कामाख्या मंदिर जहां रहस्यमय शक्तियों का वास है और कई चमत्कार भी होते हैं | असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर में हर वर्ष अम्बुबाची मेला लगता है और यहां के लोग इसे वार्षिक उत्सव के रूप में मानते है | हर साल देश के विभिन्न राज्यों से लोग मां कामाख्या की दर्शन करने पहुंचते हैं | अम्बुबाची मेला जितना खुद में रहस्यमय है और इस शब्द का अर्थ भी कुछ रोचक ही है | अम्बुबाची का अर्थ है पानी से बात करना | देखा जाए तो इस महीने होने वाली बारिश धरती को उपजाऊ और प्रजनन के लिए तैयार बनती है | मान्यता यह भी है कि, इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी का रंग बदल जाता है जो दिखने में काफी हद तक लाल नजर आता है | बता दे कि, अम्बुबाची के दौरान दैनिक पूजा पाठ बंद कर कर दिया जाता है, साथ ही माना जाता है, सभी कृषि कार्य जैसे खुदाई, बुवाई और फसलों के रोपाई नहीं किए जाते हैं और चौथे दिन अम्बुबाची खत्म होने के बाद घर के समान बर्तन और कपड़े धोए जाते हैं | साफ, सफाई के बाद देवी कामाख्या की पूजा शुरू होती है |
इस बार कामाख्या धाम में महाअम्बुबाची मेले का आयोजन 22 जून से किया जाएगा और यह 26 जून तक चलेगा। देवी का यह शक्तिपीठ असम के नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी शहर से सात-आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मेले की तैयारी पूरी हो चुकी हैं। अम्बुबाची मेला कामाख्या मंदिर में आयोजित एक वार्षिक हिंदू मेला है। असम सरकार और कामाख्या मंदिर प्रबंधन समिति ने अम्बुबाची महोत्सव के लिए सभी प्रबंध किए हैं। सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
असम के पर्यटन मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने कहा कि, सभी संबंधित विभागों ने वार्षिक उत्सव के लिए तैयारियां कर ली हैं। उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार और विभिन्न विभाग इस पर काम कर रहे हैं। 26 और 27 जून को कामाख्या मंदिर के कपाट खुलेंगे। इस दिन मंदिर में दर्शन के लिए कोई वीआईपी पास नहीं होगा।
बता दे कि, कामाख्या मंदिर के प्रधान पुजारी कबींद्र प्रसाद सरमा-दोलोई ने बताया कि, इस वर्ष अम्बुबाची मेले की प्रवृत्ति 22 जून यानी आज सुबह से मंदिर का मुख्य द्वार तीन दिन और तीन रातों के लिए बंद कर दिया जाएगा।
पूरे भारत में देवी की 51 शक्तिपीठ है, जिसमें से असम के गुवाहाटी में स्थित एक कामाख्या देवी का मंदिर भी है | इस मंदिर में हर साल अम्बुबाची मेला का आयोजन होता है देश भर के विभिन्न राज्यों से लाखों लोग इस मेले में पहुंचते हैं | कामाख्या देवी को मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है | पौराणिक कथा अनुसार माता सती की योनि का भाग इस स्थान पर गिरा था और यहां गर्भ यानी देवी कामाख्या की पूजा की जाती है | मेले में देश भर से साधु संत व श्रद्धा भाव से लोग यहां देवी की पूजा करने पहुंचते हैं | लोगों का मानना है कि, आज भी मंदिर से जुड़े कई ऐसे वाक्य है जो बहुत रहस्यमय है |
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