November 24, 2025
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क्या बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव में TMC को सत्ता से बाहर कर सकेगी?

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और नेता बिहार चुनाव जीतने के बाद बंगाल चुनाव को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कहने लगे हैं. पश्चिम बंगाल भाजपा के कार्यकर्ता और नेता पूरे तेवर में दिख रहे हैं और कह रहे हैं कि ममता बनर्जी का यह आखिरी चुनाव होगा. सवाल है कि क्या भाजपा नेताओं का यह बड़बोलेपन है या फिर चुनाव जीतने की एक रणनीति है?भाजपा ने टीएमसी को सत्ता से बाहर करने के लिए क्या तैयारी की है?

सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार भारतीय जनता पार्टी संगठन पर ज्यादा फोकस दे रही है. क्योंकि भाजपा को पता है कि अगर पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतना है तो संगठन को मजबूत करना होगा. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का संगठन काफी मजबूत है और ग्रामीण इलाकों में उसकी जडें काफी गहरी है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव मार्च अप्रैल में हो सकते हैं. भाजपा के पास संगठन को मजबूत करने का लगभग 6 महीने का समय है. भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने संगठन का कार्य देखने के लिए भाजपा शासित राज्यों के प्रमुख और अनुभवी संगठन मंत्रियों और सचिवों को बंगाल में उतारा है और उन्हें निर्देश दिया गया है कि वे चुनाव तक वहीं जमे रहे.

भाजपा में संगठन का कार्य देखने वाले इन नेताओं और मंत्रियों में सिटी रवि, एन मधुकर, सुरेश राणा, अनंत नारायण मिश्रा ,अरुण दिनाडी, कैलाश चौधरी, संजय भाटिया, पवन शाही, धन सिंह रावत, पवन राना आदि शामिल हैं, जिनके पास पर्याप्त अनुभव है. सिलीगुड़ी से लेकर कोलकाता तक 6 संगठन सचिव और छह नेता बंगाल में डेरा डाल चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि यह सभी नेता बंगाल भाजपा नेताओं के साथ मिलकर रोजाना 6 से 7 बैठक करेंगे और भाजपा हाई कमान के निर्देश पर रणनीति तैयार करेंगे, जो बदले समय और डेमोग्राफी के अनुसार होगा..

भारतीय जनता पार्टी बंगाल चुनाव जीतने के लिए बिहार और महाराष्ट्र का मॉडल अपनाना चाहती है. इस रणनीति में कोई बदलाव नहीं होगा. भाजपा की जो दूसरी रणनीति है, उसके अनुसार प्रदेश भाजपा टीएमसी के नेताओं की जगह कार्यकर्ताओं को तोड़ना चाहती है. क्योंकि टीएमसी के भीतर वर्तमान में उठा पटक मची है. भाजपा इसका लाभ उठाना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी की कोशिश ममता बनर्जी और टीएमसी के बीच दीवार पैदा करने की भी हो सकती है. भाजपा चुनाव में वंशवाद का भी मुद्दा उठा सकती है.

पश्चिम बंगाल में बिहार की तरह जातिगत समीकरण जैसी कोई राजनीति नहीं है. भाजपा यहां जातिगत समीकरण नहीं, बल्कि क्षेत्रीय समीकरण पर अधिक ध्यान देने की योजना बना रही है. इसके अलावा भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण को किसी भी तरह से छोड़ना नहीं चाहती है. भाजपा हिंदू और मुस्लिम तुष्टिकरण की बात जोर-शोर से उठा सकती है. हाल ही में बंगाल के एक टीएमसी विधायक ने बाबरी मस्जिद निर्माण की बात कही है, जिस पर राजनीति शुरू हो चुकी है.भाजपा हिंदू ध्रुवीकरण के लिए भी एक अलग रणनीति अपना रही है और यह डेमोग्राफी पर आधारित होगी. दू

दूसरी तरफ टीएमसी की सत्ता में बने रहने के लिए जो रणनीति है, वह भाजपा की रणनीति पर हावी हो सकती है. टीएमसी ने परोक्ष रूप से हिंदी भाषी और बांग्ला भाषी को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाई है. विशेषज्ञों के अनुसार टीएमसी मुस्लिम मतों का विभाजन नहीं होने देने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण को छोड़ नहीं सकती और हिंदी भाषी तथा बांग्ला भाषी को अलग-थलग करके बांग्ला भाषियों का मत अर्जित करना चाहती है. टीएमसी के नेता अपने भाषणों में लगातार कहते हैं कि भाजपा बंगाल में बाहरी नेताओं को थोप रही है, जो बंगाली अस्मिता के खिलाफ है. भाजपा के नेता जवाब में कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की स्थापना एक बंगाली बुद्धिजीवी ने की थी.

भाजपा ने वर्तमान में अपनी स्थिति में सुधार जरूर किया है. लेकिन अभी दिल्ली दूर दिखती है. पिछले विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 47.9% वोट मिले थे और उसने 213 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में भाजपा को टीएमसी को शिकस्त देने के लिए 4-6% वोट अतिरिक्त लाना होगा. यह एक बड़ी चुनौती होगी. क्योंकि दूसरी तरफ टीएमसी का प्रमुख चेहरा स्वयं ममता बनर्जी है, जिनकी सांगठनिक क्षमता और कुशलता का जवाब नहीं है.

भाजपा ने पिछले चुनाव में राज्य की 294 सीटों में से 74 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यह स्थिति बताती है कि भाजपा धीरे-धीरे यहां मजबूत हो रही है. लेकिन भाजपा को ये सीटें संगठन के आधार पर नहीं बल्कि मोदी के चेहरे पर मिली थी. इस बार स्थिति कुछ भिन्न है और यहां संगठन सबसे ज्यादा फैक्टर है.

यही कारण है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में संगठन पर ज्यादा ध्यान दे रही है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अभी से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर इस पर काम करना शुरू कर दिया है, ताकि जिन क्षेत्रों में भाजपा कमजोर है, वहां संगठन को मजबूत बनाया जा सके. धीरे-धीरे हालत भाजपा के अनुकूल बनते जा रहे हैं. यही कारण है कि भाजपा नेता पश्चिम बंगाल में बदलाव की उम्मीद से भरे हैं और चाहते हैं कि पूरी ताकत से चुनाव लडा जाए तो नैया पार लग सकती है. बीजेपी का लक्ष्य आगामी चुनाव में 160-170 सीटों पर जीत दर्ज करना है. इसलिए भाजपा की रणनीति में इस बार सही और योग्य उम्मीदवारों को टिकट देना भी शामिल होगा.

लेकिन भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता में बदलाव के लिए पूरी ताकत चौक दी थी. लेकिन ममता बनर्जी ने अपनी कुशल रणनीति के बल पर उनके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया था. इस बार भी कुछ ऐसी ही तृणमूल कांग्रेस की तैयारी है. हालांकि टीएमसी की रणनीति में और क्या नई-नई चीजे आएगी, यह तो वक्त ही बताएगा. पर एक बात साफ है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा बनाम टीएमसी का दमदार संघर्ष देखने को मिलेगा, जहां हिंसा भी एक अलग फैक्टर होगी. क्योंकि बंगाल चुनाव का इतिहास ऐसा ही रहा है.

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