सिलीगुड़ी में शाम 4:41 पर भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. इसका केंद्र असम के ढेकियाजूली से 16 किलोमीटर दूर था. यह भूकंप 5.9 तीव्रता का था. भूकंप जितनी अधिक तीव्रता का होगा, नुकसान उतना ही ज्यादा होता है. लेकिन सिलीगुड़ी में कोई नुकसान नहीं हुआ. सिर्फ दहशत और अफरातफरी ही देखी गई. लेकिन लोग डरे हुए हैं कि पूजा के महीने में भूकंप का आना क्या संकेत देता है. 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा भी है.
9.0 तीव्रता वाला भूकंप सबसे ज्यादा खतरनाक और तबाही लाता है. आप आसानी से समझ सकते हैं कि 5.9 तीव्रता का भूकंप भी जान माल को क्षति पहुंचा सकता है. लेकिन गनीमत थी कि कुछ नहीं हुआ. इस भूकंप का असर नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और चीन तक महसूस किया गया था. वहां लोग दहशत में घरों और दफ्तरों से बाहर निकल आए.
इससे पहले असम में 2 सितंबर को भी 3.5 तीव्रता का भूकंप आया था. सितंबर महीने में ही सन 2011 में सिक्किम में भूकंप आया था. 19 सितंबर 2011 को आए विनाशकारी भूकंप में 54 लोगों की मृत्यु हुई थी. इनमें 42 मौतें भारत में हुई थीं. इस भूकंप का असर नेपाल, बांग्लादेश व तिब्बत में भी हुआ था.
सिक्किम में तो भारी तबाही हुई थी और वहां कई दिनों तक बिजली पानी की किल्लत रही थी. भूकंप की तीव्रता 6.8 दर्ज की गई थी. इस भूकंप में 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे और अनेक मकान जमीनदोज हो गए थे. भूकंप का केंद्र गंगटोक से 54 किलोमीटर दूर स्थित था.
कुछ लोगों का मानना है कि सितंबर महीने में ग्रहण लगा था. ग्रहण के आसपास भूकंप अवश्य होते हैं. 29 मार्च 2025 को इस साल का पहला सूर्य ग्रहण था. लेकिन ठीक 1 दिन पहले म्यांमार और थाईलैंड से लेकर भारत और बांग्लादेश तक भूकंप ने काफी तबाही मचाई. म्यांमार और थाईलैंड का तो हाल यह हुआ कि वहां हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी.
विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध जानकारी के अनुसार चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के आसपास पृथ्वी पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे हैं. इसलिए यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या ग्रहण का भूकंप से कोई कनेक्शन है?
8 अप्रैल 2024 को सूर्य ग्रहण से पहले अमेरिका के ईस्ट कोस्ट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. कई बार यह देखा गया है कि ग्रहण के एक डेढ़ माह पहले भी धरती कांपी है और ठीक इसके विपरीत ग्रहण के बाद भी ऐसा होता है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ऐसी मान्यता है कि आसमान के तारे और ग्रह तो अपनी जगह पर स्थित रहते हैं. लेकिन जब उनकी स्थिति में किसी भी तरह का बदलाव आता है, तो पृथ्वी पर उसका असर पड़ता है. चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को इसी बदलाव का हिस्सा माना जाता है. ग्रहण को प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप और सुनामी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है.
चिली, कैलिफोर्निया और जापान में बड़े भूकंप की फ्रीक्वेंसी का अध्ययन करते हुए अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि अमावस्या या पूर्णिमा के दौरान 5 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप आने की संभावना ज्यादा रहती है, जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं.
हालांकि विज्ञान इन बातों को नहीं मानता. विज्ञान ग्रहण और महीने को भी सिर्फ संयोग मानता है. ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक पृथ्वी पर भूकंप तभी आते हैं, जब किसी Falt पर तनाव फॉल्ट टूटने की महत्वपूर्ण सीमा से अधिक हो जाता है. आपका क्या ख्याल है कमेंट करके जरूर बताइएगा!