की मनमानी तथा शोषण के खेल को बंद करना होगा. यह समस्या केवल बंगाल में ही नहीं है, बल्कि पूरे देश में है. बकाया बिल का भुगतान नहीं होने पर कई निजी अस्पतालों ने डेडबाॅडी परिजनों को नहीं सौपी. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक ऐसा ही मामला 2024 में सामने आया था, जब एक निजी अस्पताल ने मृतक के शव को उसके परिजनों को नहीं सौपा. अपने पिता के डेड बॉडी को लेने के लिए मृतक के बेटे को चंदा इकट्ठा करना पड़ा. आश्चर्य की बात है कि मृतक के परिजनों के पास आयुष्मान कार्ड भी था.
दिल्ली के द्वारका के एक निजी अस्पताल में अस्पताल प्रबंधन ने मृतक के शव को कई दिनों तक रोक कर रखा, जब तक कि बकाए बिल का भुगतान नहीं हो गया. इसी तरह से गुजरात के एक निजी अस्पताल का भी मामला 2021 में सामने आया था. केवल गुजरात ही क्यों, हैदराबाद, कर्नाटक सब जगह इस तरह की घटनाएं घट चुकी है. जहां निजी अस्पताल अथवा नर्सिंग होम के द्वारा बिल का भुगतान होने तक मृतक के शव को परिजनों को सौपा नहीं गया.
आमतौर पर मरीज के परिजन बिल का भुगतान कर देते हैं. लेकिन कभी-कभी परिस्थितियां उन्हें लाचार कर देती हैं. निजी अस्पताल वालों को भी कम से कम इतनी उदारता तो दिखानी होगी ताकि किसी गरीब और असहाय परिजन को कष्ट का सामना न करना पड़े. एक तो प्रियजन की मौत से वह पहले ही सदमे और दुख में रहते हैं. ऊपर से अस्पताल के द्वारा बिल के भुगतान का जोर देना उन पर भारी गुजरता है. जिस तरह से असम सरकार ने एक साहसिक कदम उठाया है, ठीक उसी तरह से बंगाल और देश के दूसरे प्रदेशों की सरकारों को कठोर फैसले लेने की जरूरत है. ताकि गरीब और लाचार परिजनों को अपने प्रियजनों के शव को प्राप्त करने में दिक्कत ना हो. उम्मीद की जानी चाहिए कि बंगाल सरकार पड़ोसी असम सरकार के इस फैसले से प्रभावित होगी और आयोग के नियम और कानून को दृढ़ता से लागू करने के लिए कदम उठाएगी.
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