सोमवार से विधिवत रूप से दुर्गा पूजा शुरू हो रही है. सोमवार को नवरात्र का पहला दिन है. इस बीच सिलीगुड़ी से लेकर पूरे प्रदेश में पूजा आयोजन कमेटियों के द्वारा दुर्गा पूजा पंडाल बनकर तैयार हो गए हैं और उन पंडालों की साज सज्जा को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
सिलीगुड़ी से लेकर कोलकाता तक पूजा पंडालों की संरचना और साज सजावट ऐसी की गई है कि पहली नजर में अधिकांश पूजा पंडाल किसी न किसी सियासी संदेश का आभास कर रहे हैं. अगर लघु बजट वाले पूजा पंडालों की बात ना करें तो बिग बजट वाले बड़े-बड़े पूजा पंडालों पर सियासी रंग अवश्य चढ़ा दिख रहा है. सिलीगुड़ी में तो आभास मात्र है. परंतु कोलकाता के अधिकांश पूजा पंडाल दो राजनीतिक पार्टियों के निहित उद्देश्यों को फोकस करते प्रतीत हो रहे हैं.
पूजा पंडालों में दो चीजें साफ दिखाई देती हैं. बंगाली अस्मिता और राष्ट्रीय गौरव की थीम. अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के द्वारा अभी से ही चुनाव प्रचार शुरू कर दिया गया है. तृणमूल कांग्रेस ने बंगाली अस्मिता को जबकि भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय गौरव को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है. दोनों ही पार्टियों के द्वारा इस थीम के जरिए बंगाल की जनता को लुभाने की तैयारी चल रही है.
टीएमसी से जुड़े पूजा पंडाल बंगाली अस्मिता को प्रदर्शित करते प्रतीत हो रहे हैं. इसके अंतर्गत प्रवासी बंगाली मजदूरों की कठिनाइयां और बंगाली सांस्कृतिक परंपराओं को उभारते हुए पंडाल तैयार किए गए हैं. यह अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की एक रणनीति का एक हिस्सा है. जिससे कि यह संदेश दिया जा सके कि ममता बनर्जी बंगाल विरोधी ताकतों के विरुद्ध बंगाल की संस्कृति की रक्षा कर रही हैं.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेश के सभी रजिस्टर्ड पूजा पंडालों को 1.10 लाख रुपए का अनुदान भी दिया है. उन्होंने स्वयं कई पूजा पंडालों का उद्घाटन भी किया है. ऐसे में अधिकांश पूजा क्लब ममता बनर्जी के संदेश को साकार करने वाले पंडाल तैयार किए हैं, ताकि पंडाल घूमने आए दर्शक तृणमूल के संदेश को समझ सकें. दूसरी तरफ भाजपा ने राष्ट्रीय गौरव थीम पर आधारित पंडालों का प्रदर्शन किया है.
भाजपा समर्थित पूजा पंडालों में ऑपरेशन सिंदूर और सैन्य शक्ति का नजारा दर्शक देख सकेंगे. कई ऐसे पूजा पंडाल हैं, जहां S 400 मिसाइल सिस्टम और ब्रह्मोस जैसी आधुनिक रक्षा तकनीक के मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं. भाजपा नेताओं की ओर से कहा जा रहा है कि भारत की अस्मिता से अलग बंगाल की अस्मिता नहीं हो सकती. अगर भारत एकजुट है तो बंगाल भी सुरक्षित रहेगा. कुछ पंडालों में वोकल फार लोकल का भी संदेश देखा जा सकता है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस बार दुर्गा पूजा पंडालों की भव्यता के बीच स्पष्ट दिख रहा है कि बंगाल की राजनीति का युद्ध क्षेत्र केवल रैलियों और प्रचार सभाओं तक सीमित नहीं रहा. यह अब दीपों की रोशनी, कला और सजावट के बीच भी लड़ा जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि राजनीतिक दलों की लड़ाई का यह प्लेटफॉर्म कितना उचित है? जहां देवी और भक्ति का आत्मिक संबंध होता हो, उस स्थान को राजनीतिक दलों के प्रचार का केंद्र बनाया जाना कितना उचित है?